राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी)पेपर लीक प्रकरण ने एक बार फिर आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में पूर्व आरपीएससी सदस्य रामू राम राईका की गिरफ्तारी ने इस विवाद को और गहरा कर दिया है। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने आरपीएससी को भंग करने की मांग उठाई है, जिस पर कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने उन्हें इसका समाधान बताने को कहा है। कृषि मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने भी आरपीएससी के पूर्व अध्यक्ष शिव सिंह की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए और कहा कि आरएएस की परीक्षा में भी व्यापक दान ली हुई है। इसकी जांच होगी तो निश्चित तौर पर कई राजनीतिक पर भी आच जाएगी। इस मुद्दे पर कई सवाल खड़े होते हैं:
क्या आरपीएससी को भंग किया जा सकता है?
आरपीएससी एक संवैधानिक संस्था है, जिसका गठन संविधान के तहत हुआ है। इसे भंग करना आसान नहीं है। आरपीएससी को भंग करने के लिए राज्य सरकार को विधानसभा में प्रस्ताव पास कराना होगा, जिसे राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। अंतिम निर्णय राष्ट्रपति का होगा। किसी भी राज्य में लोक सेवा आयोग को विवाद के चलते भंग करने का कोई मिसाल नहीं है।
क्या राज्य सरकार के पास आरपीएससी को भंग करने का अधिकार है?
राज्य सरकार के पास आरपीएससी को भंग करने का अधिकार नहीं है। आरपीएससी जैसी संस्थाओं का नियंत्रण पूरी तरह से राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकार में होता है। राज्य सरकार केवल अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कर सकती है, वो भी राज्यपाल की मंजूरी के बाद। किसी सदस्य या अध्यक्ष को बर्खास्त करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास होता है।
आरपीएससी अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति और बर्खास्तगी के नियम क्या हैं ?
आरपीएससी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, और इनका कार्यकाल 6 साल या 62 वर्ष की उम्र तक रहता है, जो भी पहले हो। उन्हें बर्खास्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट या राष्ट्रपति द्वारा जांच करवाई जाती है। अगर किसी सदस्य पर कदाचार या अनियमितता साबित हो जाती है, तो उन्हें हटाया जा सकता है।
आरपीएससी के इतिहास में विवादों और भंग करने की मांगें कब उठीं ?
आरपीएससी पहले भी विवादों में रहा है। 2012 में हबीब खान गौरान के कार्यकाल के दौरान भी पेपर लीक प्रकरण और अन्य अनियमितताओं के आरोप लगे थे, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इस बार फिर से रामू राम राईका और बाबूलाल कटारा की गिरफ्तारी ने आयोग को सवालों के घेरे में ला दिया है।
रामू राम राईका की भूमिका औरआरपीएससी में नियुक्ति कैसे हुई ?
रामू राम राईका को 2018 में आरपीएससी का सदस्य बनाया गया था, और उनका कार्यकाल 2022 तक रहा। उनके कार्यकाल में 24 भर्तियों पर अब संदेह जताया जा रहा है। उनकी नियुक्ति के पीछे एक राजनीतिक सिफारिश का असर बताया जाता है, जो उनके करीबी राजनेताओं की वजह से संभव हुई। राईका की राजनीति में गहरी पकड़ थी और वे भाजपा के नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध रखते थे।
आरपीएससी की मौजूदा स्थिति और सुधार की दिशा में क्या किया जा सकता है ?
विशेषज्ञों के मुताबिक आरपीएससी को भंग करना कोई समाधान नहीं है। संस्था में आई खामियों को दूर कर, योग्य और ईमानदार लोगों की नियुक्ति की जानी चाहिए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे। आरपीएससी की भर्तियों में सुधार के लिए कड़ी निगरानी और परीक्षा प्रक्रियाओं को और अधिक सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
आरपीएससी भंग करने का निर्णय अत्यंत जटिल और संवैधानिक प्रक्रिया है। पेपर लीक मामलों में सुधार के लिए बेहतर है कि संस्थान की पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए नए नियम लागू किए जाएं, बजाय इसे भंग करने के।