सामाजिक बुराइयों से लड़कर इस प्रतिस्पर्धा के युग में टोंक जिले के गांव देवपुरा, शोयला और डारडा तुर्की की आधा दर्जन अनुसूचित की मासूम बच्चियों ने अपना बाल विवाह रोका और विपरीत परिस्थितियों में अपने परिवार से लड़ाई लड़कर विषम आर्थिक परिस्थितियों में अपनी जिंदगी को बनाने में संघर्ष किया और पढ़ाई जारी रखी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और कलक्टर डॉ. सौम्या झा आपसे आग्रह है कि इन बच्चियों की समस्याओं पर ध्यान देकर उनके भविष्य को उज्जवल बनाने में सहयोगी बने।
मुख्यमंत्री शर्मा जी आप रविवार 30 जून को टोंक जिले में मुख्यमंत्री सम्मान निधि की किस्त जारी करने के कार्यक्रम में जा रहे हैं। आप प्रशासनिक स्तर पर इन बच्चों के बारे में जानकारी करें और इनकी मदद करें तो निश्चित तौर पर सैकड़ो ऐसी बच्चियों को बाल विवाह और विभिन्न प्रकार की ऐसी समस्याओं से निजात मिल सकेगी। इन बच्चियों के भविष्य को संवारने में यूनिसेफ का योगदान जरूर है। इन बच्चियों ने टोंक की शिव शिक्षा समिति के परियोजना अधिकारी सीताराम शर्मा के सहयोग से अपना बाल विवाह रुकवाने और परिवार के साथ सामाजिक परिवेश में संघर्ष करते हुए अपनी पढ़ाई कर रही हैं। शनिवार को फ़्यूचर सॉसायटी द्वारा टोंक में आयोजित इस कार्यशाला में जयपुर के वरिष्ठ पत्रकारों ने बच्चियों से विस्तार से बात करते हुए अनुसूचित जाति की इन बच्चियों से मुलाकात की और अब मैं उनकी समस्याओं के बारे में बताना चाहता हूं जो की सामाजिक परिवेश में समाज के लिए सुधार का बड़ा काम करेगी।
सायला गांव की अनुसूचित जाति की नौरती बेरवा दिव्यांग बच्ची है उसने अपना बाल विवाह रोका और विपरीत परिस्थितियों में अपने घरवालों से संघर्ष कर पढ़ाई जारी रखी। मौजूदा स्थिति में वह अपने गांव की स्कूल में 12 वीं की छात्रा है घर की आर्थिक स्थिति खराब है अपनी पढ़ाई आगे भी जारी रखना है। लेकिन उन्हें चिंता यह है कि कॉलेज में कैसे बाहर रहकर पढ़ाई करेगी। 2019 में बच्ची को सरकार की योजना ट्राई साइकिल मिली और छात्रवृत्ति के सहारे पढ़ाई कर रही हैं। मौजूदा स्थिति में इस साल की छात्रवृत्ति नहीं मिली। ऐसे में समस्या यह है कि पढ़ाई जारी कैसे रखें और उसे विभिन्न प्रकार की परेशानियों में अपनी जिंदगी जीनी पड़ रही है।
नौरती बेरवा का कहना है कि आगे पढ़ना चाहती हैं और अपना जीवन अच्छा बनाकर समाज को संदेश देने का काम करना चाहती हैं। लेकिन समस्या यही है कि आगे की पढ़ाई कैसे जारी रहेगी और वह दिव्यांग होने के कारण विभिन्न प्रकार की परेशानियों में आगे बढ़ना चाहती हैं। नौरती बेरवा ने गांव के आसपास की बच्चियों का एक ग्रुप बना रखा है और वह बाल विवाह रोकने के साथ ही विभिन्न प्रकार की समस्याओं के बारे में बच्चों को जागृत करने का काम करती हैं। उनका कहना है कि जिला कलक्टर उन्हें व्यक्तिगत बुलाकर समस्याओं के बारे में बात करें और उनका समाधान करें तो निश्चित एक नया माहौल ग्रामीण इलाकों में रहने वाली अनुसूचित जाति की बच्चियों को मिल सकता है ।
टोंक जिले के देवपुरा गांव में रहने वाली ममता बेरवा 17 साल की है और वह 12वीं कक्षा में अध्ययन कर रही हैं। पिता की कैंसर की बीमारी से मौत हो चुकी है, मां खेती का काम करती हैं। वह जब पांचवी कक्षा में पढ़ रही थी तो उसका भी बाल विवाह करने की कोशिश की गई, माता-पिता को समझाने के बाद उसका बाल विवाह रुक गया। इसी गांव की रेशमा बेरवा का भी बाल विवाह अपनी बड़ी बहन के साथ हो गया। लेकिन उसका गौना नहीं हुआ। मौजूदा स्थिति में वह दसवीं कक्षा में पढ़ रही है और अपने ससुराल वालों और माता-पिता को समझाकर वह अपनी पढ़ाई आगे भी जारी रखना चाहती हैं। उनका कहना था कि मैं शिक्षिका बनना चाहती हूं और अपने पैरों पर खड़े होकर अपने परिवार और खुद का भविष्य उज्जवल बनाना चाहती हूं। लेकिन विभिन्न समस्याओं के कारण मैं दुविधा में रहती हूं। इसके बावजूद अपने गांव की बच्चियों को बाल विवाह नहीं करने और विभिन्न सामाजिक बुराई दूर करने के लिए जन जागरण का अभियान चलाती हूं। मैंने भी बच्चों का ग्रुप बना रखा है उसके जरिए हम लोग इस काम को कर रहे हैं लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती है इससे कुछ निराशा जरूर होती है।
देवपुरा गांव की कोमल बेरवा भी 17 साल की है और 12वीं में पढ़ाई कर रही है। वह भी अपने गांव में बच्चियों को जागृत करने का काम कर रही हैं।
सोयला गांव की रहने वाली अन्य पिछड़ा वर्ग की वसुंधरा प्रजापत यूनिसेफ के माध्यम से बच्चियों के जन जागरण का काम कर रही है। उन्होंने 12 साल की उम्र में अपना बाल विवाह रोक और परिवार से संघर्ष कर अब वह जयपुर में अपने पिता के साथ रहकर के बीए -बीएड का कोर्स कर रही हैं। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि वह जब छोटी थी तो उनकी बड़ी बहन के साथ उनका भी विवाह करने की योजना उनके दादाजी ने बनाई। विरोध शुरू में नहीं माना गया लेकिन माता-पिता और दादाजी को समझने में वह कामयाब रही। इसके बाद उन्होंने गांव में कोरोना के टाइम में अपने दादाजी के नुक्ते के कार्यक्रम को रोका। इसके लिए गांव में उनका बहिष्कार तक किया गया लेकिन इस साहसिक बच्ची ने यूनिसेफ के माध्यम से गांव में सेनेटरी पैड सप्लाई कराई और और उसकी जलने की मशीन भी लगवाने में भी हासिल की। उनका कहना है कि गांव में आज भी बच्चियां और औरतें शिक्षा के अभाव और पुरानी कुरीतियों के चलते सेनेटरी पैड उपयोग नहीं कर पाती हैं इसके कारण बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं।
वसुंधरा प्रजापत को यूनिसेफ के माध्यम से राष्ट्रीय अवार्ड भी मिला। अपनी बातों को स्पष्ट रूप से कहने और बच्चियों के बीच संवाद कर उन्हें बाल विवाह रोकने के साथ ही विभिन्न बुराइयों के लिए जागृत करने का काम कर रही हैं। उनकी इच्छा है कि मुख्यमंत्री और कलेक्टर बुलाकर इनकी बात सामूहिक रूप से सुने और उसके अनुरूप गांव में योजना बने तो निश्चित तौर पर वहां की हजारों बच्चियों को लाभ मिल सकता है। मुख्यमंत्री जी आप टोंक जा रहे हैं इस पर विशेष ध्यान देकर अगर कुछ करेंगे तो निश्चित तौर पर इन अनुसूचित जाति की की बच्चियों का भविष्य सुधर सकता है।