बड़ी-बड़ी कलाकृतियों के मध्य में एक नन्हा सा चावल रख दिया जाए तो कितना रोमांचक लगेगा। चावल एक ऐसा दाना है जिसका भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है, अक्षत है, पवित्र है, तिलक के समय काम में आता है और मेरे हाथ में आ जाता है तो कैनवास बन जाता है।
मैंने चावल पर शब्दों को आकृति देने की शुरुआत 1984 में की इससे पूर्व शोकिया पेंटिंग बनाया करती थी, चावल पर लेखन कार्य करते-करते आज णमोकार मंत्र जो कि प्राकृत भाषा में है, गायत्री मंत्र संस्कृत में, कन्नड़ में भगवान बाहुबली का संदेश, देश की 18 लिपि में ‘वंदे मातरम’, अंग्रेजी में एक ही चावल पर 108 अक्षर लिखकर देश की प्रथम महिला कलाकार होने का गौरव पाया है।
वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी के जयपुर आने का समाचार पढ़ा और मन में ठान लिया कि मेरी इस कला के माध्यम से मुझे इंदिरा गांधी से मिलना है। सतत प्रयास से सफलता मिली, मन उत्साहित था, उन्हें एक चावल पर 72 अक्षर लिख भेंट किया।
वर्ष1994-1995 में राज्य हस्तशिल्प पुरस्कार और 2004-2005 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय दक्षता पुरस्कार से सम्मानित किया। भारत सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न प्रदर्शनी में भाग लेकर कला का प्रदर्शन किया साथ ही बर्लिन जर्मनी में भारत सरकार द्वारा मुझे भेजा गया जहां मैंने अपनी कला का प्रदर्शन किया और मेरी इस कला की सराहना हुई।
घर गृहस्ती के काम को करते हुए, जब 108 अक्षर एक चावल पर लिखने की ठानी तो उस समय 7-8 घंटे रोज काम किया।
मैं सौभाग्यशाली रही कि मेरी कला के प्रोत्साहन में मेरे सास ससुर व परिवार का पूर्ण सहयोग मिला और आज इस मुकाम को हासिल किया।