Saturday, October 19, 2024

सुप्रीम कोर्ट का बाल विवाह पर सख्त रुख: जानिए क्या हैं नए निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इसे बच्चों के अधिकारों का हनन बताते हुए, सरकारों को सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने 141 पन्नों का फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, बाल विवाह बच्चों की स्वतंत्रता, पसंद, आत्मनिर्णय और बचपन का आनंद छीन लेते हैं। ये संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

राजस्थान में हर साल कुल शादियों में 25% बाल विवाह होते हैं। यह आंकड़ा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 से लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया है।

कोर्ट ने ‘बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) विधेयक’ की बात की, जो 21 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को और सशक्त बनाना है ताकि विभिन्न पर्सनल लॉ के चलते इस कानून पर असर न पड़े।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि हर जिले में चाइल्ड मैरिज प्रिवेंशन ऑफिसर नियुक्त किया जाए। इसके साथ ही कलेक्टर और एसपी को भी इस मामले में जवाबदेह बनाया गया है। राज्यों को फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश भी दिया गया है, ताकि ऐसे मामलों का जल्द निपटारा हो सके।

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि बाल विवाह से लड़कियों का बचपन और उनका अधिकार छीन जाता है। शादी के बाद उनसे बच्चों को जन्म देने की उम्मीद की जाती है और उनके आत्मनिर्णय का अधिकार समाप्त हो जाता है।

कोर्ट ने ‘बाल विवाह मुक्त गांव’ की पहल का भी सुझाव दिया है। जिस तरह ‘खुले में शौच मुक्त गांव’ बनाए गए थे, उसी तर्ज पर बाल विवाह मुक्त गांव बनाए जाएंगे। ऐसे गांवों को सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को स्कूलों, पंचायतों और धार्मिक संस्थाओं में जागरूकता कार्यक्रम चलाने का भी निर्देश दिया है। साथ ही, स्कूली पाठ्यक्रम में ‘सेक्स एजुकेशन’ जोड़ने की सिफारिश की गई है, ताकि बच्चों को बाल विवाह और इसके दुष्परिणामों की जानकारी दी जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को एक साल बाद स्टेटस रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। यह एक बड़ा कदम है जो न केवल बाल विवाह रोकने में मदद करेगा बल्कि समाज में जागरूकता बढ़ाएगा। अब यह देखना होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें इन दिशा-निर्देशों को कितनी प्रभावी ढंग से लागू करती हैं।

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