Delhi- हरियाणा सरकार की नई कैबिनेट बैठक में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है, जो राज्य की अनुसूचित जातियों (एससी) के बीच आरक्षण के उपवर्गीकरण से संबंधित है। इस फैसले के तहत एससी आरक्षण के 20% कोटे में से 36 वंचित जातियों को आधा यानी 10% आरक्षण मिलेगा। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त 2024 के आदेश के बाद आया, जिसमें अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के उपवर्गीकरण की अनुमति दी गई थी।
उपवर्गीकरण का इतिहास और सामाजिक प्रभाव
आजादी के बाद, हमारे संविधान निर्माताओं ने समाज के कमजोर और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को शैक्षिक और नौकरी के अवसरों में आरक्षण का अधिकार दिया गया। भारत में आरक्षण प्रणाली का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। संविधान सभा ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी ताकि समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में शामिल किया जा सके। समय के साथ, कई राज्य सरकारों ने आरक्षण के विभिन्न रूपों को लागू किया, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 1994 में हरियाणा सरकार द्वारा लाया गया एससी आरक्षण का उपवर्गीकरण था। हालांकि, इसे 2006 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने खत्म कर दिया था।
अब इस फैसले को पुनर्जीवित करते हुए हरियाणा सरकार ने 36 वंचित जातियों के लिए आधा आरक्षण निर्धारित किया है। इससे राज्य की अनुसूचित जातियों के भीतर वर्गीकरण का नया दौर शुरू हुआ है, जो समाज में गहरे विभाजन और असमानता को दर्शाता है।
राजनीतिक और सामाजिक स्थिति
हरियाणा का यह फैसला राज्य की राजनीति में एक अहम मुद्दा बन सकता है। खासकर वंचित जातियों के प्रतिनिधित्व को लेकर चल रही बहस और आगामी चुनावों में इस फैसले के प्रभाव से समाज में नई धाराएं उभर सकती हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे दलित समाज को आपस में बांटने की साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि इस फैसले से दलितों के बीच मतभेद बढ़ सकते हैं, जिससे सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंच सकता है।
इसके साथ ही, राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों पर भी इसका असर हो सकता है, जहां एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण की मांग पहले से ही जोर पकड़ रही है। राजस्थान में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 17.83% है, और हरियाणा के फैसले के बाद यहां भी यह मुद्दा आगामी उपचुनावों में उभर सकता है।
राज्यवार स्थिति और आरक्षण का प्रभाव
भारत के विभिन्न राज्यों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण की अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में एससी-एसटी की आबादी का बड़ा हिस्सा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 20.17% है, जबकि पंजाब में यह 31.94% तक पहुंचती है, जो पूरे देश में सबसे अधिक है। इन राज्यों में आरक्षण का मुद्दा न केवल सामाजिक, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक संवेदनशील है।
इस उपवर्गीकरण का सबसे गहरा प्रभाव शिक्षा, रोजगार और समाज के विभिन्न तबकों में देखने को मिलेगा। एससी वर्ग की वंचित जातियों को आरक्षण का आधा हिस्सा मिलने से उन्हें नौकरियों और अन्य क्षेत्रों में ज्यादा अवसर मिलेंगे, लेकिन इससे एससी वर्ग की अन्य जातियों में असंतोष की स्थिति भी पैदा हो सकती है, जिनके लिए अब केवल 10% आरक्षण ही शेष रहेगा।
दीर्घकालिक प्रभाव: राजनीतिक और सामाजिक परिणाम
हरियाणा सरकार का यह फैसला पूरे देश में एक नज़ीर बन सकता है। अन्य राज्यों में भी एससी और एसटी आरक्षण के उपवर्गीकरण की मांग बढ़ सकती है। खासकर राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश, जहां एससी-एसटी की जनसंख्या महत्वपूर्ण है, वहां यह मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी एजेंडा बन सकता है।
राजनीतिक रूप से, यह उपवर्गीकरण दलित राजनीति में नए समीकरण बना सकता है। एससी वर्ग के भीतर से वंचित जातियों का सशक्तिकरण होने से न केवल सामाजिक स्तर पर परिवर्तन आएगा, बल्कि राजनीतिक पार्टियों के समीकरण भी बदलेंगे। कांग्रेस, बीजेपी, और बसपा जैसी पार्टियां इस फैसले का लाभ लेने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव कर सकती हैं।
इस फैसले का युवाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हरियाणा सरकार के इस फैसले का सबसे बड़ा प्रभाव राज्य के युवाओं पर पड़ेगा। नौकरी के अवसरों और उच्च शिक्षा में आरक्षण के आधार पर मिलने वाले लाभों में नए वर्गीकरण के कारण प्रतियोगिता का स्तर बढ़ सकता है। वंचित जातियों के युवा इससे लाभान्वित होंगे, लेकिन साथ ही अन्य जातियों के बीच असंतोष भी उभर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और भविष्य की दिशा
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों के भीतर उपवर्गीकरण की अनुमति मिली है। यह एक लंबी बहस का हिस्सा है, जो समाज में जातिगत असमानताओं को और अधिक गहराई से देखने की जरूरत पर बल देती है। हरियाणा सरकार का यह कदम एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो यह दर्शाता है कि समाज में व्यापक परिवर्तन लाने के लिए नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है।
हरियाणा सरकार का यह फैसला अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मौजूदा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है। इसका प्रभाव सिर्फ हरियाणा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में देखने को मिलेगा। राजनीतिक दलों के लिए यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, और समाज के विभिन्न वर्गों में भी इसके प्रभाव व्यापक होंगे। अब यह देखना होगा कि इस फैसले के बाद अन्य राज्य और केंद्र सरकारें किस तरह की नीतिगत पहल करती हैं।