आर एन गौड़
पूरा सावन सुखा बीता नहीं बरसे मेघ, लेकिन राजस्थान में मेघवाल एक दूसरे पर बरस गए। राजस्थान में आने वाले 3 महीनों बाद विधानसभा चुनावों को देखते हुए जो भाजपा में छीटा कसी दिखाई दी हैं। ये एक अजीब सी स्थिति दिखाई दे रही हैं। बूढ़े बाबा मेघवाल जो जनसंघ के समय से पार्टी विचारधारा से जुड़े है। भाजपा की शुरुआत से लेकर आज तक उनका पार्टी में जो योगदान रहा हैं वो यह कि जो मन में चाहे किसी के लिए कुछ भी कहने में संकोच नहीं करते यहां तक कि मैडम के विरुद्ध भी 5000 करोड़ रुपए का सीधा आरोप लगा दिया था।
यह अलग बात हैं कि कुछ पलटी खा कर के वापस मैडम के खेमे में ही लौट आए और मैडम की तो छोड़िए,पुरानी बातें देखें तो अपने साथी रहे भैरो सिंह शेखावत के लिए भी इनके व्यंग बाण छूटे थे, तो यह बूढ़े बाबा मेघवाल की अपनी एक अलग ही अदा हैं ।दूसरे मेघवाल जो प्रशासनिक सेवा से अपने बलबूते पर अपनी मेहनत पर अपने व्यवहार कौशल की कुशलता से एक लंबी छलांग लगा कर के लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री बने।लोकसभा में छा जाने वाले राजस्थान के एक दलित नेता की पहचान बनाई। यह दूसरा पहलू मेघवाल जी का हैं।
जैसे सवर्ण जातियों में श्रेष्ठ बनिया जाति मानी जाती हैं ।लगभग उसी प्रकार की गणना अनुसूचित जातियों में मेघवालो की होती हैं, और जो दबंग जातियां मानी जाती हैं अनुसूचित जाति में, उनमें से मेघवाल भी एक हैं।
बूढ़े बाबा के पीछे कोई मुख्यमंत्री जी का हाथ बता रहा हैं तो कोई इन्ही की पार्टी के किसी बड़े शत्रु का हाथ बताता हैं ,लेकिन बाबा की फितरत ऐसी है कि वह कब क्या कहकर के वापस लौट आए यह कोई नही कह सकता , उमर का भी अपना एक तकाज़ा हैं। उनको भी अपने पूरे राजनीतिक जीवन की उपलब्धियां जो हैं, उनसे सब्र करना चाहिए और जो नई पीढ़ी आगे बढ़ रहीं हैं i उसको अपने उदार नजरिए से देखना चाहिए ।
रही बात चुनाव में टिकट की , तो मोदी ने जो एक बार तय कर लिया वह उससे कभी पीछे हटा नही और ये सबको सहन करना ही पड़ता हैं और यह देश के हित में हैं आज बस इतना ही …………..