सरकारी नौकरी मिलना और उसे रिटायरमेंट तक बिना दाग दब्बे तक चलाना मुश्किल काम होता हैं कुछ ही अफ़सर और कर्मचारी इस स्तर तक पहुँच कर कई कर्मचारी और आमजन का दिल जीत पाते है।कुछ ऐसे भी होते है जिन्हें अपने पद का इतना अभिमान हो जाता हैं कि वो किसी को कुछ समझते ही नहीं है। लेकिन जब ऐसे अफ़सर अपने नौकरी से अंतिम दिन विदा होते है तो उस अंतिम दिन उन्हें वो अपमान का घूट पीना पड़ता हैं।
अजमेर स्थित राजस्थान लोक सेवा आयोग के मुख्यालय के इतिहास में एक अगस्त को पहला अवसर रहा, जब आयोग के किसी अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होने पर कार्मिकों की ओर से विदाई तक नहीं दी गई। संजय श्रोत्रिय का अध्यक्ष के तौर पर एक अगस्त को अंतिम कार्य दिवस था। आमतौर पर अध्यक्ष और सदस्य की सेवानिवृत्ति पर आयोग के सभी कर्मियों की ओर से विदाई पार्टी की जाती है। लेकिन संजय श्रोत्रिय के लिए कर्मियों ने कोई पार्टी आयोजित नहीं की। फलस्वरूप श्रोत्रिय को अपमान पूर्ण माहौल में आयोग मुख्यालय से बाहर निकलना पड़ा। कार्मिकों का कहना है कि श्रोत्रिय ने अपने कार्यकाल में किसी भी कार्मिक की विदाई पार्टी में भाग नहीं लिया। कार्मिकों के प्रतिनिधियों से भी श्रोत्रिय ने संतोष जनक व्यवहार नहीं किया। श्रोत्रिय के रूखे व्यवहार को देखते हुए ही कार्मिकों ने विदाई पार्टी नहीं दी। यानी आयोग में जैसे को तैसा वाली कहावत चरितार्थ हुई। मालूम हो कि कांग्रेस शासन में अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए संजय श्रोत्रिय को उपकृत कर आयोग का अध्यक्ष बनाया था। आईपीएस रहे श्रोत्रिय ने गहलोत की सरकार को बचाने के लिए कई मौकों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आयोग में रहते हुए भी श्रोत्रिय ने सरकार के इशारों पर काम किया। यही वजह रही कि भाजपा के नेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने श्रोत्रिय के कामकाज को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। यहां तक कि एसओजी के समक्ष श्रोत्रिय के खिलाफ सबूत भी दिए। सरकार बदलने के बाद एसओजी अब श्रोत्रिय के कार्यकाल में जारी हुए परीक्षाओं के परिणामों की जांच भी कर रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कई बार कहा है कि पेपर लीक के मामलों में किसी को भी बख्शा नहीं जाए। मालूम हो कि स्कूली शिक्षा के सेकंड ग्रेड शिक्षक की भर्ती परीक्षा में पेपर लीक के आरोप में आयोग के सदस्य बाबूलाल कटारा की गिरफ्तारी हुई कटारा आयोग से भर्ती परीक्षा के प्रश्न पत्र चुराकर अपने घर ले गए। यह सब संजय श्रोत्रिय के कार्यकाल में संपन्न हुआ।
इसके अलावा ऐसा ही एक मामला और हुआ था जब DIPR निदेशक के पद से पुरुषोत्तम शर्मा का ट्रांसफ़र हुआ था उस समय भी पुरुषोत्तम शर्मा बिना किसी पार्टी और सम्मान के विदा हो गये थे और इससे ऊपर पहली बार DIPR विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिठाई तक बाटीं थी।