एम्स, दिल्ली के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज में एक व्यक्ति के नेत्र दान करने से 6 लोगों को आंखों की रोशनी दी जा रही है।
एम्स, दिल्ली के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज में एक व्यक्ति के नेत्र दान करने से 6 लोगों को आंखों की रोशनी दी जा रही है। यहां लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञों की टीम कस्टमाइज्ड कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की इस कमाल की तकनीक पर काम कर रही है। जिसके द्वारा एक आंख यानि कॉर्निया 3 लोगों को अलग-अलग ट्रांसप्लांट की जा सकती है। जो अंधेपन से जूझ रहे मरीजों के लिए बड़ी उम्मीद और राहत की बात है.
आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. राधिका टंडन और डॉ. तुषार अग्रवाल ने कहा कि आंखों का एक हिस्सा कॉर्निया या कॉर्नियल टिश्यू ही है, जिसे किसी और से लेकर मरीज में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।इसके लिए कॉर्निया दान करने वाले लोगों की जरूरत होती है।हालांकि आंखों का दान मरने के बाद ही किया जा सकता है, ऐसे में इस तरह के डोनेशन को बढ़ाने के लिए लोगों को तैयार करना जरूरी है।
कस्टमाइज्ड कॉर्नियल ट्रांस्पलांट वह सुविधा है, जब मरीज के कॉर्निया में बीमारी होने पर उसके पूरे कॉर्निया को रिप्लेस नहीं किया जाता, बल्कि सिर्फ कॉर्निया की जिस लेयर में बीमारी है, उसेहटाकर वहां दान किए गए नए कॉर्निया को उसी परत पर लगाया जाता है। नई तकनीकों से डोनर के पूरे टिश्यू को मल्टीपल लेयर्स में बांट लिया जाता है। एक कॉर्निया के अंदर 6 परत होती हैं। इस तरह अलग-अलग लेयर के प्रभावित मरीजों को अलग-अलग लेयर्स लगा दी जाती हैं और एक ही कॉर्निया कई लोगों की आंखों में पहुंचकर रोशनी दे देता है। पूरी आंख की बजाय सिर्फ परतबदलने से मरीज के पूरी तरह रिकवर होने का समय काफी कम हो गया है और वे जल्दी ठीक भी हो जाते हैं।
डॉ. राधिका, डॉ. तुषार अग्रवाल कहते हैं कि आई डोनेशन के लिए कोई उम्र की सीमा नहीं है। मृत्यु के बाद छोटे बच्चे से लेकर 99साल तक का बुजुर्ग व्यक्ति नेत्र दान कर सकता है। अगर किसी के घर में सामान्य मृत्यु हुई है या अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हुई है तो वह आई बैंक में कॉर्निया डोनेट करने के लिए संपर्क कर सकते हैं या नजदीकी अस्पताल में संपर्क कर सकते हैं।