Sunday, October 13, 2024

शासन धर्म के द्वारा होना चाहिए और धर्म सर्वोपरि होता हैं -डॉ चन्द्रप्रकाश द्विवेदी

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एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से जयपुर के बिड़ला सभागार में ‘धर्म दंड, धर्म राज्य और संवैधानिकता’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता चाणक्य धारावाहिक फेम निर्देशक और अभिनेता डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी रहे। जबकि प्रस्तावना एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ महेश चंद्र शर्मा ने रखी।

डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि यूरोप का सामंतवाद भारतीय राजतंत्र से अलग है। भारत में ऐसे राजा की कल्पना संभव नहीं है। जो गलत करे तो उसे दंडित नहीं किया जा सके. राजा बनने से पहले राज्याभिषेक होता था। इसमें जिन मंत्रों का प्रयोग होता था। वे मंत्र पूरे भारत में एक समान थे। इन मंत्रों और राज्याभिषेक के समय यह स्पष्ट किया जाता था कि यदि राजा ने भी अधर्म किया तो उसे धर्म दंड देगा। यही धर्म दंड की महत्ता है। उन्होंने कहा कि भारत में राजतंत्र पश्चिम के समान बर्बर और अराजक कभी नहीं रहा। यही कारण है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जितने देश आजाद हुए उनमें अकेला भारत ही है। जहां आज भी लोकतंत्र है। क्योंकि यह हमारी मूल भावना है। उन्होंने कहा कि राजदंड भारत की राजनीति का विधि-विधान है। लेकिन दुर्भाग्य से हम पिछले कुछ समय तक सेंगोल से अनभिज्ञ थे।  
धर्मदंड (राजदंड) के रूप में सेंगोल की व्याख्या करते हुए कहा कि संसद में लगा सेंगोल जनप्रतिनिधियों को याद दिलाता रहेगा कि शासन धर्म के अधीन हो, अन्यथा उन्हें दंडित भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज हर दिन कोई नया प्रश्न उठता है। सब चर्चा करते हैं लेकिन मूल ग्रंथों तक बहुत कम लोग जाते हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी शास्त्रों की रक्षा के लिए दंड धारण करते हैं। सन्यासी के दंड को ब्रह्म दंड कहा जाता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद में सेंगोल स्थापित कर उस परंपरा को पुनर्जीवित किया। जो हजारों साल से चली आ रही थी।

कार्यक्रम के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि हम अपने देश की संस्कृति को को ठीक से जानें। इसकी जरूरत हमेशा रहती है। धर्म दंड, धर्म राज्य और संवैधानिकता, यह ऐसा विषय हैं जिसमें अतीत और वर्तमान का मेल है। आज डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने सटीक उदाहरणों के साथ हमारे ज्ञान का संवर्धन किया है। समाज जितना ज्ञान से युक्त होगा। उतना समाज समर्थ होगा। जबकि जितना ज्ञान से रिक्त होगा। उतना ही समाज असमर्थ होगा।

डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि सांस्कृतिक विरासत से परिचय निरंतर चलने वाला और पीढ़ियों का काम है। इसका आकलन तत्काल नहीं हो सकता है। हमारे समाज ने जैसी स्थिति और समस्या आज देखी है। उससे बहुत भयानक पहले देखी थी। हर स्थिति को पार कर जाना, यह हमारे समाज की विशेषता है। हमारा भारत आज की समस्याओं को भी पार करेगा और निरंतर पार करता जा रहा है। जो स्थितियां कल थी, वो आज नहीं हैं।आज भारत की प्रतिष्ठा विश्व पटल पर क्रमशः बढ़ती चली जा रही है।

डॉ.चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने सैवधानिकता पर बोलते हुए कहा कि कणिक धृतराष्ट्र्र के संवाद में आज की राजनीति बिलकुल सही बैठती हैं।धृतराष्ट्र संवाद में आज की राजनीति दिखाई देती जहा काम कभी नहीं होता और भरोसा पूरा दिया जाता हैं।उन्होंने कहा कि रामराज्य वहा हैं जहां पर कभी दुख नहीं,कपट नहीं, अशिक्षा नहीं, पीड़ा नहीं,स्पर्धा नहीं,छल-कपट नहीं हो, लेकिन आज के परिपेक्ष में स्पर्धा के नाम पर गला काट प्रतियोगिता में यह सभी चीजों का समाहित होना समाज के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि सभा और समिति वैदिक काल की व्यवस्था है इस व्यवस्था में कुलपा व्यवस्था एक अलग व्यवस्था बन कर निकली थी,जिसमें कुलपा कुल के लोग अपने धर्म की पालना करते हैं या नहीं इसी जिम्मेदारी तय करते हैं। उन्होंने कहा कि राजा अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में निरंकुश होता हैं, अगर ऐसा होता है तो समिति का अधिकार रहता था कि राजा को शासन से हटा दिया जाए। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में ऐसे उल्लेख भी मिलते हैं जहां राजा अपने धर्म से रुक निरंकुश हो गया और समिति ने उसी हत्या भी कर दी।उन्होंने आगे कहा कि धर्म दंड को धारण करने वाला व्यक्ति राजसभा में पुरोहित हुआ करता था। आज की सैवधानिक संस्थाएं भारत की उस आत्मा से बहुत अलग जा चुकी है। शासन धर्म के द्वारा होना चाहिए और धर्म सर्वोपरि होता है। धर्मराज आपको भी दंडित कर सकता है धर्म से बड़ा और कोई नहीं है। उन्होंने कहां की हमारी संविधान में न्यायधीश को भी दण्ड देने का प्रावधान रखा है। यह भारत की आत्मा की जान हैं। हमारे यहां इंद्र है।जो गलती करके प्रायश्चित करता है प्रायश्चित करना भी जरुरी है। जिससे व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास होता है।राजा को अपनी गलती से सीख लेकर यह कोशिश करनी चाहिए कि वह गलती दोबारा ना हो।

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