1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग के आरक्षण को लेकर जो फैसला दिया है उसके संदर्भ में आसान शब्दों में कहा जा सकता है कि इन वर्गों की जो जातियां अभी तक भी आरक्षण का लाभ नहीं ले सकती है, उनके लिए आरक्षण का प्रतिशत निर्धारित किया जाएगा। इसी प्रकार जिन परिवारों ने एक या दो बार आरक्षण का लाभ प्राप्त कर लिया है, उन्हें आरक्षण की व्यवस्था से बाहर कर दिया जाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि देश की सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने वाला है। हमारे संविधान निर्माताओं ने आरक्षण की व्यवस्था इसलिए की थी कि ताकि पिछड़े वर्ग को भी सरकारी नौकरियां मिल सके, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग में ही अमीर और गरीब की खाई बन गई है। इन दोनों वर्गों में जिन जातियों के लोगों ने एक बार आरक्षण का लाभ प्राप्त कर लिया, फिर उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक ही परिवार में दादा से लेकर पोता तक आईएएस, आईपीएस अथवा अन्य प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत हो गए। चूंकि ऐसे परिवार के युवा ही इंग्लिश मीडिया स्कूलों में पढ़े और फिर कोचिंग सेंटरों के माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाएं दी। जबकि एससी एसटी वर्ग की जिन जातियों को एक बार भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है उन परिवारों के बच्चे या तो पढ़ाइर्ट कर ही नहीं रहे है या फिर सरकारी स्कूलों में नि:शुल्क शिक्षा, मिडडे मील आदि की सुविधा के साथ पढ़ाई कर रहे हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले और इंग्लिश मीडिया के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्वाभाविक है कि जब प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम सामने आएगा तो इंग्लिश मीडिया वाले युवा को ही आरक्षित कोटे में से नौकरी मिल जाएगी। यह बात पहले भी उठी है कि जिन परिवारों ने एक या दो बार आरक्षण का लाभ प्राप्त कर लिया है उन्हें भविष्य में आरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया जाए। लेकिन देश में वोटों की राजनीति के चलते ऐसा संभव नहीं हुआ। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा का फैसला दे दिया है तो फिर उन परिवारों को आगे आना चाहिए जो अभी तक भी आरक्षण के लाभ से वंचित है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एससी एसटी वर्ग में आज भी ऐसी जातियां है जिनके सदस्य दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर पा रहे, जबकि दूसरी ओर आरक्षण का लाभ बार बार लेने वाले परिवार करोड़ों नहीं अरबों की संपत्तियों के मालिक है।
सवाल उठता है कि एससी एसटी वर्ग के जिस परिवार के पास आज करोड़ों रुपयों की संपत्तियां है क्या उन्हें आरक्षण की जरूरत है? असल में अब इन्हीं दोनों वर्गों के उन परिवारों के आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए जिन्हें अभी तक भी नहीं मिला है। यदि आजादी के बाद एससी एसटी वर्ग की जातियों को समान रूप से आरक्षण का लाभ मिल जाता तो आज देश में एससी एसटी वर्ग का एक भी परिवार सरकारी नौकरी से वंचित नहीं रहता। इसे एससी एसटी वर्ग में सामाजिक भेदभाव ही कहा जाएगा कि एक परिवार के चार पांच सदस्य सरकारी नौकरियों में जबकि दूसरे परिवार के एक भी व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं मिली है, वंचित परिवारों को तभी फायदा होगा, जब लाभार्थी परिवारों को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर देश के राजनीतिक दलों को भी अपनी राय देनी चाहिए। यदि राजनीतिक दलों को एससी एसटी की अतिपिछड़ी जातियों के लोगों की चिंता है तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करना चाहिए। ऐसा न हो एससी एसटी के आरक्षण की मलाई खाने वाले परिवार एकजुट हो जाए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की क्रियान्विति न हो। फैसले की क्रियान्विति के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं को अति पिछड़ी जातियों को एकजुट कर आगे लाना चाहिए।