देश में चुनावी माहौल में कब किसकी सरकार बन जाये इसकेलिए सारी राजनीतिक पार्टिया अंतिम दम तक अपना हर राजनीतिक पैंतरा आज़माने में कोई कमी भी छोड़ती।लेकिन राज का सुख और राजयोग़ किसके भाग्य में आ गिरता हैं ये कोई नहीं जानता, हाल के दौर में ऐसे कई उदाहरण हमे अपने आस पास देखने को मिल गये गये हैं। आपको आज कुछ ऐसे ही दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रमों पर लेकर जाएँगे कॉन्सर्ट अब अतीत के पन्नो में दबकर रह गए हैं आज की रणनीति करने वालों को इसके बारे में कुछ पता भी नहीं हैं तो जानिए कैसे चुनाव हुए और किसके सिर पर राज़ का सेहरा बंधा।
1967 के इस चुनाव के बाद राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार बनी थी। तबतक विधान सभाओं के चुनाव भी लोक सभा के साथ ही हुआ करते थे
1967 के लोक सभा चुनाव के समय राजस्थान के झुंझुनू क्षेत्र पर देश भर की नजरें लगी हुई थीं। वहां कांग्रेस के राधेश्याम मुरारका का मुकाबला स्वतंत्र पार्टी के राधाकृष्ण बिड़ला से था। एक फ्रेंच पत्रकार ने उसे दो एरावतों यानी हाथियों के बीच का मुकाबला बताया था। उन अत्यंत धनी हस्तियों के बीच के इस मुकाबले में स्वतंत्र पार्टी के राधाकृष्ण बिड़ला की लगभग 46,000 मतों से जीत हुई। 2019 के चुनाव में इस क्षेत्र से भाजपा के नरेंद्र कुमार विजयी हुए थे।
सन 2024 के चुनाव में भाजपा के शुभकरण चैधरी का मुकाबला कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह ओला से है। लेकिन, सन 1967 में चुनाव प्रचार तो दिलचस्प ढंग से चला था। याद रहे कि 1962 में चीनी सैनिक असम के तेजपुर तक आकर वापस लौट गये थे।
वहीं से क्यों लौटे? अपनी चुनाव सभाओं ने श्री राधाकृष्ण ने यह दावा किया कि “अगर हमारी कम्पनी ने 1962 के आखिरी दिनों में नेफा और लद्दाख में भारतीय जवानों को ऊन और कंबल सप्लाई नहीं किये होते तो हिंदुस्तानी फौजें चीनियों का मुकाबला नहीं कर पातीं।” दो करोड़पतियों के आपस में भिड़ जाने के कारण इस क्षेत्र में देश की ही नहीं बल्कि विदेशी संवाददाताओं की भी नजरें लगी थीं। चुनाव में बिड़ला जीते और मोरारका हारे।बाद में राधा कृष्ण बिड़ला कांग्रेस में शामिल हो गये थे।
इससे पहले 1952 से लेकर लगातार 1962 के चुनाव तक राधेश्याम मोरारका कांग्रेस के टिकट पर झुंझुनू से जीतते रहे। सन 1967 में इस वी.आई.पी.चुनाव क्षेत्र के बारे में एक फ्रेंच पत्रकार ने कहा था कि ‘झुंझुनू में दो एरावतों की टक्कर है।’तब एक पत्रिका ने लिखा था,‘‘झुंझुनू में देश का सबसे कीमती चुनाव हो रहा है।सेठ बिड़ला और मुरारका दोनों ही करोड़पति हैं। लेकिन मुरारका पहले से ही इस क्षेत्र में राजनीतिक काम कर रहे हैं।जबकि सेठ बिड़ला राजनीति में पहली बार कूदे हैं। उनके प्रचार के लिए पिलानी से उनके नौकर -चाकर बुलाये गये हैं।झुंझुनू के गांव -गांव और कस्बे -कस्बे में बिड़ला उदयोग की सैकड़ों जीपें और गाड़ियां दौड़ रही हैं।’
‘सेठ राधाकृष्ण बिड़ला राजस्थानी में भाषण देते हैं और अपने हर भाषण में राजस्थान का स्मरण करते हैं।राजस्थान को वह अपने पुरखों की एक ऐसी पुण्यभूमि मानते हैं जो पापियों के हाथों चली गई है। बिड़ला जी के प्रचारकों का कहना है कि बिड़ला ने राजस्थान में जितनी धर्मशालाएं,स्कूल,मंदिर और संस्थान खुलवाये हैं,उनमें लगी हुई पूंजी सरकारी कल्याण कार्यों में लगी हुई पूंजी से अधिक है।
सेठ बिड़ला अपने आप को राजस्थान के सबसे बड़े शुभचिंतक के रूप में पेश कर रहे हैं।यह जरूरी नहीं कि मतदाताओं को सेठ बिड़ला की बातों पर यकीन हो। उनके चुनाव क्षेत्र में अनेक मतदाताओं ने यह शंका की कि सेठ जी को झुंझुनू के प्रति यह अचानक प्रेम कैसे पैदा हो गया। श्री बिड़ला की टक्कर मोरारका से है जो अपना प्रचार अधिक परिमार्जित भाषा में कर रहे हैं।
जाटों के वोटों का एक हिस्सा श्री कुम्भाराम आर्य के प्रयास से श्री बिड़ला को प्राप्त हो जाएगा। मोरारका इन वोटों से वंचित रहेंगे।श्री मोरारका को कांग्रेस के परंपरागत वोट मिलेंगे। राजस्थान में पैसे का मुकाबला पैसा कर रहा है। अब तक पैसे वाले केवल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते थे।
पिछले चुनाव में राजस्थान में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार जितने बड़े पैमाने पर चुनकर आये, उससे राजस्थान धनपतियों की आकर्षण भूमि में बदल गया। उन्हें यह विश्वास है कि वे कांग्रेस को अपदस्थ कर राजस्थान में स्वतंत्र पार्टी के जरिए स्वयं अपनी सरकार बना सकते हैं। जयपुर से लेकर जोधपुर तक और गंगानगर से लेकर कोटा तक राजस्थान की किसी भी सडक पर राजाओं-महाराजाओं और मंत्रियों उप मंत्रियों की चमचमाती ,कीमती गाड़ियां दौड़ती नजर आती हैं।
महारानी गायत्री देवी ने तो एक सभा में खुद ही यह कबूल किया कि अगर मैं चाहती तो अपने महल में आराम से रह सकती थी। पर मैं कांग्रेस को परास्त करने के लिए बाहर निकली हूं। राजस्थान में दरअसल दो व्यक्ति चुनाव लड़ रहे हैं।एक हैं मुख्य मंत्री मोहनलाल सुखाड़िया और दूसरी हैं महारानी गायत्री देवी। दोनों ही राजस्थान के इस छोर से उस छोर तक दौरा करते हैं और मतदाताओं के सामने विकल्प पेश करते हैं।महारानी का दौरा तूफानी और मुखर है, श्री सुखाड़िया का दौरा मौन और शायद अधिक ठोस है।
महारानी गायत्री देवी के जयपुर महल में उनका चुनावी कार्यालय है जिसका संचालन उनके मंझले बेटे युवराज पृथ्वी सिंह करते हैं। श्रीमती गायत्री देवी मतदाताओं से अपील करती हैं,‘‘कांग्रेस को खत्म करो।’’ राजस्थान में कांग्रेस को खत्म करने के लिए दो और पार्टियां प्रतिबद्ध हैं।एक है जनसंघ और दूसरी है जनता पार्टी। एक के नेता भैरो सिंह शेखावत और दूसरे के कुम्भाराम आर्य हैं।कुम्भा राम आर्य, मुख्य मंत्री सुखाड़िया से झगड़ कर कांग्रेस से अलग हुए हैं। प्रतिपक्षी दलों का चुनावी गठबंधन चुनाव से पहले ही चरमरा रहा है।याद रहे कि इस चुनाव के बाद राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार बनी थी।