जयपुर,आर.एन.गौड़।
राजस्थान के इस बार के विधानसभा चुनाव में जगह जगह बड़े बड़े होर्डिंग, फ्लैक्स पर्दों पर ये देखने को मिला कि चौथी बार गहलोत सरकार। इसमें सरकार द्वारा करवाये गये कार्य और लोक लुभावन योजनाओं के साथ साथ अशोक गहलोत द्वारा दी गई जबरदस्त गारंटियो को आधार बना कर जोर शोर से प्रचार किया गया कि कहो दिल से, अशोक गहलोत फिर से। ये सब देखने के बाद मैंने भी थोड़ा इतिहास टटोला कि राजस्थान में चौथी बार कौन मुख्यमंत्री बन पाया। राज्य में हीरालाल शास्त्री, एस. वेंकटाचारी, जयनारायण व्यास, टीकाराम पालीवाल, मोहनलाल सुखाड़िया, बरकत्तुला खान, हरिदेव जोशी, भैरोंसिंह शेखावत, जगन्नाथ पहाड़िया, शिवचरण माथुर, वसुंधरा राजे से लेकर अशोक गहलोत तक सिर्फ एक ही शख्स थे जो गिनती के चार बार मुख्यमंत्री बन सके, लेकिन पूरा चार बार का कार्यकाल उनके भी भाग्य में नहीं रहा, यानि पूरे 20 वर्षों का। बीच में राष्ट्रपति शासन भी लग गया। राजनीति के धुरंधर रहे भैरोंसिंह शेखावत भी 3 बार मुख्यमंत्री बन तो गये, लेकिन पूरे कार्यकाल के लिए वो भी नही रहे। इस बार के बनते बिगड़ते हालात को सम्भलते- सम्भालते और घात प्रतिघात से बचते बचाते हुए गहलोत जी 3 बार के पूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनने में येन केन प्रकरेण सफल हो तो गये लेकिन इसके लिए बहुत कुछ सहना पड़ा, खोना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में सरकार चलाने के बाद भी उनका और उनके समर्थकों का आत्मविश्वास काबिले तारीफ है जो छाती ठोक कर कहते रहे हैं कि चौथी बार मुख्यमंत्री गहलोत सरकार।
पिछले पांच साल की सरकार की कारगुज़ारियों और सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़े जा रहे चुनाव को देखकर तो यही लगता है कि चौथी बार तो बहुत मुश्किल है सरकार।
अब तक का इतिहास तो यही बयां कर रहा है कि बड़े बड़े दिग्गज भी यह मुकाम हासिल नहीं कर पाये सिर्फ एक सुखाड़िया जी को छोड़कर और वो भी पूरे समय के लिए नहीं।
अब तक का इतिहास अपनी जगह है और भविष्य आने वाली 3 दिसम्बर की प्रतीक्षा में। अंत में यही कह सकते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है वो किसी को भी नहीं छोड़ता। इति।।