केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार आ गई हैं तो अब बीजेपी के नेताओं पर मुक़दमे वापस लेने की तैयारी भी शुरू हो गई है उनका कहना है सरकार हमारी हैं तो चलेगी भी हमारी। हमारी सरकार में हम अपने ऊपर दर्ज़ मुक़दमों को हटवा लेंगे और पाक साफ़ हो जाएँगे। कांग्रेस राज में बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमों की मौजूदा सरकार ने समीक्षा शुरू कर दी है। प्रदेश के गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम ने रिव्यू के बाद मुकदमे वापस लेने के संकेत दिए हैं। अभी यह तय नहीं हुआ है कि कौन-कौन से मुकदमे वापस होंगे।
Nsc9 न्यूज़ ने इन नेताओं पर दर्ज़ उन मुकदमों के बारे में जानकारी जुटाई जो कांग्रेस के सरकार के समय में बीजेपी नेताओं पर दर्ज़ हुए। जानकारी में सामने आया कि मौजूदा सरकार के 7 मंत्रियों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं। सबसे ज्यादा 14 मुकदमे शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के खिलाफ हैं। यहां तक कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के खिलाफ भी राजस्थान में 3 मुकदमे चल रहे हैं।
मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
जेपी नड्डा के खिलाफ सीआईडी सीबी में 3 मुकदमे पेंडिंग
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के खिलाफ राजस्थान में 3 केस पेंडिंग हैं। डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बूंदी, चित्तौड़गढ़ के थानों में मामले दर्ज हैं। चितौड़गढ़ कोतवाली में 25 अप्रैल 2020 को कांग्रेस नेता सुरेंद्र जाड़ावत ने केस दर्ज करवाया था। 23 अप्रैल 2020 को कांग्रेस एमएलए गणेश घोघरा ने डूंगरपुर कोतवाली में केस दर्ज करवाया था। 28 अप्रैल 2020 से सीआईडी सीबी में लंबित है। नड्डा के खिलाफ प्रतापगढ़ में 24 अप्रैल 2020 को केस दर्ज हुआ जो 5 मई 2020 से सीआईडी सीबी में लंबित है।
सरकार के 7 मंत्रियों पर केस पेंडिंग
बीजेपी के दर्जन भर नेताओं के खिलाफ कांग्रेस राज में एफआईआर हुई थी। उनमें से जो नेता एमएलए थे, उनके मामलों की जांच सीआईडी-सीबी कर रही है। सरकार के 24 में से 7 मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मामले दर्ज हैं। चार मंत्री तो ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गैर जमानती धाराओं में मामले दर्ज हैं।
1. मदन दिलावर : सबसे ज्यादा 14 केस पेंडिंग
प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के खिलाफ गंभीर धाराओं वाले सर्वाधिक केस दर्ज हैं। दिलावर के खिलाफ कोटा ग्रामीण के विभिन्न थानों में 4, कोटा शहर के पुलिस थानों में 2, झालावाड़, राजसमंद और जयपुर के अलग अलग थानों में 1-1 केस दर्ज हैं। दिलावर के खिलाफ दर्ज प्रकरणों में राजद्रोह, हत्या, आपराधिक साजिश, राजकार्य में बाधा और महिला की गरिमा भंग करने जैसी धाराओं के मामले भी शामिल हैं। 17 अप्रैल 2020, कोटा के महवीर नगर में महामारी एक्ट का उल्लंघन, राजकार्य में बाधा का केस सीआईडी-सीबी के पास है।
दिलावर ने उदयपुर दौरे के दौरान खड़गे पर कसा था तंज
11 मई को जयपुर के संजय सर्किल थाने में विधायक मदन दिलावर के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 120 बी के तहत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का मामला दर्ज किया गया था। दिलावर ने 1 मई को अपने उदयपुर दौरे के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर तंज कसते हुए कहा था- ‘कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष 80 साल के हो गए हैं। भगवान उन्हें कभी भी उठा सकता है पर मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि कम से 200 साल तक उन्हें नहीं उठाए।
सरकार के 7 मंत्रियों पर केस पेंडिंगबीजेपी के दर्जन भर नेताओं के खिलाफ कांग्रेस राज में एफआईआर हुई थी। उनमें से जो नेता एमएलए थे, उनके मामलों की जांच सीआईडी-सीबी कर रही है। सरकार के 24 में से 7 मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मामले दर्ज हैं। चार मंत्री तो ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गैर जमानती धाराओं में मामले दर्ज हैं।
इन मंत्रियों के खिलाफ सीबीआई और एसीबी में दर्ज हैं मुकदमे
6. गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम : गोपालगढ़ मामले में सीबीआई का केस। पहाड़ी थाने में 2011 में बेढम पर केस दर्ज हुआ था, बाद में यह केस सीबीआई को सौंपा गया था। 4 दिसंबर 2015 को इस मामले में चार्ज फ्रेम हो चुके हैं, फिलहाल जमानत पर।
7. यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा : प्रधान रहते करप्शन के आरोप में केस दर्ज हुआ था। यह केस एसीबी में पेंडिंग है।
24 विधायकों के खिलाफ मुकदमें पेंडिंग : सबसे ज्यादा उदयलाल डांगी पर आठ केस, गोपीचंद मीणा पर 5 मामले
बीजेपी के 24 विधायक ऐसे हैं, जिन पर केस पेंडिंग हैं। उदयपुर की वल्लभनगर सीट से बीजेपी विधायक उदयलाल डांगी पर आठ मुकदमे पेंडिंग चल रहे हैं। वहीं जहाजपुर विधायक गोपीचंद मीणा पर 5 केस पेंडिंग हैं। ओसियां से एमएलए भैराराम सियोल और बीकानेर से एमएलए जेठानंद व्यास पर चार मुकदमे पेंडिंग हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा मुकदमों में श्रीगंगानगर के जयदीप बिहानी हैं। बिहानी के खिलाफ तीन मुकदमे पेंडिंग हैं।
14 बीजेपी विधायकों पर एक-एक केस पेंडिंग : जोगेश्वर गर्ग, महंत बालक नाथ, शत्रुघ्न गौतम, छगन सिंह राजपुरोहित, हरलाल सारण, डॉ. शैलेश सिंह, अंशुमान सिंह भाटी, सुरेंद्र सिंह राठौड़, कालीचरण सराफ, उदयलाल भड़ाना, केसाराम चौधरी, लालाराम बैरवा, शोभा चौहान, विक्रम सिंह जाखल पर एक-एक मुकदमा पेंडिंग चल रहा है।
5 बीजेपी विधायकों पर दो-दो केस पेंडिंग : जितेंद्र गोठवाल, सुभाष मील, कैलाश वर्मा, गोपाल शर्मा, बालमुकुंद आचार्य पर दो-दो मामले पेंडिंग चल रहे हैं।
CID-CB ही करती है विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की जांच
विधायक, सांसद या मंत्री के खिलाफ FIR संबंधित थाने में ही दर्ज होती है। मुकदमा दर्ज होने के तुरंत बाद फाइल पुलिस मुख्यालय की क्राइम ब्रांच में CID-CB को भेज दी जाती है।
ADG क्राइम जांच अधिकारी नियुक्त करता है। ज्यादातर केस में जांच अधिकारी एडिशनल SP स्तर का बनाया जाता है। अधिकारी मौका मुआयना कर बयान रिकॉर्ड करते हैं।
अपराध प्रमाणित होने पर नेता के खिलाफ चालान पेश कर फाइल थाने भेज दी जाती है। जांच अधिकारी उस चालान को कोर्ट में पेश करता है। अपराध प्रमाणित नहीं होने पर कोर्ट में FR (फाइनल रिपोर्ट) लगा दी जाती है।
सीनियर एडवोकेट ए.के जैन के मुताबिक, 1986 में तत्कालीन DGP ने सर्कुलर निकाला था कि MP-MLA के खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज होते ही केस CID-CB को ट्रांसफर हो जाएगा।
कौन-कौन से मुकदमों पर विचार कर रही सरकार?
गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम ने भास्कर को बताया- राजनीति से प्रेरित जितने भी मुकदमे बीजेपी नेताओं के खिलाफ कांग्रेस राज में दर्ज हुए हैं, उनकी समीक्षा की जा रही है। गृह विभाग पूरे मामले को देख रहा है।
नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज कंपाउंडेबल और नॉन कंपाउंडेबल केस को अलग-अलग किया जा रहा है। कानूनी एक्सपर्ट के मुताबिक, वापस लिए जा सकने वाले और नहीं वापस लिए जा सकने वाले केसों को लेकर कानूनी प्रावधान साफ हैं।
जो मुकदमे कानूनन वापस लिए जा सकते हैं, उन्हें कंपाउंडेबल केस की कैटेगरी में माना जाता है। ये आमतौर पर साधारण प्रवृत्ति के होते हैं और जिनमें आपसी समझौता हो सकता है। जैसे- संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग, शरारत, स्वेच्छा से चोट पहुंचाना, किसी व्यक्ति को गलत तरीके से बंधक बनाना, आपराधिक विश्वासघात जैसे मामले।
नॉन कंपाउंडेबल में गंभीर प्रवृत्ति के केस होते हैं, जिनमें हत्या, दंगे भड़काने सहित अन्य जघन्य अपराध शामिल होते हैं। ऐसे केस को सरकार वापस नहीं ले सकती।
वसुंधरा राजे की पहली सरकार के दौरान 40 हजार मुकदमे वापस लिए गए थे। इसी तरह अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली दूसरी सरकार के वक्त 52 हजार मुकदमे वापस लिए गए थे।
मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया में एक नया कानूनी पेच?
विधिक मामलों के जानकार सीनियर एडवोकेट प्रतीक कासलीवाल कहते हैं- मुकदमे वापस लेने का सरकार के पास अधिकार होता है। कानून में ही यह तय किया हुआ है कि कौन से मुकदमे वापस ले सकते हैं और कौन से नहीं। जघन्य अपराधों वाले केस वापस नहीं हो सकते। सरकार की तरफ से वापस लिए जाने वाले मुकदमों की फाइल एक तय प्रक्रिया के अनुसार कोर्ट में भेजी जाती है। कोर्ट उसमें मंजूरी देता है। तब वह मुकदमा वापस होता है। लेकिन भारतीय न्याय संहिता लागू होने के बाद इस प्रक्रिया में एक कानूनी पेच भी है।
पहले आईपीसी के धारा 321 के तहत राज्य सरकार को मुकदमे वापस लेने का अधिकार था। अब भारतीय न्याय संहिता लागू होने के बाद बीएनएस की धारा-361 के तहत मुकदमा वापसी का प्रावधान किया गया है। पुरानी और नई व्यवस्था में एक अंतर यह आया है कि पहले सरकार मुकदमे वापसी के लिए कोर्ट में आवेदन पेश कर देती थी और कोर्ट उस पर फैसला देता था। अब नए प्रावधानों के अनुसार कोर्ट पहले विक्टिम (पीड़ित) को सुनेगा। उसके बाद मुकदमा वापस लेने की अनुमति देने या नहीं देने पर फैसला देगा।