पूरे पाँच साल गहलोत सरकार में मलाई खाने वाले लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत के ख़िलाफ़ ज़ुबानी जंग छेड़ दी हैं अभी चुनाव नतीजे आये कुछ घंटे भी भी नहीं हुए थे और इसी बीच अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत पर सबसे पहले आरोपों की झड़ी लगा दी हैं उन्होंने साफ़ साफ़ लिखा कि ये चुनाव अशोक गहलोत की ज़िद कि वजह से कांग्रेस हारी हैं। ये कांग्रेस की हार भी बल्कि ख़ुद अशोक गहलोत की हार हैं और उनकी ज़िद जी कुमार पूरी पार्टी को चुकानी पड़ी हैं। अगर अशोक गहलोत अपनी ज़िद से ऊपर उठकर टिकट देते तो पार्टी का इतना बुरा हाल नहीं होता।
इस बार अशोक गहलोत को ख़ुद की बाज़ी से ख़ुद जी मात खाते हुए नज़र आ रहे हैं जिस लोकेश शर्मा को ज़मीन से उठाकर ओएसडी जैसे पद पर बैठाकर पूरे पाँच साल मलाई खिलायी वही आँख दिखाने लगे कहावत वही है जो आप समझ रहे हैं।
लोकेश शर्मा ने जिस तरह से सबसे पहले बग़ावत कर ज़ुबानी जंग में अशोक गहलोत के बारे में बोला है।उसके मायने बहुत अलग हैं अब सरकार तो हार गई लेकिन फ़ोन टैपिंग मामले में कौन बचाएगा, तो पाला बदल कर सामने वाली पार्टी को भी खुश करना पड़ेगा भी तो जेल भी जाने की भी तैयारी करनी पड़ सकती हैं। जिस लोकेश शर्मा को कंधे पर बैठाकर रणनीति करना सिखाया आख़िरकार उन्हें कंधों पड़ बैठकर हाथ काटने जैसा लग रहा हैं।
विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने खरी-खरी सुनाते हुए कई तरह के खुलासे किए हैं। लोकेश शर्मा ने बेबाक तरीके से सोशल मीडिया पर भी अपनी राय व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि मैं इन नतीजों से आहत जरूर हूँ, लेकिन अचंभित नहीं हूँ। कांग्रेस पार्टी राजस्थान में रिवाज़ बदल सकती थी लेकिन अशोक गहलोत कभी कोई बदलाव नहीं चाहते थे। यह कांग्रेस की नहीं बल्कि अशोक गहलोत की करारी शिकस्त है। गहलोत के चेहरे पर, उनको फ्री हैंड देकर, उनके नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा और उनके मुताबिक प्रत्येक सीट पर वे स्वयं चुनाव लड़ रहे थे। न उनका अनुभव चला, न जादू और हर बार की तरह कांग्रेस को उनकी योजनाओं के सहारे जीत नहीं मिली। न ही अथाह पिंक प्रचार काम आया। और पिंक प्रचार वाले अब गहलोत को छोड़ कर ग़ायब हो गये हैं सुना हैं कि वो अपने बोरिये बिस्तर समेत कर रवाना हो गये हैं।
उन्होंने कहा कि तीसरी बार लगातार सीएम रहते हुए गहलोत ने पार्टी को फिर हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। आज तक पार्टी से सिर्फ़ लिया ही लिया है लेकिन कभी अपने रहते पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाए गहलोत। आलाकमान के साथ फ़रेब, ऊपर सही फीडबैक न पहुँचने देना, किसी को विकल्प तक न बनने देना, अपरिपक्व और अपने फायदे के लिए जुड़े लोगों से घिरे रहकर आत्ममुग्धता में लगातार गलत निर्णय और आपाधापी में फैसले लिए जाते रहना, तमाम फीडबैक और सर्वे को दरकिनार कर अपनी मनमर्जी और अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को उनकी स्पष्ट हार को देखते हुए भी टिकट दिलवाने की जिद के कारण चुनाव के ये नतीजे तय थे।
लोकेश शर्मा ने कहा कि मैं स्वयं मुख्यमंत्री को यह पहले बता चुका था, कई बार आगाह कर चुका था। लेकिन, उन्हें कोई ऐसी सलाह या व्यक्ति अपने साथ नहीं चाहिए था जो सच बताए। मैं छः महीने लगातार घूम-घूम कर राजस्थान के कस्बों-गांव-ढाणी में गया, लोगों से मिला, हजारों युवाओं के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किये, लगभग 127 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए ग्राउंड रिपोर्ट सीएम को लाकर दी, ज़मीनी हक़ीकत को बिना लाग-लपेट सामने रखा ताकि समय पर सुधारात्मक कदम उठाते हुए फैसले किए जा सकें जिससे पार्टी की वापसी सुनिश्चित हो।
लोकेश ने कहा कि मैंने खुद ने भी चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, पहले बीकानेर से फिर सीएम के कहने पर भीलवाड़ा से। जिस सीट को हम 20 साल से हार रहे थे। लेकिन, ये नया प्रयोग नहीं कर पाए। बीडी कल्ला के लिए मैंने 6 महीने पहले बता दिया था कि वे 20 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हारेंगे और वही हुआ। उन्होंने कहा कि अशोक गहलोत के पार्ट पर इस तरह फैसले लिए गए कि विकल्प तैयार ही नहीं हो पाए। गत 25 सितंबर की घटना भी पूरी तरह से प्रायोजित थी जब आलाकमान के खिलाफ़ विद्रोह कर अवमानना की गई और उसी दिन से शुरू हो गया था खेल।