भारतीयता को ध्यान में रखते हुए, नए आपराधिक कानून पीड़ित-केंद्रित बनने की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव के साथ लाए गए हैं। यह विचार गृह मंत्रालय एवं पत्र सूचना कार्यालय, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में पत्रकारों के लिए तीन नए आपराधिक कानूनों पर जयपुर में आयोजित कार्यशाला ‘वार्तालाप’ में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (पुलिस ट्रेनिंग) डॉ. मालिनी अग्रवाल ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि 1 जुलाई, 2024 से तीन नए आराधिक कानून देशभर में लागू हो जाएंगे।
डॉ. मालिनी अग्रवाल ने कहा कि आज साइबर अपराधों कि संख्या में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि नए आपराधिक कानून – भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, के 25 दिसंबर 2023 को कानून बनने के साथ ही भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत हुई है। तीन नए प्रमुख कानूनों का मकसद सजा देने की बजाय न्याय देना है। भारतीय आत्मा वाले इन तीन कानूनों से पहली बार हमारी आपराधिक न्यायिक प्रणाली भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से चलेगी। इन नए कानूनों में सूचना प्रौद्योगिकी पर विशेष ध्यान दिया गया है। उन्होंने कहा कि नए कानूनों के साथ आने वाले समय में फॉरेंसिक लैब की सुविधा को जिला स्तर पर भी स्थापित किया जाएगा।
पत्र सूचना कार्यालय की अपर महानिदेशक श्रीमती ऋतु शुक्ला ने कहा कि इस वार्तालाप का उद्देश्य नए कानूनों की जानकारी मीडिया के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचाना है, ताकि वे इन कानूनों के प्रति जागरूक हो सकें। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि नए कानून त्वरित न्याय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के सीडीटीआई से जुड़े समन्वयक सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जगमोहन शर्मा ने बताया कि नए आपराधिक कानून 1 जुलाई 2024 से प्रभावी होंगे। इन कानूनों के लागू होने के बाद FIR से लेकर अदालत के निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाएगी और भारत अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में आधुनिक तकनीक का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाला देश बन जाएगा। यह कानून ‘तारीख-पे- तारीख’ के चलन की समाप्ति सुनिश्चित करेंगे और देश में एक ऐसी न्यायिक प्रणाली स्थापित होगी जिसके जरिए तीन वर्षों के भीतर न्याय मिल सकेगा। उन्होंने बताया कि 35 धाराओं में समयसीमा निर्धारित की गई है। इलेक्ट्रॉनिक तरीके से शिकायत दायर करने के तीन दिन के भीतर FIR दर्ज करने का प्रावधान है, साथ ही यौन उत्पीड़न के मामलों में सात दिन के भीतर जांच रिपोर्ट देनी होगी। पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बताया कि भगोड़े अपराधियों की गैर-मौजूदगी के मामलों में 90 दिनों के भीतर केस दायर करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही आपराधिक मामलों में सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा। उन्होंने बताया कि नए आपराधिक कानून दंड-केंद्रित नहीं, न्याय केंद्रित हैं। छोटे-मोटे मामलों में सामुदायिक दंड का प्रावधान रखा गया है, 5000 रुपए से कम की चोरी के मामलों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है तथा छह अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान है।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के सीडीटीआई से जुड़े समन्वयक सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अशोक चौहान ने बताया कि भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध पर एक नया अध्याय लिखा गया है, जिसके अंतर्गत उनके खिलाफ अपराधों से संबंधित करीब 35 धाराएं हैं, जिनमें लगभग 13 नए प्रावधान हैं और शेष में कुछ संशोधन किए गए हैं। सामूहिक दुष्कर्म में 20 साल का कारावास/आजीवन कारावास और नाबालिग के सामूहिक दुष्कर्म में मौत की सजा/आजीवन कारावास, का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यौन संबंध के लिए झूठे वादे करना या पहचान छुपाना अब एक अपराध की श्रेणी में होगा। पीड़िता के घर पर किसी महिला अधिकारी की मौजूदगी में पीड़िता का बयान दर्ज करने का प्रावधान किया गया है, साथ ही पीड़िता के अभिभावकों की मौजूदगी में पीड़िता का बयान दर्ज करने का प्रावधान भी है। उन्होंने बताया कि पुलिस द्वारा तलाशी की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी अनिवार्य की गई है। साथ ही दुष्कर्म पीडिता के ई-बयान का प्रावधान भी किया गया है। इसके अलावा अदालत में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग पेश करने का प्रावधान किया गया है। इन कानूनों के अनुसार गवाह, अभियुक्त, विशेषज्ञ और पीड़ित अदालत में वर्चुअल माध्यम से पेश हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि भगोड़े अपराधी के दोषी पाए जाने पर 10 वर्ष या अधिक की सजा/आजीवन कारावास/मौत की सजा और भगोड़े अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर आवश्यक कदम उठाए जाने का प्रावधान किया गया है। साथ ही संगठित अपराधों पर नए प्रावधान बनाए गए हैं। साथ ही आतंकवाद को परिभाषित करते हुए इसके प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति को मजबूत किया गया है और आतंकवादी कृत्यों के लिए मृत्युदंड / आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
गृह मंत्रालय द्वारा नियुक्त रिसोर्स पर्सन एडवोकेट निशीथ दीक्षित ने कहा कि पुलिस की जांच से लेकर अदालत की कार्यवाहियों को डिजिटल किया जाएगा। नए कानूनों में ई-रिकॉर्ड का प्रावधान किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल होंगे। पीड़ित को 90 दिनों के भीतर सूचना प्रदान की जाएगी और 7 साल या उससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले मामलों में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य होगी। उन्होंने बताया कि राजद्रोह को निरस्त कर एवं देशद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसमें भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ कार्यों के लिए 7 साल तक की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बताया कि नव संशोधित आपराधिक कानून बेहद सरल हैं और सहजता के साथ अध्ययन करने पर इन्हें आसानी से समझ जा सकता है। उन्होंने कहा कि तीनों कानून सर्वोच्च न्यायालय के कई ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इन कानूनों के लागू होने से न्याय त्वरित गति से मिलेगा, साथ ही मुकद्दमों की संख्या भी कम होगी। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी मान्य होंगे।