Home लेटेस्ट खबरें Maharashtra Election 2024: मराठवाड़ा में महायुति की सियासी जंग मुश्किल, भाजपा की रणनीति फेल

Maharashtra Election 2024: मराठवाड़ा में महायुति की सियासी जंग मुश्किल, भाजपा की रणनीति फेल

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महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव की सियासी लड़ाई आक्रामक होती जा रही है। सत्ता में बने रहने के लिए महायुति हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन राज्य के सबसे अहम क्षेत्र मराठवाड़ा में उसकी रणनीति अब तक बेअसर साबित हो रही है। भाजपा की पूरी चाणक्य नीति इस इलाके में विफल हो चुकी है, और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मेहनत भी रंग नहीं ला रही।

मराठा आरक्षण आंदोलन ने बढ़ाई मुश्किलें

मराठवाड़ा हाल के वर्षों में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर सबसे उग्र क्षेत्र बना हुआ है। बीते साल आरक्षण आंदोलन की आग भड़कने के बाद यहां स्थिति तनावपूर्ण रही। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मनोज जरांगे ओबीसी आरक्षण के तहत मराठा समुदाय को शामिल करने की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिंदे ने उन्हें मनाने के लिए जालना तक का दौरा किया, लेकिन नाराजगी कम नहीं हुई।

भाजपा के लिए मुश्किलें

मराठवाड़ा में लोकसभा की आठ और विधानसभा की 46 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) ने तीन-तीन सीटें जीतीं, जबकि एनसीपी (शरद गुट) को एक और शिंदे गुट को एक सीट मिली। भाजपा अपना खाता खोलने में असफल रही। विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने 16 सीटें जीती थीं, जबकि शिवसेना (तब एकीकृत) ने 12 सीटें हासिल की थीं। कांग्रेस और एनसीपी को आठ-आठ सीटें मिलीं।

कांग्रेस का पुराना गढ़

मराठवाड़ा कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है, जिसने राज्य को शिवाजीराव पाटिल, शंकरराव चव्हाण, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण जैसे मुख्यमंत्री दिए। हालांकि, भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन और उसके बाद की राजनीति के जरिए अपनी पकड़ बनानी शुरू की। बावजूद इसके, मराठा आरक्षण आंदोलन के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की स्थिति मजबूत हुई है।

मुस्लिम और मराठा वोटर्स का प्रभाव

मराठवाड़ा में मुस्लिम आबादी भी महत्वपूर्ण है, जो कुल वोटर्स का करीब 15 फीसदी है। यह इलाका हैदराबाद के निजाम के शासन का हिस्सा रहा है, और यहां मराठा और मुस्लिम समुदाय का सियासी असर देखा जाता है। बीते चुनावों में मराठा, मुस्लिम और दलित मतदाताओं ने महायुति के खिलाफ मतदान किया, जिससे भाजपा को भारी नुकसान हुआ। बीड़ सीट पर भाजपा की दिग्गज नेता पंकजा मुंडे तक हार गईं।

किसानों की चुनौतियां

मराठवाड़ा एक कृषि प्रधान इलाका है, जहां की 65 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। यह क्षेत्र पानी की कमी और सूखा प्रभावित है, जिससे किसान आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याएं भी सामने आती रही हैं। इन चुनौतियों के बीच महायुति के लिए इस क्षेत्र में पैठ बनाना कठिन होता जा रहा है।

निष्कर्ष

मराठवाड़ा में मराठा आरक्षण और किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा और महायुति की सरकार को यहां के जटिल सामाजिक समीकरणों से निपटने के लिए नई रणनीति बनानी होगी, अन्यथा चुनाव में उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है।

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