बजट सत्र से पहले प्रदेश के बजट को लेकर सरकार बड़े पसोपेश में आ गई है. केंद्र का बजट राज्य के बजट से देरी से आने से भजनलाल सरकार को अनुमानित आधार पर बजट तैयार करना होगा और मुख्य असमंजस इसी को लेकर है. पेश है यह खास रिपोर्ट
सचिवालय में सीएम भजनलाल शर्मा के बजट पूर्व संवाद का दौर समाप्त होने को है…लेकिन इसी के साथ ही प्रदेश के बजट को लेकर अजीब स्थिति बन गई है. यह स्थिति अलग अलग मदो या योजनाओं में प्रावधान की जानेवाली राशि को लेकर है.
क्या है पसोपेश ?
राज्य सरकार का मुख्य पसोपेश बजट में अलग अलग मदो या योजनाओं में प्रावधान की जानेवाली राशि प्रस्तावित करने को लेकर है. दरअसल इस बार केंद्र का बजट 25 जुलाई या उसके आसपास पेश होना संभावित है. अक्सर यह होता आया है कि राज्य के पूर्ण बजट से पूर्व केंद्र का बजट पेश होता है. इससे उस बजट के आधार पर राज्य सरकार को यह पता चल जाता है कि केंद्र से संबंधित योजना के लिए कितनी राशि आवंटित होगी. इस राशि के अनुसार राज्य अपने बजट में राशि का प्रावधान करता है.
क्या होगी गतिविधि ?
अगले महीने राज्य सरकार विधानसभा का बजट सत्र बुला रही है. इसमें वित्त मंत्री दिया कुमारी प्रदेश की भजनलाल सरकार का पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी. राजस्थान की नई भजनलाल सरकार का पहला बजट सत्र 3 जुलाई से प्रस्तावित है. माना जा रहा है कि सरकार 10 जुलाई को अपना बजट पेश कर देगी. लेकिन अब एक अजीब स्थिति बन गई है. दरअसल केंद्र सरकार का बजट 25 जुलाई के आस-पास आना बताया जा रहा है. अब केंद्र के बजट से पहले राज्य सरकार बजट पेश करती है तो केंद्रीय बजट से इस वित्तीय वर्ष में मिलने वाली राशि का सही आकलन तब तक नहीं हो सकता है जब तक केंद्र सरकार अपना बजट पेश नहीं कर देती.
अब समस्या यह है कि मौजूदा सरकार का पहला बजट होने के चलते इसमें कुछ अहम घोषणाएं हो सकती हैं. सरकार ने अब तक पिछली सरकार की योजनाओं को बदला है. इसके अलावा नई योजनाओं का ऐलान भी करना होगा. इस सब के लिए नए सिरे से प्रावधान करने होंगे. यदि केंद्र की तरफ से राशि में कटौती ज्यादा हो जाती है तो उसी के अनुसार इन योजनाओं का खर्च भी घटाना पड़ सकता है. ऐसे में बजट सत्र में विपक्ष इसे मुद्दा भी बना सकता है.
केंद्र के बाद क्यूं नहीं ला पाएगी राज्य सरकार बजट ?
केंद्र सरकार यदि जुलाई के अंतिम सप्ताह में बजट पेश करती है तो राज्य सरकार उसके बाद अपना बजट नहीं ला सकती है. इसके पीछे कारण यह है कि राज्य सरकार का बजट पारित होने में कम से कम 14 वर्किंग डे लगते हैं. इसमें बजट पेश करने के बाद बजट पर बहस, वित्त मंत्री का रिप्लाई, कट मोशन व अनुपूरक अनुदान मांग जैसी प्रक्रियाएं पूरी करनी होती है. जबकि केंद्र सरकार में बजट पेश करने के बाद कट मोशन की प्रक्रिया संबंधित मंत्रालियों की कमेटियों को दी जाती है. इसलिए केंद्र सरकार का बजट जल्दी पारित हो जाता है.
राज्य सरकार जनवरी में वोट ऑन अकाउंट पेश कर चुकी है. वोट ऑन अकाउंट सिर्फ एक बार लिया जा सकता है वह भी लिमिटेड पीरियड के लिए ही हो सकता है. इसलिए अब सरकार को पूर्ण बजट ही पेश करना होगा. हालांकि केंद्रीय बजट में मिलने वाली राशि में घटत-बढ़त होती है तो इसे बाद में कम ज्यादा किया जा सकता है. संविधान में बजट सिर्फ अनुमान होते हैं. इसलिए ही इसे बाद में संशोधित किया जा सकता है. हर बार राज्य सरकारें ऐसा करती भी हैं. अनुपूरक अनुदान मांगों में इसे संशोधित किया जा सकता है
वोट ऑन अकाउंट में कोई पॉलिसी डिसीजन भी नहीं होते और न ही घोषणाएं की जाती हैं. इसलिए केंद्रीय बजट देरी से भी आता है तो भी राज्य सरकार को पहले ही बजट पेश करना होगा. हालांकि बाद में अनुपूरक अनुदान मांगों में इसे संशोधित किया जा सकता है.
बीते 2 दशकों में वोट ऑन अकाउंट के बाद केंद्र और राज्य के बजट की तारीख पर गौर करें तो केंद्र ने 8 जुलाई 2004 को तो राज्य ने 12 जुलाई 2004 को बजट पेश किया था. केंद्र ने जब 6 जुलाई 2009 को बजट पेश किया था तो राज्य 8 जुलाई 2009 को बजट पेश कर पाया था. जब केंद्र ने 10 जुलाई 2014 को बजट पेश किया था तब राज्य ने 14 जुलाई 2014 को बजट पेश किया. इसी तरह केंद्र ने 5 जुलाई 2019 को तो राज्य ने 10 जुलाई 2019 को बजट पेश किया.
यदि केंद्र से पहले बजट पेश करती है तो उसे केंद्र से मिल सकने वाली अनुमानित राशि के अनुसार राज्य की अनुमानित राशि का प्रावधान करना होगा.