Saturday, October 12, 2024

मुख्यमंत्री शर्मा ने क़ायम की सादगी कि मिसाल, छोड़ा वीआईपी कल्चर

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मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा 23 अगस्त को रामबाग चौराहे पर ट्राफिक पॉइंट पर अपने काफिले को रुकवाने की घटना ने लोगों के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आम तौर पर देखा जाता है कि जब मुख्यमंत्री या कोई अन्य वीआईपी रूट से गुजरते हैं, तो उस मार्ग पर ट्रैफिक को रोक दिया जाता है, जिससे आम नागरिकों को असुविधा होती है। हालांकि इस बार मुख्यमंत्री शर्मा ने प्रशासन की इस परंपरागत व्यवस्था को तोड़ते हुए खुद का काफिला रोककर ट्राफिक को पहले जाने दिया, जो चर्चा का विषय बन गया है।

मुख्यमंत्री शर्मा ने 23 अगस्त को मोती डूंगरी गणेश मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की। उन्होंने मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आम लोगों से मुलाकात की। 

मुख्यमंत्री शर्मा ने शपथ लेने के बाद आम नागरिक की तरह जीवन जीने का संकल्प लिया था, लेकिन धीरे-धीरे वे भी वीआईपी कल्चर का हिस्सा बन गए थे। उनकी सुरक्षा को लेकर कड़ी व्यवस्थाएं की जाती थीं, और कई बार उनके कार्यक्रम के दौरान पूरे रूट पर ट्रैफिक रोक दिया जाता था, जिससे जनता को परेशानी का सामना करना पड़ता था।

इस बार मुख्यमंत्री द्वारा अपनी गाड़ी रोकने के इस फैसले को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ लोग इसे उनकी जनता के प्रति सहानुभूति और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक रणनीति के रूप में भी देख सकते हैं।

यह भी संभव है कि मुख्यमंत्री ने जनता के बीच अपने पुराने वादे को याद दिलाने के लिए यह कदम उठाया हो। लेकिन, यह बदलाव कितने समय तक चलेगा और क्या यह भविष्य में भी नियमित रूप से जारी रहेगा, इसका जवाब सिर्फ मुख्यमंत्री शर्मा ही दे सकते हैं।

मुख्यमंत्री शर्मा द्वारा अचानक लिया गया यह निर्णय उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व के बारे में कई सवाल उठाता है। क्या वे सचमुच आम लोगों के करीब रहने का प्रयास कर रहे हैं, या फिर यह एक अस्थायी कदम है? यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में उनकी इस नीति में कितना स्थायित्व रहता है और क्या यह वास्तव में जनता को राहत दिलाने में कारगर साबित होती है।

भाजपा के प्रभारी सांसद राधा मोहन अग्रवाल ने भी भाजपा के सदस्यता अभियान की विशेष बैठक में स्पष्ट तौर पर कहा था कि सरकार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के कारण नहीं बनी है। भाजपा के आम कार्यकर्ता के कारण सरकार बनी है और हमारे केंद्रीय नेतृत्व ने भी आम कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाया है।ऐसे में मुख्यमंत्री को भी आम कार्यकर्ता का ध्यान रखकर ही काम करना पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे ने भी अपने कार्यकाल के दौरान कुछ मौकों पर खुद को “खास से आम” दिखाने की कोशिश की थी। दोनों नेताओं ने विभिन्न समयों पर ऐसी पहलें की थीं जो उन्हें आम जनता के करीब दिखाने का प्रयास थीं।

अशोक गहलोत: अपने कार्यकाल में अशोक गहलोत ने कई बार यह दिखाने की कोशिश की कि वे जनता के मुख्यमंत्री हैं और आम जनता की समस्याओं को समझने के लिए खुद मैदान में उतरते हैं। उन्होंने कई बार अचानक निरीक्षण किए और सरकारी सुविधाओं की गुणवत्ता को देखने के लिए आम लोगों के बीच पहुंचे। हालांकि, इस तरह के प्रयास लंबे समय तक नहीं चले, और वे भी वापस पारंपरिक वीआईपी कल्चर में लौट आए।

वसुंधरा राजे: वसुंधरा राजे ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ अवसरों पर खुद को जनता के करीब दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने भीड़भाड़ वाले इलाकों का दौरा किया और कुछ स्थानों पर जनता से सीधे संवाद किया। हालांकि, उनकी ये पहलें भी कुछ समय बाद समाप्त हो गईं और वीआईपी सुरक्षा और प्रोटोकॉल की परंपरा फिर से शुरू हो गई।

इन दोनों नेताओं के प्रयास हालांकि प्रशंसनीय थे, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक नहीं चले। सुरक्षा, प्रोटोकॉल, और प्रशासनिक जरूरतों के चलते, ऐसे बदलाव स्थायी नहीं रह पाते। यह दर्शाता है कि जब नेता अपने सामान्य प्रशासनिक जीवन से हटकर जनता के बीच जाने का प्रयास करते हैं, तो यह एक अस्थायी स्थिति होती है, जो धीरे-धीरे फिर से वीआईपी कल्चर में वापस लौट आती है।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा 23 अगस्त को किया गया यह प्रयास भी इसी कड़ी में देखा जा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनका यह बदलाव कितने समय तक चलता है और क्या वे इस स्थिति को लंबे समय तक बनाए रख पाते हैं या नहीं।

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