..और लीजिए राजनैतिक पंडितों के दिन आ गए हैं। श्राद्धों में जिस तरह किसी ख़ास पक्षी की बड़ी पूछ हो जाती है उसी तरह राजनीतिक पंडितों के दिन आ गए हैं। कम से कम 3 दिसम्बर तक अब इन्ही की भविष्यवाणियां सुनने को मिलेंगी।
पंडितों की इस फ़ेहरिस्त में आपका यह दोस्त भी शामिल है। आज सुबह अपने मित्र और राजनीति के प्रकांड पंडित अनिल लोढ़ा का फ़ोन आया । अजमेर के हाल पूछे और राज्य का गणित बताया। कई मुद्दों पर सहमति हुई।
पहली सहमति तो यह बनी कि राजस्थान में किसी भी राजनीतिक दल को इकतरफा सरकार बनने के कोई चांस नहीं। बहुमत किसी को नहीं मिलने वाला। ख़ास तौर से कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे से थोड़े बहुत आगे पीछे रहेंगे। निर्दलीय , बाग़ी और अन्य पार्टी के विधायकों के बिना कोई भी पार्टी सरकार बनाती नज़र नहीं आ रही।
मतदान जम कर हुआ है। महिलाओं और मुस्लिम मतों ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। भाजपा के सनातनी कार्ड भले ही हिंदुओं को एक मुश्त संगठित न कर पाए हों मगर मुस्लिम मत पूरी तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो गए हैं।
यहां बता दूं कि इस बार पूरे राज्य में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में 80 से 85 फ़ीसदी तक मतदान हुआ है जो भाजपा के लिए चिंताजनक ही कहा जाएगा।
राज्य में महिला मतों का प्रतिशत बढ़ना भी कांग्रेस के ही पक्ष में माना जा सकता है। एक और बात यह कि राज्य कर्मचारियों का रुझान ओ पी एस के कारण इस बार गहलोत की तरफ है। ऐसे में जो ज्ञान पंडित भाजपा की इकतरफा जीत बताने पर आमादा हैं उनको बता दूं कि बहुत मुश्किल है डगर पनघट की।
इस बार चुनाव परिणामों के बाद दिल्ली का दरबार अपनी सीमाओं में महदूद रह जाएगा ,यह तय है।कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही पार्टियों के दिल्ली के दरबारी लाल राज्य के नेताओं पर ही निर्भर हो जाएंगे। ज़ाहिर है कि एक बार फिर कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के दिन लौटेंगे। भाजपा में वसुंधरा की पूछ बढ़ेगी।
राज्य में इस बार बसपा,आर एल पी,आप पार्टी का भविष्य भी पहले से बेहतर है। बाग़ी चाहे कांग्रेस के हों या भाजपा के बड़ी संख्या में जीत कर आएंगे। दोनों ही पार्टियों ने इस टिकिट वितरण में कायरता बरती। दिल्ली तक को डरा दिया गया।
दोनों पार्टियों के हाई कमान ने राज्य के क्षत्रपों को ढीला छोड़ दिया। बन्दर बांट हुई और इसी का नतीज़ा है कि इस बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को बाग़ियों से जूझना पड़ रहा है।