सियासत में किसान का बेटा, जिसने देश की राजनीति में कई ऐसे किस्से लिखे, जो आज भी सबक हैं। ये कहानी है चौधरी चरण सिंह की, जिन्हें ‘किसानों का मसीहा’ कहा जाता है। आज चौधरी चरण सिंह की जयंति है, किसान दिवस पर जानते हैं किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से जुड़ें अनसुने किस्से.
23 दिसंबर, यानि आज ही के दिन 1902 में। मेरठ के नूरपुर गांव में एक किसान परिवार में जन्मे चौधरी साहब का सपना था—किसानों की आवाज़ बनना। पढ़ाई में अव्वल, इतिहास और कानून की डिग्री लेकर, उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया।
1937 में बागपत की छपरौली सीट से विधायक बनने वाले चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। यूपी में भूमि सुधार के कानून बनाकर उन्होंने किसानों के मसीहा की छवि बनाई। लेकिन कांग्रेस की नीतियों से नाराज़ होकर उन्होंने अपना रास्ता अलग कर लिया।
1967 में यूपी के मुख्यमंत्री बने और प्रदेश में पहली बार कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। गठबंधन की राजनीति और सियासी उठापटक ने उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
इमरजेंसी के बाद 1977 में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने और चौधरी चरण सिंह गृह मंत्री। यहीं पर उन्होंने वो फैसला लिया, जिसने भारतीय राजनीति को हिला दिया। इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी।
करप्शन के आरोप में 3 अक्टूबर 1977 को इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया। लेकिन अगले ही दिन उन्हें जमानत मिल गई। राजनीति का खेल यहीं नहीं रुका। दो साल बाद, वही इंदिरा गांधी, जिन्होंने कभी गिरफ्तारी झेली थी, उनके समर्थन से चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लाल किले से भाषण दिया, लेकिन संसद में विश्वास प्रस्ताव का सामना किए बिना ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वजह—इंदिरा गांधी का समर्थन वापस लेना।
उन्होंने खुद बताया कि इंदिरा गांधी चाहती थीं कि उनके बेटे संजय गांधी के खिलाफ केस वापस लिए जाएं। लेकिन चौधरी साहब को ये मंजूर नहीं था। उन्होंने इस्तीफा दे दिया और इतिहास में दर्ज हो गए बतौर प्रधानमंत्री, जिन्होंने कभी संसद का मुंह नहीं देखा।
इस्तीफे के बाद उन्होंने लोकदल का गठन किया और किसानों की आवाज़ बने रहे। 29 मई 1987 को इस महान नेता ने दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन उनका सपना आज भी किसानों की हर आवाज़ में गूंजता है।
किसान दिवस पर चौधरी चरण सिंह को श्रद्धांजलि। ये कहानी सिर्फ उनके संघर्ष की नहीं, बल्कि हर किसान की जीत की है।