जयपुर। चांदपोल बाजार में स्थित श्री रामचंद्र मंदिर से भाद्रपद की तेरस को श्री ठाकुर जी की नगर परिक्रमा निकली ।भरत परिक्रमा की शुरूआत जयपुर से 130 साल पहले हुई थी। ये 131 वीं परिक्रमा है। इस रथ की स्थापान राजघराने के समय हुई थी। यह परिक्रमा मंदिर स्थापना के समय से निकाली जा रही है।इस रथ की खास बात ये है कि इस रथ को शीशम की लकड़ी से बना हुआ है। विशाल रथ पर चारों भाईयों के सजीव रूप में विराजमान होते है। इस रथ को आज के युग में भी दो बैंलों की जोड़ी से ही खीचवाया जाता है। ये रथ बुधवार शाम 6 बजे मंदिर से भरत शत्रुघ़ स्वरूप को लेकर घाटगेट स्थित नृसिंह जी मंदिर में पहुंचा।
ऐसे निकली रथ यात्रा शीशम की लकड़ी से बना रथ चांदी के साजो के सामान जैसे सिंघासन ,कटघरे ,सिंह खम्ब,तकिया कुर्सियां,मखमल के कपड़े,फूल व बंदरवाल आदि से पूरा सजाधजा हुआ था। नृसिंह मंदिर में बन स्वरूप रामजी ,लक्ष्मणजी और सीताजी का भरत मिलाप का अद्भूत कार्यक्रम हुए। शाम 8 बजे उनको विनती,आरती पूजा आदि करने के बाद राजसी वेश धारण करके यहां से रवाना हुए। रथ के साथ पूरा लवाजमा था। रथ के आगे पचरंगा झंडा लेकर हाथी चल रहा था। जो अपने आप में एक अद्भभूत नजारा था।
शीशम की लाल -भूरी लकड़ी से बना है रथ राजघराने के समय का ये रथ शीशम की लाल-भूरी लकड़ी से बना हुआ है। इस लकड़ी की खास बात यह है कि जितना ये पुराना होता जाएगा ,उतना ही मजबुत होता रहेगा। धुंप,पानी से भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।रथ के निर्माण के समय इसमें लोहे का भी काफी इस्तेमाल किया गया है। इस में कमानियां ,जूडा,कुर्सी ,जाली, पहिए सब लकड़ी के ही बने हुए है। पहियों को मजबुती देने के लिए चारों तरफ लोहे की परत बनाई गई है।
दस वर्ष के बालक होते है रथ में सवार भरत मिलाप परिक्रमा में श्री राम दरबार का सजीव स्वरूप 10 वर्ष के बालक ही धारण करते है। ये बालक ब्रह्मण परिवार के ही होते है और जगन्नाथ मंदिर से ही आते है। रथ को खींचने वाले बैलों की जोड़ी कई सालों से जगन साहु के परिवार के यहां से ही आते है।
यहां से होकर गुजरी रथ यात्रा रथ यात्रा चांदपोल श्री राम मंदिर से रवाना होकर घाटगेट होती हुई सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर पहुँची। जहां पर रथ यात्रा को कुछ देर रोकने के बाद ठाकुर जी का स्वागत किया गया। फिर बड़ी चौपड़ ,त्रिपोलियागेट,छोटी चौपड से गुजरते हुए मंदिर श्री रामचंद्र जी पहुँची।रथ यात्रा का रास्ते में पड़ने वाले सभी प्रमुख मंदिरों पर स्वागत किया गया।