Tuesday, October 22, 2024

सतत विकास के लिए भारत की आर्थिक नीतियाँ कैसी हों ?

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आज बेशक भारत की आर्थिक आकांक्षाएँ निर्विवाद रूप से महत्वाकांक्षीहैं परन्तु फिर भी, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, बहुध्रुवीय युद्ध, व्यापारिकअनिश्चितताओं के दौर में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रितकरने के साथ, केवल बढ़ी हुई खपत पर निर्भर रहना एक भारत जैसेविकासशील देश के लिए जोखिम से भरा जुआ लगता है। कोरोनामहामारी के बाद धीमे धीमे उबर रहे वैश्विक आर्थिक हालातों में अब येसवाल उठता है कि क्या  भारत केवल उपभोक्ता खर्च पर निर्भर हुए बिना2024-25 में निरंतर और मजबूत आर्थिक विकास की दर हासिल करसकता है या अनिश्चितताओं के भंवर में इसकी बहुआयामी पुनर्समीक्षाकी जरुरत है ?

यह संपादकीय लेख भारत के आर्थिक विकास और उसकी उपभोक्ताकेंद्रित आर्थिक विकास की पुनर्समीक्षा कर एक बहु-आयामी दृष्टिकोणके प्रस्ताव का समर्थन और सिफारिश करता है जिसके प्रमुख मुद्दे इसप्रकार हैं –

1. निवेश शक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुनियादी ढांचे औरविनिर्माण को बढ़ावा देना :

वित्त वर्ष 2023-24 में देश में कुल एफडीआई $70.95 बिलियन डॉलर रहाऔर कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह $44.42 बिलियन डॉलर। वैश्विकदेशों की तुलना में मॉरीशस (25%), सिंगापुर (23%), यूएसए (9%), नीदरलैंड (7%) और जापान (6%) यानी वित्त वर्ष 2023-24 में भारत मेंएफडीआई इक्विटी प्रवाह शीर्ष 5 देशों के रूप में शामिल है मगर इसेमेन्टेन रखने के लिए सड़कों, बिजली ग्रिड और डिजिटल नेटवर्क जैसीमहत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने की सतत जरुरतहै ताकि नए रोजगारों को पैदा किया जा सके / यदि नेटवर्क कनेक्टिविटीबढ़ेगी तो आगे निवेश आकर्षित होगा जो सार्वजनिक-निजी भागीदारीबुनियादी ढांचे के अंतर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।  

इसके साथ ही व्यवसाय के अनुकूल माहौल बनाने और टारगेट प्रोत्साहनकी पेशकश करने से घरेलू और विदेशी कंपनियों को विनिर्माण में निवेशकरने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सकता है। इससे न केवल आयातपर निर्भरता कम होगी बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा जो रोजगारसृजन को एक नयी ऊर्जा प्रदान कर सकता है।

2. मानव शक्ति का कौशलयुक्त सशक्तीकरण और व्यवसाय जगत मेंआसानी भरा माहौल पैदा करना :

कौशल विकास से युवाओं को (स्किल) कुशल बनाना या उन्हें (रीस्किल) पुनः कुशल बनाने में ध्यान केंद्रित करने से रोजगार की स्थितियां सुधरसकतीं हैं मगर सनद रहे कि पूर्ववर्ती आईटीआई और पॉलिटेक्निक केबोर्ड बदलकर पुराने ढर्रों से बचना होगा/ अब हमें बाजार, प्रयोग औरक्वालिटी आधारित प्रशिक्षण पर देना ही होगा /  ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमोंको उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़कर, इंडस्ट्री और प्रशिक्षण संस्थानोंको रोजगार योग्य बनाने से प्रतिभाओं का एक समूह तैयार कर उत्पादकताऔर नवाचार दोनों को बढ़ावा देना होगा/ आज भी भारत में सरल व्यापारएवं इन्नोवेशंस के लिए अनेकों सरकारी जटिलताओं में सुधारों के बावजूदनियमों में सुव्यवस्थितता और लालफीताशाही अभी भी गुलामी की जंजीरोंको तोड़ कर पारदर्शिता को बढ़ावा देने में पूरी तरह सफल नहीं हो पायी है/ इसमें बड़े सुधारों की आवश्यकता है / सरकारी नौकरियां चाहे चपरासीकी क्यों न हों, अभी भी उच्च प्रशिक्षित या उच्च शिक्षित युवाओं के लिएअति आकर्षण का केंद्र बनीं हुए हैं/ परमानेंट नौकरी के तिलिस्म अभी भीस्टार्टअप, इनोवेशन, कॉर्पोरेट सैलरी पर भारी पड़ रहे हैं जो देश किसंतुलित विकास की दर को बढ़ाने और युवा रोजगार के असंतोष को कमकरने में कुछ हद तक नाकाम रहे हैं /

अमेरिका, यूरोप, चीन और रूस जैसे देशों में सरकारी वनाम निजी रोजगारके लिए जो मॉडल बनाये हैं उनमें भारत अभी बहुत फिसड्डी है / भारत मेंसरकारी नौकरी में सुविधाओं की भरमार और उत्पादकता के साथजिम्मेदारी की कमजोर नीति पूरे तंत्र को देशी एवं विदेशी मंचों पर वैश्विकप्रतिस्पर्धात्मक बनाने से रोकती है/ भारत को चाहिए कि कर्मचारी चाहे वहनिजी क्षत्र का हो या सरकारी क्षेत्र का, सरकार की नजरों में कर्मचारीसिर्फ कर्मचारी होना चाहिए और इस हेतु सरकार दोनों के लिए कम सेकम स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा, महंगाई भत्ता, हाउसिंग जैसी सुविधाओं मेंसरकारी कर्मचारियों के साथ ही निजी कर्मचारियों के लिए भी नीतिबनाकर एक आनुपातिक संतुलन स्थापित कर सकती है/ आखिर गैरसरकारी कर्मचारी भी तो कहीं न कहीं सरकारी कर्मचारियों के भाई, बहिन, पुत्र, पुत्री, दोस्त एवं रिस्तेदार ही तो हैं /  क्या सामाजिक, आर्थिक एवंमनोवैज्ञानिक संतुलन सबकी जिम्मेदारी नहीं / भारत को आज़ादी के अमृतकाल में अब सरकारी क्षेत्र के कर्मचारी एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारी के बीचअसामान्य कुलीनता और अव्यावहारिक भेदभाव को मिटाना होगा ताकिसरकारी नौकरी के लालच को कम करके प्रोफेशनल कम्पेटेन्सी कामाहौल देश में बनाया जा सके/ सरकारी खजाने पर सबका अधिकारन्यासंगत, तर्कसंगत और विधानसम्वत होना चाहिए चाहे किसी एक कीसुविधाओं को न्याय सांगत कम कर दूसरे को क्यों न देना पड़े /

3. डिजिटल इंडिया के विकास इंजन को पारदर्शिता और दक्षता के लिएआत्मसात करना :

भारत की “डिजिटल इंडिया” पहल ने एक तकनीकी क्रांति को प्रज्वलितकिया है, जो एक परिवर्तित अर्थव्यवस्था का वादा करती है। लेकिन2024-25 में सतत विकास के लिए, हमें केवल उपभोग को बढ़ावा देने सेपरे भी देखना होगा। हमें यह भी देखना होगा कि कैसे डिजिटल नवाचारएक पारदर्शी और संपन्न सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा दे सकता है/

आज स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तकनीकी स्टार्टअप के लिएअनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) पर अनुदान और टैक्स छूट में निवेशएवं प्रमुख डिजिटल बुनियादी घटकों के लिए “मेक इन इंडिया” कोप्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिसे सरकारी लालफीताशाही मुक्तकर एक नवीन इको सिस्टम बनाया जा सकता है/ 

इसके अतिरिक्त डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिए  ई-कॉमर्सप्लेटफॉर्म और डिजिटल मार्केटिंग टूल का लाभ भी हरेक सूक्ष्म, लघु औरमध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को प्रशिक्षण देकर गावों तक पहुँचायाजानेसकता है ताकि विकास के मॉडल की रिवर्स इंजीनियरिंग कर शहर सेगांवों की ओर मोड़ा जा सके और गावों के प्रोडक्ट्स भी दुनियां के किसीभी कोने में बेचे जा सकें / 

यह सर्वविदित है कि तकनीकी शासन में पारदर्शिता लाती यानी मनुष्य सेज्यादा तकनीकी ईमानदार और ट्रांसपेरेंट भी होती है इसलिए सुरक्षित, छेड़छाड़-रोधी सरकारी डाटा रिकॉर्ड और लेनदेन के लिए क्लाउड बेस्डआर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, एवं ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का उपयोग करभ्रष्टाचार को भी कम कर सेवा वितरण दक्षता में भी सुधार लाया जासकता है।

जब डाटा की महत्ता बढ़ेगी तो हमें डेटा-संचालित नीति का निर्माण ही नहींवल्कि उसे आत्मसात भी करना होगा जो कि भारत में अभी जमीनी स्तरबहुत कमजोर है/  इससे आर्थिक रुझानों और उपभोक्ता व्यवहार कोसमझने के लिए बिग डेटा एनालिटिक्स तकनीकों का उपयोग भी कियाजा सकता है जो सरकार एवं सभी तंत्रों को डाटा आधारित द्रुत निर्णय लेनेमें मददगार साबित होगा/  ये सम्पूर्ण तंत्र डेटा-समर्थित नीतिगत निर्णयों मेंमदद कर वास्तविक समय की आर्थिक चुनौतियों का समाधान करनेमहत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।

4. नवाचार और निर्यात की सुढ़ृड़ता :

आज भारत को गैर परम्परागत ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जैवप्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) कोप्रोत्साहित करना चाहिए ताकि नए उद्योग और उच्च मूल्य वाले निर्याततैयार हो सकें। सन 2021 में भारत, जो वैश्विक स्टार्टअप पारिस्थितिकीतंत्र में तीसरा स्थान प्राप्त कर एक पावर हाउस बनने की ओर अग्रसर था, मगर 2023 में सबसे अधिक वित्त पोषित भौगोलिक क्षेत्रों में वैश्विकरैंकिंग में चौथे स्थान पर फिसल गया है जिसे आज सुधारने की जरुरत है /

इसके साथ ही भारत को निर्यात में भी विविधता लाने की भी जरुरत हैयानी कपड़ा और रत्न जैसे पारंपरिक क्षेत्रों से परे भारत के निर्यातपोर्टफोलियो में विविधता लाने से वैश्विक उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमकम हो जाएंगे। उच्च तकनीक वाली वस्तुओं और सेवाओं पर ध्यान केंद्रितकरने से वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की स्थिति बढ़ सकती है।

5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना :

भारत आज भी कृषि प्रधान देश है और कृषि क्षेत्र में इन्नोवेशंस एवंपरिवर्तन इसकी दो किडनियां हैं जिन्हें मजबूत रखना आज अर्थव्यवस्थाको संभाले रखने के लिए जरूरी है/  आज तकनीकी हस्तक्षेपों और बेहतरसिंचाई प्रणालियों के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने से न केवल खाद्यसुरक्षा बढ़ेगी बल्कि ग्रामीण आबादी के भीतर आय सृजन के नए अवसरभी पैदा होंगे। आज अनेकों उच्च शिक्षित लोग देश एवं विदेश की उच्चस्तरीय नौकरियां छोड़कर वैज्ञानिक खेती में सफलताओं के परचम लहरारहे हैं/ सरकार को इन तक पहुँचने की नीति बनानी चाहिए और उनकेमॉडल्स को आदर्श बनाकर ग्रामीण भारत में एक सकारात्मक माहौल पैदाकरना चाहिए /

इसके साथ ही ग्रामीण बुनियादी ढांचे का समुचित विकास करने यानीग्रामीण सड़कों, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और बाजार पहुंच में निवेश सेकिसान सशक्त होंगे, कृषि-प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीणमांग को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि उपरोक्त मल्टीमॉडल पर ध्यानकेंद्रित करके, भारत निवेश, नवाचार, नवीन नीति, नियति और कुशल युवामानव शक्ति द्वारा संचालित 2024-25 में निरंतर आर्थिक विकास दरहासिल कर सकता है। यह दृष्टिकोण न केवल अधिक लचीलीअर्थव्यवस्था बनाएगा बल्कि समावेशी एवं संतुलित विकास औरदीर्घकालिक समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। जहाँ उपभोक्ता खर्च एकप्रमुख मोनोटोनॉस चालक बना हुआ है, उस पर निर्भरता को कम करकेनवीन विकास मॉडल को बढ़ावा देने से भारत वैश्विक आर्थिकअनिश्चितताओं से निपटने और वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप मेंअपनी स्थिति मजबूत करने में सक्षम होगा।

सनद रहे कि यह सिर्फ एक परामर्शक खाका है/ सफलता प्रभावीकार्यान्वयन, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग, संतुलन औरउभरते डिजिटल एवं तकनीकी परिदृश्य में निरंतर अनुकूलन पर निर्भरकरेगी। भारत की जीडीपी का भविष्य सिर्फ अधिक “उपभोग” में नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार एवं डिजिटल पावर के माध्यम से अधिक”सृजन” में भी निहित है। अर्थात “उपभोग” एवं “सृजन” के दोनों पहियेअन्य पहियों एवं तंत्रों के साथ मिलकर ही देश को आर्थिक महाशक्ति बनासकते हैं/

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