ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए फर्जी एनओसी जारी करने के प्रकरण में स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग ने जो जांच कमेटी बनाई उसकी रिपोर्ट विवादित हो गई है। जांच कमेटी की जांच रिपोर्ट को देखकर ऐसा लग रहा है कि कमेटी ने जानबूझकर इसमें शामिल कुछ बड़े अधिकारियों और डॉक्टरों को बचाने का प्रयास किया है।
चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और अतिरिक्त मुख्य सचिव हेल्थ शुभ्रा सिंह से जब जांच कमेटी की कमियों कोउजागर कर सवाल किए गएतो वह चुप्पी साथ गए। उन्होंने इतना ही कहा कि अब आगे की कार्रवाई और जांच पुलिस की ओर से गठित एसआईटी द्वारा की जाएगी। उन्होंने कहा कि अब इस मामले में चिकित्सा विभाग का कोई रोल आगे नहीं रहेगा।
राज्य सरकार ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए 4 अप्रैल को 5 सदस्यीय कमेटी ने बुधवार को अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और एसीएस शुभ्रा सिंह ने गुरुवार को कमेटी की जांच रिपोर्ट के बारे में पत्रकारों को जानकारी दी।
चिकित्सा विभागकी जांच कमेटी रिपोर्ट की जानकारी देते हुएचिकित्सा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने बताया कि पिछले 1 साल में 82 ऑर्गन ट्रांसप्लांट सरकारी अस्पताल में हुए। इसमें 54 ट्रांसप्लांट सवाई मानसिंह हॉस्पिटल के सुपर स्पेशलिटी विंग में हुए। इसमें 8 ऐसे ट्रांसप्लांट थे, जिसमें रिलेटिव नहीं थे। एसएमएस में हुए 54 ट्रांसप्लांट किस डॉक्टर ने किए और उन मरीजों को एनओसी कहां से मिली? एसएमएस में ट्रांसप्लांट करने वाले डॉक्टरों पर कमेटी या सरकार ने क्या कार्यवाही की? जबकि ट्रांसप्लांट करने वाले वाले एक डॉक्टर को सरकार ने आरयूएचएस का कुलपति क्यों बना दिया ?
कमेटी ने जांच में केवल तीन डॉक्टर कोदोषी माना है। इसमें डॉ. राजीव बगरहट्टा, डॉ. अचल शर्मा और डॉ. राजेन्द्र बागड़ी को दोषी मानकरपद से हटाने की कार्रवाई की गई हैऔर उन्हें 16CCA का नोटिस जारी किया है। जबकि एडवाइजरी कम स्टेट लेवल ऑथोराइजेशन कमेटी में डॉ. राजीव बगरहट्टा चेयरमैन और सदस्य के तौर एसएमएस हॉस्पिटल के अधीक्षक के अलावा डॉ. रामगोपाल यादव, डॉक्टर अनुराग धाड़क, उपनिदेशक (प्रशासन) राजमेस के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भावना जगवानी और अपर्णा सहाय भी सदस्य के तौर पर मनोनित है। कमेटी ने इनमें से डॉ. रामगोपाल यादव, डॉक्टर अनुराग धाड़क, उपनिदेशक (प्रशासन) राजमेस को जिम्मेदार क्यों नहीं माना? इन्हें भी पद से हटाकर 16CCA का नोटिस जारी क्यों नहीं किया ? इसका चिकित्सा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह के पासकोई जवाब नहीं है।
स्टेट एप्रोप्रिएट ऑथोरिटी की प्रमुख डॉ. रश्मि गुप्ता के तौर पर पिछले एक साल से काम कर रही है।जिनके पास मजिस्ट्रेट के पावर थे इसके बावजूद भी किसी भी निजी चिकित्सालय की जांच नहीं कि नहीं उन्हें दंडित किया।ऐसे में सवाल उठता है कि उन्हें जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया गया। उनके कार्यकाल की जांच क्यों नहीं की गई इस पर सवाल उठना लाजिमी है। ऐसी दोषी डॉक्टर कोजाट कमेटी का सदस्य नियुक्त कर दिया गया तो ऐसे में जांच निष्पक्ष कैसे होगीयह भी सवाल उठता है। सूत्रों का कहना है कि डॉक्टर रश्मि गुप्ताकी सलाह पर ही चिकित्सा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही हैं।