भारतीय चुनाव आयोग की आज 12 बजे दिल्ली में प्रैस कॉन्फ्रेंस हो रही है, जिसमें संभवत आज 5 राज्यों में चुनाव की घोषणा कर दी जाएगी और इसके पश्चात कल से चुनाव आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी!
मुक्त और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों को एक उत्सव जैसा माना जाता है और सभी सियासी दल तथा वोटर्स मिलकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। चुनावों की इस आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में हवा बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आजमाते हैं। ऐसे माहौल में सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल वोटर्स के बीच जाते हैं। ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखने के लिये सभी को बराबर का मौका देना एक बड़ी चुनौती बन जाता है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम करती है।
चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही यह लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है।
दरअसल ये वो दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है। साथ ही सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के मकसदों में शामिल है।
आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया। इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी। इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन कमोबेश होता रहा है।
गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।
आदर्श आचार संहिता की आवश्यकता क्यों पड़ी?
एक ज़माना था, जब चुनावों के दौरान दीवारें पोस्टरों से पट जाया करती थीं। लाउडस्पीकर्स का कानफोडू शोर थमने का नाम ही नहीं लेता था। दबंग उम्मीदवार धन-बल के ज़ोर पर चुनाव जीतने के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते थे। चुनावी वैतरणी पार करने के लिये साम, दाम, दंड, भेद का सहारा खुलकर लिया जाता था। बूथ कैप्चरिंग करने और बैलट बॉक्स लूट लेने जैसी घटनाएँ भी आम थीं। सैकड़ों की संख्या में लोग चुनावी हिंसा के दौरान हताहत होते थे। तब चुनावों में शराब और रुपए बाँटने का खुला खेल चलता था। ऐसे हालातों में आदर्श आचार संहिता रामबाण तो नहीं, लेकिन आशा की किरण बनकर ज़रूर सामने आई।
अब कहीं पर भी चुनाव होने पर आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है और इसका सबसे बड़ा मकसद चुनावों को पारदर्शी तरीके से संपन्न कराना होता है।
इसके अलावा समय से पहले विधानसभा का विघटन हो जाने पर भी आदर्श आचार संहिता में प्रावधान किये गए हैं। इनके तहत कामचलाऊ राज्य सरकार और केंद्र सरकार राज्य के संबंध में किसी नई योजना या परियोजना का ऐलान नहीं कर सकती है।
चुनाव आयोग को यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के एस.आर. बोम्मई मामले में दिये गए ऐतिहासिक फैसले से मिला है। 1994 में आए इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कामचलाऊ सरकार को केवल रोज़ाना का काम करना चाहिये और कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से बचना चाहिये।
आदर्श आचार संहिता की विशेषता
भारत में होने वाले चुनावों में अपनी बात वोटर्स तक पहुँचाने के लिये चुनाव सभाओं, जुलूसों, भाषणों, नारेबाजी और पोस्टरों आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के मद्देनज़र आदर्श आचार संहिता के तहत क्या करें और क्या न करें की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन हम बात उन्हीं मुद्दों पर करेंगे, जो आदर्श आचार संहिता को इतना अहम बना देते हैं।
वर्तमान में प्रचलित आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिये दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
सबसे पहले तो आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकारों और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।
सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते हैं।
आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिये कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिये न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान करने की मनाही है।
मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती।
सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किये जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है।
यदि कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके अलावा चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिये भी गाइडलाइंस बनाई गई हैं।
किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिये चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है और इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है।
हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होना चाहिये। इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिये।
इन सारी कवायदों का मकसद सत्ता के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाकर सभी उम्मीदवारों को बराबरी का मौका देना है।
आदर्श आचार संहिता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का नज़रिया
इस मुद्दे पर देश की आला अदालत भी अपनी मुहर लगा चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय इस बाबत 2001 में दिये गए अपने एक फैसले में कह चुका है कि चुनाव आयोग का नोटिफिकेशन जारी होने की तारीख से आदर्श आचार संहिता को लागू माना जाएगा।
इस फैसले के बाद आदर्श आचार संहिता के लागू होने की तारीख से जुड़ा विवाद हमेशा के लिये समाप्त हो गया।
अब चुनाव अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद जहाँ चुनाव होने हैं, वहाँ आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है।
यह सभी उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों तथा संबंधित राज्य सरकारों पर तो लागू होती ही है, साथ ही संबंधित राज्य के लिये केंद्र सरकार पर भी लागू होती है।
जब डिजिटलीकरण और हाई-टेक होने का दौर चल रहा हो तो भला चुनाव आयोग क्यों पीछे रहता। आदर्श आचार संहिता को और यूज़र-फ्रेंडली बनाने के लिये कुछ समय पहले चुनाव आयोग ने ‘cVIGIL’ एप लॉन्च किया। तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिज़ोरम और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
cVIGIL के ज़रिये चुनाव वाले राज्यों में कोई भी व्यक्ति आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की रिपोर्ट कर सकता है। इसके लिये उल्लंघन के दृश्य वाली केवल एक फोटो या अधिकतम दो मिनट की अवधि का वीडियो रिकॉर्ड करके अपलोड करना होता है।
उल्लंघन कहाँ हुआ है, इसकी जानकारी GPS के ज़रिये ऑटोमेटिकली संबंधित अधिकारियों को मिल जाती है।
शिकायतकर्त्ता की पहचान गोपनीय रखते हुए रिपोर्ट के लिये यूनीक आईडी दी जाती है। यदि शिकायत सही पाई जाती है तो एक निश्चित समय के भीतर कार्रवाई की जाती है।
यह तो बात हुई इस एप के फायदों की, लेकिन हम सब यह भी जानते हैं कि नफे के साथ नुकसान भी जुड़ा होता है। इसी के मद्देनज़र इस एप के गलत इस्तेमाल को रोकने के भी इंतज़ाम किये गए हैं।
यह एप केवल आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के बारे में काम करता है। तस्वीर लेने या वीडियो बनाने के बाद यूज़र्स को रिपोर्ट करने के लिये केवल पाँच मिनट का समय मिलता है और इसमें पहले से ली गई फोटोज़ या वीडियो अपलोड नहीं किये जा सकते।
हाई-टेक होने की दौड़ में cVIGIL एप के अलावा चुनाव आयोग ने और कई एडवांस तकनीकों को भी अपनाया है। इनमें नेशनल कंप्लेंट सर्विस, इंटीग्रेटेड कॉन्टैक्ट सेंटर, सुविधा, सुगम, इलेक्शन मॉनिटरिंग डैशबोर्ड और वन वे इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट आदि शामिल हैं।
चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता तथा अन्य उपायों के ज़रिये चुनावों को निष्पक्ष और साफ-सुथरा बनाने के प्रयास लगातार करता रहता है और इसके लिये उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा भी गया है!
वहीं राजस्थान की अगर बात करें तो राजस्थान विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के साथ ही 24, 48 और 72 घंटों में किए जाने वाले कार्यों को लेकर उदयपुर जिला प्रशासन एवं जिला निर्वाचन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी है। साफ तौर पर निर्देश दिए गए हैं कि आदर्श आचार संहिता की पालना हर स्तर पर सुनिश्चित की जा सके। वहीं आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर भी चुनाव आयोग की ओर से एप जारी की गई है। जहां सिटिजन ऐसी किसी भी शिकायत को दर्ज करा जिसमें उन्हें आचार संहिता का उल्लंघन होता दिखे।
जानिए क्या होगा बदलाव
24 घंटों में जिले के सभी रिटर्निंग अधिकारी और विभागीय अधिकारी आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद 24 घंटे के भीतर सभी विभागीय कार्यालयों व वेबसाइट पर प्रदर्शित जनप्रतिनिधियों के फोटो, बैनर, पोस्टर, होर्डिंग हटाएंगे। इसकी जानकारी से भी जिला निर्वाचन कार्यालय को अवगत कराएंगे।
48 घंटों में जिले में 48 घंटों के भीतर सभी सार्वजनिक स्थलों जैसे- बस स्टैण्ड, चिकित्सालय, रेलवे स्टेशन, सड़कों के किनारे लगे राजनीतिक होर्डिग्स, बैनर हटवाकर सूचना डीएम को भेजेंगे।
72 घंटों में इसके बाद 72 घंटों के अंदर-अंदर निजी भवनों पर लगे पोस्टर-बैनर हटवाने का काम शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे जिले में किया जाएगा। इन सबके वितरण पर होगी रोक चुनाव घोषणा के साथ ही जनप्रतिनिधियों की फोटो लगे पैकेट जैसे अन्न पूर्णा फूड पैकेट, स्कूलों में मिल्क पाउडर का वितरण नहीं किया जा सकेगा। साथ ही आचार संहिता लागू होने के बाद कोई भी नया विकास कार्य शुरू नहीं किए जाने की हिदायत दी गई है। जिले के उप जिला निर्वाचन अधिकारी और एडीएम प्रशासन शैलेष सुराणा ने निर्वाचन विभाग की गाइडलाइन की पूर्ण पालना सुनिश्चित करने को लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश पहले ही दे दिए हैं।
उल्लंघन की यहां करें शिकायत
निर्वाचन आयोग की ओर से लांच किए गए सी-विजिल एप के जरिए आप आचार संहिता उल्लंघन की लाइव जानकारी वीडियो के जरिए दे सकते हैं। चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष व पारदर्शी बनाए रखने और आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने के लिए यह एप जारी किया गया है। कोई भी नागरिक आचार संहिता के उल्लंघन की लाइव शिकायत एप पर कर सकेगा। निर्वाचन से जुड़ी टीम को 100 मिनट के अंदर-अंदर उस शिकायत पर एक्शन लेना अनिवार्य है