राजस्थान PWD विभाग जिसके पास राज्य के निर्माण के महत्वपूर्ण काम होते हैं। लेकिन ठेकेदारों के माध्यम ये अधिकारी समय पर काम तो करवा लेते हैं,लेकिन जब इन ठेकेदारों को काम का पेमेंट देने का समय आता हैं तो बड़ी बड़ी अड़चनें लगाकर उनको चक्कर कटाते रहते हैं।पहले अपनी जेब से ये ठेकेदार काम तो मन लगाकर कर देते हैं,लेकिन जब काम ख़त्म होने के बाद जब ये ठेकेदार अपने बिल विभाग के अधिकारियों को जमा कराते हैं तब से ही इन ठेकेदारों की चप्पलें घिसना शुरू हो जाती हैं और अधिकारी बंद AC कमरें में बैठ कर इन पेमेंट की फ़ाइलों को एक टेबल से दुसरे टेबल तक घुमाते रहते हैं। इन अधिकारियों से तंग आकर पिछले दिनों कई ठेकेदारों ने आत्महत्या तक जैसे कदम भी उठा लिये हैं,और अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर ली हैं। ऐसे अधिकारियों को इनसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता हैं।इनके इस तरह परेशान करने से किसी के जीवन समाप्त होने के बाद भी इनके चेहरे पर सिकन तक नहीं आती हैं।
जब ये ठेकेदार नियमानुसार ठेकें में दिये हुए निविदा कि सभी शर्ते पूरी करते हैं और नियमानुसार बिड में भाग लेते हैं और नियमानुसार जब ये ठेकें मिल जाते हैं तो फिर काम पूरा होने के बाद इन ठेकेदारों को परेशान क्यों किया जाता हैं। विभाग में भ्रष्टाचार इस कदर हावी हैं की बिना टेबल पर पैसे दिये फ़ाइल आगे नहीं बढ़ती हैं और अधिकारियों की फ़रमाइशें कम नहीं होती हैं। सवाल बड़ा हैं तो ज़िम्मेदारी भी बड़ी होनी चाहिए।
एक तरह बीजेपी की केंद्र में नरेंद्र मोदी और राज्य में भजनलाल सरकार ज़ीरों टॉलरेंस जैसे फ़ार्मूले पर काम करने का दावा करती हैं,लेकिन जब हक़ीक़त से सामना होता हैं तो ये सब फ़ार्मूले सिर्फ़ सुनने में अच्छे दिखाई देते हैं। ऐसे में इन अधिकारियों पर अंकुश लगाना बहुत ज़रूरी हैं। लेकिन ये तभी संभव हैं जब अधिकारियों को ज़िम्मेदारी के साथ उनकी जवाबदेहिता तय की जाये।
सरकार बदली लेकिन सरकारी सिस्टम नहीं बदला पहले भुगतान करने बजट का अभाव बता दिया जाता हैं।फिर जब पेमेंट आता हैं तो अपना