लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत नहीं मिला और पार्टी 240 सीटों पर सिमट कर रहे थे भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्रीय नेतृत्व कर के कर्म पर चिंता और चिंतन करेंगे लेकिन आम इमाम का बीजेपी की हर को लेकर अलग-अलग आकलन है।
पीएम मोदी को भगवान की तरह पेश करना
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान की तरह पेश करने की कोशिश की, ऐसा लगा कि जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भगवान के अवतार हैं ।उनका खुद का हाव भाव भी कुछ ऐसा ही रहा। जब किसी लोकप्रिय नेता की छवि को इस तरह करने की कोशिश की जाती है, तब उनके विरोध में लोग स्वाभािवक रूप से आ जाते हैं । जब पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी को भारत पाक युद्ध के बाद दुर्गा के रूप में दिखाया गया ,तो कांग्रेस पार्टी को भी इसका नुकसान झेलना पड़ा। ऐसा ही कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ था। वह 2014 के बाद चुनाव में लगातार भाजपा को ऊंचाइयों पर पहुंचाते गए, जो भी कहते हुए वैसा होता गया जैसा उन्होंने कहा वैसा ही पार्टी में हुआ, तो लोगों को यह भ्रम हो गया कि जैसे कोई देवी शक्ति है जो उनके पास है और उनकी छवि किसी देवी या ईश्वर के रूप में उनके भीतर मौजूद है। कई स्थानों प्रदेशों में उनकी आरतियां होने लग गई । उनके भगवान की तरह पोस्टर बनने लग गए। लेकिन कभी भी बीजेपी के नेताओं ने या खुद पीएम मोदी ने यह नहीं कहा कि उन्हें ईश्वर नहीं उन्हें आम आदमी ही माना जाए ।इस छवि से भी पीएम मोदी को नुकसान हुआ।
संघ और बीजेपी से भी बड़े हुए मोदी
आज देश में बीजेपी जो भी है उसके पीछे संघ की बड़ी ताकत है । हमेशा संघ पर्दे के पीछे बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए काम करता है इस बार लोकसभा चुनाव में मोदी संघ और भाजपा दोनों से ऊपर हो गए बीजेपी की गारंटी की बजाय मोदी की गारंटी हो गई या नहीं वह पार्टी से भी बड़े हो गए फिर भाजपा के ही कुछ नेताओं ने यह कह दिय संघ की चुनाव में कोई भूमिका नहीं है यानी संघ के अस्तित्व को ही न करने की कोशिश की गई जिससे संघ के स्वयंसेवक अपनी ताकत से चुनाव में नहीं लगे जितने ताकत से लगभग मतदाताओं को भूत के अंदर तक लाते थे तो मतदान का प्रतिशत बढ़ा रहे थे इस बार मतदान का प्रतिशत घटना का कारण संघ के स्वयंसेवकों ने अपने आप को थोड़ा पीछे रखा बीजेपी के नेता इस भ्रम में रहेगी मोदी जी ने 400 पर का नारा दिया है पूरा मीडिया जरा फाड़ फाड़ कर 400 पर की बात कर रहा है तो 400 पर तो होना तय ही है कि बीजेपी के जो नेता थे बनाई वह मंत्री स्तर के हो या फिर ब्लॉक स्तर के वह तो तीन पर लगाकर अपनी राजनीतिक चमकाई रहे थे लेकिन बूंद तक मतदाताओं को लाने का काम करने वाले संघ के स्वयंसेवक इस बार सुस्त रहे शांत रहे तो कहीं ना कहीं भाजपा के बड़े नेताओं की संघ के खिलाफ की गई टिप्पणी भी एक बड़ा कारण माना जा सकता है यह संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि जब भी कोई व्यक्ति पार्टी से बड़ा हो जाता है या संगठन से बड़ा हो जाता है तो फिर संगठन और पार्टी के कार्यकर्ता उसके अहंकार को तोड़ने का काम करते हैं और इन चुनाव में यही हुआ।
दिग्गजों का ओवर कॉन्फिडेंस में होना
लोकसभा चुनाव से पूर्व ही भारतीय जनता पार्टी बिगेस्ट नेता इस भ्रम में थे कि पार्टी खुद के दम पर 370 सीट और सहयोगी दलों को मिलाकर 400 से ऊपर सीट जरूर जीतेगी, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह हो या जेपी नडडा हो, तमाम नेताओं के बयान इस ऑवरकॉन्फिडेंस और मजबूत कर दिया कि भाजपा 400 से ज्यादा सीट जीतने वाली है । जिससे तमाम कार्यकर्ता भी गफलत में रहे की मोदी जी ने 400 पार का नारा दिया है तो 400 पार तो करेंगे । इसीलिए कहीं न कहीं ये ऑवर कॉन्फिडेंस भी बीजेपी को बहुमत से पीछे रहने का बड़ा कारण बना।
संविधान बदलने और आरक्षण हटाने का मुद्दा
भाजपा सांसद ललन सिंह ,राजस्थान में लोकसभा उम्मीदवार ज्योति मिर्धा सहित कई भाजपा के ऐसे बड़े नेता थे, जिन्होंने सार्वजनिक सभाओं में कह दिया की यदि आरक्षण को बदलना है ,तो उन्हें 400 पार कराना होगा। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया और उन्होंने जनता के बीच इसे बड़ा मुद्दा बना दिया । यदि भारतीय जनता पार्टी इस बार सत्ता में आ गई तो मनुस्मृति लागू कर देगी, संविधान हटा देगी, आपका आरक्षण खत्म हो जाएगा । आप लोगों की सदियों पुरानी हालत हो जाएगी। यही कारण है कि एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों ने इस बात को गंभीरता से लिया और जो एससी, एसटी वर्ग विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ था ,वही एससी, एसटी वर्गी इन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो गया। पूरे देश भर में इस तरह का नेरेटिव बनाया गया, यदि भाजपा सरकार आई, मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश में आरक्षण हटा दिया जाएगा। संविधान बदल दिया जाएगा । जब मोदी और अमित शाह को लगा कि वास्तव में यह देश में बड़ा मुद्दा बन गया है, तब उन्होंने मोर्चा संभाला। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी हालांकि पीएम मोदी और अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आई तो एससी, एसटी ओबीसी का आरक्षण मुसलमान को दे दिया जाएगा । इसे थोड़ा डेंट तो कम हुआ लेकिन ज्यादा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ा । हिंदी बेल्ट में खासतौर पर इसका खासा असर देखा गया । भले ही पार्टी के नेता या राजनीतिक विश्लेषक इसको किसी दूसरे चश्मे से देख रहे हो और एससी, एसटी आरक्षण का मुद्दा और संविधान बदलने के मुद्दे को भाजपा के हार के कारणों में भी शामिल नहीं कर रहे हो, लेकिन आम जनता से बातचीत करने पर यह पता लगता है कि इन चुनावों में यह भी सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। यही कारण है कि इस बार बीजेपी और एनडीए को एससी, एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों से बहुत कम सीटों पर चुनाव जीतने का मौका मिला है । बीजेपी की को लगातार जब एससी एसटी का समर्थन मिल रहा था तो बीजेपी के नेताओं को चाहिए ताकि वह संयम बरतते और आरक्षण और संविधान विरोधी बातें जनता के बीच नहीं रखते तो परिणाम कुछ और ही होता ।
ओपीएस
देश में सरकारी कर्मचारी बड़ी संख्या है राजस्थान सहित कई प्रदेशों में जब कांग्रेस की सरकारी थी ,तो उन्होंने कर्मचारियों को मिलने वाली ओपीएस सुविधा को फिर से बहाल करने का वादा किया । लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इसको लेकर मजाक बनाया और अपने लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि ओपीएस को लेकर उनका स्टंट क्या है। इससे कर्मचारियों में भी थोड़ा विरोध रहा और कर्मचारी भी इसके ज्यादा पक्ष में नहीं रहे, जिससे भी भाजपा को लोकसभा चुनाव में नुकसान करना पड़ा।
राजस्थान में चिरंजीवी योजना को बंद करना
राजस्थान में चिरंजीवी योजना के तहत सभी वर्गों का चाहे वह गरीब हो, आमिर हो, किसी भी जाति धर्म का हो, राजस्थान का है तो उसको 25 लाख तक का इलाज मुफ्त में मिलता था। इसमें सरकारी और निजी अस्पतालों को भी शामिल किया गया । राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद में चिरंजीवी योजना को बंद कर दिया गया और आयुष्मान योजना को लागू कर दिया गया। हालांकि सरकार का कहना कि हमने योजना बंद नहीं की है। लेकिन हकीकत में सरकारी अस्पताल में भी आज चिरंजीवी योजना के तहत लोगों को जांच के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। दवा उन्हें फिर भी मिल जाती है लेकिन महंगी दवा महंगे, ऑपरेशन और महंगी जांच , जिसमें एमआरआई , सोनोग्राफी, सीटी स्कैन के लिए उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल में जाना पड़ गया। प्राइवेट अस्पतालों में तो चिरंजीवी कार्ड धारक का इलाज ही नहीं हो रहा ।उनके करोड़ों का भुगतान अटका हुआ है । आयुष्मान योजना के राजस्थान में अभी तक कार्ड नहीं बने नहीं ,कोई सरकार की तरफ से कोई अभियान चलाया गया कि चिरंजीव योजना के स्थान पर आयुष्मान कार्ड बनेगा, उसी का इलाज होगा। फिर आयुष्मान कार्ड सिर्फ उन लोगों के बनाए जाएंगे जो लोग उस दायरे में आते हैं ।बीपीएल, खाद्य सुरक्षा के लाभार्थी ही इसमें शामिल हो सकेंगे । प्रदेश की की 80 फ़ीसदी आबादी आयुष्मान योजना से वंचित रहेगी तो लोगों को लग रह तो लोगों को लग रहा था सरकार बनने के साथी यदि इस योजना को बंद कर दिया गया है तो केंद्र में सरकार बनने के बाद तो इस योजना को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा, तो आखिरकार इलाज कैसे होगा? राजस्थान में आरक्षण, संविधान बदलने ,चिरंजीव योजना को बंद करने जैसे कई बड़े मुद्दे हावी रहे, जिनके कारण भाजपा को 11 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।