Monday, October 14, 2024

शेख हसीना इससे पहले भी ले चुकी हैं भारत में शरण

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भारत के पड़ौसी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को उनके विरोध में फैली हिंसा के बीच इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश की आता शेख हसीना के तानाशाही रवैया से कितने आक्रोश में थी। इसी प्रकार के हालात हमने कुछ दिनों पहले अपने दूसरे पड़ोसी देश श्रीलंका में देखे थे जब श्रीलंका की युवाओं की बेरोजगारी भीड़ प्रधानमंत्री आवास और दूसरे सरकारी भवनों में आग लगाती हुई अंदर घुस गई थी। भारत के पड़ोसी के देशों इस तरह की घटनाएं होना। भारत के लिए कतई भी शुभ संकेत नहीं है। इन परिस्थितियों में भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता है।

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्तापलट हो गया है। देशभर के छात्रों के प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिया है जिससे प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा है और अब तो वह देश छोड़ चुकी हैं। बांग्लादेश सेना के हवाले है यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि अंतरिम सरकार का गठन कब तक किया जाएगा और किया भी जाएगा? क्योंकि पाकिस्तान में तो कई बार सेना प्रमुख ही सरकार की कमान संभालते रहे हैं। कहीं ऐसी स्थिति बांग्लादेश में भी ना बन जाए।

साल 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर रहमान समेत शेख हसीना के परिवार की हत्या कर दी गई थी। वह 1981 तक दिल्ली में रही थीं। पिता की हत्या के बाद उन्होंने 1981 के बाद बांग्लादेश जाकर पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला। उनके पिता, मां और 3 भाई तख्तापलट में मारे गए थे। जिस समय शेख हसीना के परिवार की हत्या हुई थी उस समय उनकी उम्र महज 28 साल की थी। वह भाई बहनों में सबसे छोटी बहन हैं।

मेरा मानना है कि दुनिया के किसी भी देश की सरकार अगर अपने देश के युवाओं के लिए अच्छे रोजगार के अवसर पैदा नहीं करती और युवाओं में जब बेरोजगारी बढ़ती है तो देश में इस तरह की परिस्थितियों बनती ही है। शिक्षित बेरोजगारों की संख्या जैसे जैसे बढ़ती है तो वह सड़कों पर उतरने को मजबूर होते हैं। इस तरह की परिस्थितियों ना बने। उसके लिए सरकार को समय-समय पर सार्थक प्रयास करने होते हैं। जहां-जहां सरकार इस तरह के प्रयास करने में विफल रही है। वहां-वहां इसी प्रकार का हश्र हुआ है चाहे वह दुनिया का कोई भी देश हो।

बहरहाल शेख हसीना के पिता को वहां के लोग रास्पिता कहते थे लेकिन उनके लिए भी इतनी नफरत की उनकी मूर्तियों को हथौड़ों से तोड़ा गया दरअसल शेख हसीना लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी से चिपक गई थी। वह किसी भी कीमत पर सत्ता को अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहती थी। नाम मात्र का लोकतंत्र था वैसे बांग्लादेश में उनकी तानाशाही चल रही थी उसी से परेशान होकर वहां के युवाओं ने यह संघर्ष करी रास्ता चुना और विद्रोह कर दिया। सत्ता के खिलाफ उठने वाली किसी भी आवाज को दबा देना विरोधियों को जेल में बंद कर देना यही से की हसीना की परिणीति बन चुकी थी। ऐसी परिस्थितियों में चुनाव का अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं।

लेकिन विधि का विधान देखिए जिस देश की सत्ता ही नहीं एक-एक परिसंपत्ति को आप अपनी मानते थे। आज आपको अपना घर भी छोड़कर भागना पड़ रहा है। दुनिया के तमाम तानाशाहों का अंत इसी प्रकार हुआ है। क्योंकि वह अपने आप को सर्वोच्च शक्ति समझने लगता है और उसी में उलझ कर उसका अंत हो जाता है। लेकिन मित्रों वह तानाशाह ही क्या? जो इस बात को समझ जाए और अगर वह इस बात को समझ जाए तो फिर वह तानाशाह ही ना बन पाए!

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