22 साल पुराने मामले में भाजपा विधायक कालीचरण सराफ को बड़ी राहत मिली है। इस केस को लेकर राजस्थान की सियासत गरमाई हुई है। आज के इस वीडियो में हम समझेंगे इस केस के पीछे की कहानी, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स, और सरकार के इस फैसले के राजनीतिक मायने।
दरअसल, साल 2002 में जयपुर के बापू नगर स्थित जनता स्टोर पर निगम द्वारा चालान कार्रवाई के दौरान तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आरोप लगाया था कि कालीचरण सराफ ने उनके हाथ से दस्तावेज फाड़ दिए और उनकी कार के आगे लेट गए।
यह मामला 22 सालों से कोर्ट में लंबित था। सराफ को इस दौरान विशेष अदालत में भी पेश होना पड़ा। इस मामले में पूर्व पार्षद इंद्र संघी, धर्मदास मोटवानी और बसंत चौधरी का भी नाम शामिल था।
वर्तमान भाजपा सरकार ने इस मामले को वापस लेने का फैसला किया। गृह विभाग ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की मंजूरी के लिए भेज दिया है।
आपको बतादें, कालीचरण सराफ ने विशिष्ट सचिव अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष अर्जी लगाई थी। जांच के बाद समिति ने मामला वापस लेने की सिफारिश की।
ऐसे मामलों में क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स
- सेक्शन 321 का प्रावधान जिसके तहत
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत राज्य सरकार किसी आपराधिक मामले को वापस ले सकती है। - मामले में साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया.
तत्कालीन सीजेआई एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने स्पष्ट किया था कि सांसद-विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिया जा सकता। - गाइडलाइन्स:
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया था कि केस वापस लेने के पीछे की मंशा को पारदर्शी रखा जाए।
राजनीतिक संदर्भ की अगर बात करें तो पिछली कांग्रेस की सरकार ने लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला सहित 40 भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस लिए थे।
भाजपा सरकार का ये पहला केस है..वर्तमान भजनलाल भाजपा सरकार के एक साल के कार्यकाल में कालीचरण सराफ का मामला पहला ऐसा केस है जिसे वापस लिया जा रहा है।
गौरतलब है कि
- राजस्थान में कुल लंबित मामले:
राजस्थान में 2023 तक विधायकों और सांसदों के खिलाफ 57 मामले लंबित हैं। - सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
2017 से अब तक 500 से ज्यादा मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मंजूरी की सिफारिश की है। - और अगर सरकारों का रिकॉर्ड देखें तो
पिछले 10 वर्षों में, राज्य सरकारों ने 60% मामलों को राजनीतिक आधार पर वापस लिया।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के बाद यह देखना जरूरी है कि सरकार ने यह फैसला कानून के हित में लिया है या राजनीतिक लाभ के लिए।
अब देखना होगा कि क्या यह मामला हाईकोर्ट से मंजूरी पा सकेगा?