Thursday, October 17, 2024

विधानसभा में राजस्थान के लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान बिल 2024 पेश, 2 अगस्त को चर्चा और पारित होने की संभावना,कांग्रेस विरोध में कर सकती है वाकआउट !

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आखिर भाजपा की मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को राजस्थान के लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान बिल 2024 संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल ने पेश कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि 2 अगस्त को इस बिल को कांग्रेस के विरोध के बावजूद बहुमत के आधार पर पारित कराया जाएगा। कांग्रेस इस बिल के विरोध में सदन से वाकआउट भी कर सकती !

राजस्थान के लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान बिल 2024 में मीसा और डीआईआर बंदियों को पेंशन, मेडिकल सुविधाओं और रोडवेज में फ्री यात्रा का प्रावधान किया है।आपातकाल में जो लोग माफी मांगकर जेल से छूटे थे, उन्हें पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं दी जाएंगी।

सरकार ने इसके लिए 40 करोड़ रुपए का बजट तय किया है। आपातकाल के दौरान 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक राजनीतिक, सामाजिक कारणों से जेल जाने वालों को लोकतंत्र सेनानी का नाम दिया है। लोकतंत्र सेनानी की मौत होने पर उसकी पत्नी या पति को पेंशन मिलेगी। मौत के 90 दिन के भीतर उन्हें आवेदन करना होगा।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने पहली कैबिनेट की बैठक में मीसा और डीआईआर बंदियों को हर महीने 20 हजार रुपए की पेंशन देने और अन्य सुविधाएं देने की घोषणा की थी। मीसा और डीआईआर बंदियों को अभी 20 हजार पेंशन, 4000 मेडिकल भत्ता और राजस्थान रोडवेज में फ्री यात्रा सुविधा मिलती है।

आपातकाल के दौरान डीआरआई, मिसा में बंद होने वालों को पेंशन की पात्रता जांचने के लिए जिला स्तर पर कमेटी बनाई जाएगी। इस कमेटी में प्रशासनिक अधिकारी के साथ विधायक भी होंगे। यह कमेटी पेंशन के आवेदनों की जांच कर पात्रता का फैसला करेगी।
लोकतंत्र सेनानियों को कलक्टर आई कार्ड जारी करेंगे। इन्हें 15 अगस्त, 26 जनवरी और राष्ट्रीय पर्वों पर होने वाले सरकारी समारोहों में बुलाया जाएगा। स्थानीय प्रशासन उन्हें निमंत्रण भेजेगा।
बिल के प्रावधानों के अनुसार आपातकाल में जो 30 दिन से ज्यादा जेल में रहे, लेकिन माफी मांगकर जेल से बाहर आए थे, उन्हें लोकतंत्र सेनानी नहीं माना जाएगा, उन्हें पेंशन का लाभ नहीं मिलेगा। गंभीर नैतिक अपराध और देशविरोधी गतिविधि में शामिल पाए जाने पर लोकतंत्र सेनानी पेंशन रद्द कर दी जाएगी।
1975-77 के आपातकाल के दौरान राजनैतिक या सामाजिक कारणों से राष्ट्रीय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम 1971(1971 का 26)(अब यह कानून निरस्त हो चुका) के तहत जिन्हें बंदी बनाया गया, उन्हें मीसा बंदी के रूप में जाना जाता है। इधर 1975-77 के दौरान भारत रक्षा नियम, 1971(डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स,1971) (यह कानून भी निरस्त हो चुका) के तहत जिन्हें बंदी बनाया गया, उन्हें डीआईआर बंदी के रूप में जाना जाता है।

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