वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुमसे बैर नहीं …….
आपको याद होगा 2018 में राजस्थान में यह नारा लगा था ।
और राजस्थान में 2018 मे जनता और संघ के स्वयंसेवको को वसुंधरा राजे से इतनी नाराजगी थी कि तब बीजेपी की 20 सीटों पर ही जीतने की स्थिति थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने धुआंधार प्रचार कर भाजपा को 70 सीटो तक सम्मानजनक स्थिति में ला दिया था । इसके तुरंत बाद लोक सभा चुनाव में 25 की 25 सीटें भाजपा को मिली थी । पिछले 5 साल में विपक्ष के नेता के तौर पर वसुंधरा राजे सिंधिया ने भाजपा के लिए कुछ भी नहीं किया बल्कि अशोक गहलोत के साथ दोस्ती रखते हुए सत्ता का सुख भोगा।
पिछले 5 सालों मे भाजपा के कार्यकर्ताओं और हिन्दुओं की दुर्गति पर एकदम चुपचाप रही थी और ऐसा कहा जाता है कि अशोक गहलोत की सरकार बचाने में उसका बहुत बड़ा योगदान रहा था।
कन्हैयालाल जैसी निर्मम हत्या हो या राज्य में हुये दंगों, बलात्कार में वो कभी भी हिंदुओं के साथ खड़ी नही रही और ना ही कोई सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया। आपको याद होगा जब भाजपा ने गजेन्दर् सिंह शेखावत को भाजपा अध्यक्ष बनाया तो इसी वसुंधरा ने खुलेआम मोदी का विरोध किया था, पार्टी ना टूटे इसलिए केन्द्रीय नेतृत्व ने खून का घूंट पी लिया था । और तो और वसुंधरा के कार्यो से त्रस्त संगठन मंत्री के पद पर संघ के वरिष्ठ प्रचारक प्रकाश चंद से भी इसकी कभी नहीं बनी और उनको भाजपा छोडकर वापस संघ कार्यालय जाना पड़ा था । इसके घमंड के कारण एक और वरिष्ठ IAS अधिकारी जिन्होने भैरोसिंह शेखावत की अल्पमत सरकार को भी सफलता पूर्वक चलाया उनको भी केन्द्र सरकार में जाना पडा । वसुंधरा के कार्य काल में आम जनता में एक राय थी कि महारानी तो केवल जर – जमीन और सत्ता की भूखी है। सत्ता के मद में इतनी अंधी थी कि एक MLA और मंत्री को मिलने के लिए एक एक महीना लग जाता था । इससे बड़ी बात इसके सचिव तन्मय कुमार से मिलने के लिए कैबिनेट मंत्री को घंटो इन्तजार करना पडता था । आम नागरिक की तो बिसात ही क्या थी ? मोदी जी जानते थे कि वसुंधरा को CM का चेहरा घोषित कर दिया तो राजस्थान में फिर हार जायेंगे। इसी कारण केवल कमल और मोदी के नाम पर वोट पडें, नतीजा आपके सामने है। पूर्ण बहुमत मिलते ही फिर लार टपकाने लगी और विधायकों को घर बुलाकर दबाव बनाने की नाकाम कोशिश कर रही है, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बहुमत मिला है लेकिन वहां तो ऐसी कोई पार्टी विरोधी हरकतें नहीं हो रही है, सिर्फ राजस्थान में ही क्यो? जनता और मोदी सब समझते हैं, कोई भी बेवकूफ नहीं है। जनता ने वसुंधरा राजे के नाम पर वोट किया ही नहीं तो फिर ये CM बनने किन्रेस में अपने आपको सबसे आगे किस बिनाह पर रख रही हैं। इससे ज्यादा और बहुत से योग्य लोग है। केवल मोदी के कारण राज्य में भाजपा की सरकार बन रही है तो वो शक्ति प्रदर्शन कर संगठन को झुकाना चाहती है तो यह भूल वसुंधरा राजे सिंधिया की आखिरी भूल सिद्ध होगी । और जो कुछेक विधायक इसके साथ है उनका भविष्य भी चौपट होना तय है, जनता जूते मारेगी वो बोनस में खाने पडेंगे। जो लोग मोदी को जानते हैं उनको पता है कि ऐसे विरोधियों की क्या दशा करते हैं, आडवाणी, जोशी, सिन्हा, सिध्दू, यशवंत जैसे दिग्गज आज गुम हो चुके हैं तो इनकी तो बिसात ही क्या है जी।
अगर फिर भी बेवकूफी करती है तो आने वाले समय में वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम राजस्थान से मिट जायेगा ।
बहुरानी बनी महारानी राजस्थान में जब तक बहुरानी थी, सबने सिर आंखों पर बिठाया, सबसे पूरा लाड दुलार, सम्मान मिला और जैसे ही घर की चाबियां मिली वैसे ही बहुरानी से महारानी बन बैठी । वही सामंती सोच, आगे पीछे नौकरों की भीड़, जी हजूरी करने वाले जय जयकार करने लगे तो अहंकार सिर चढ़ कर बोलने लगा । केवल और केवल मनमानी। ऐसा कब तक चल सकता है ? सबकी आंखों की किरकिरी बन बैठी । बहुरानी यह भूल गयी कि घर में अभी दाढ़ी वाले 2 ससुर जी भी मौजूद है, चाबियां लेने और वसीयत बदलने का अधिकार अभी उनके पास ही है। ससुर जी चाहे तो पूरा घर संभला दे और नहीं चाहे तो घर का कोना भी ना दे । शक्ति प्रदर्शन करना भारी पड़ गया है, 2 दिन में ही समझ आ गया कि अब कुर्सी कभी नहीं मिलेगी । ससुरजी को आंखे दिखाना भारी पड़ गया । अब जो गलती की है, उसका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा। दोनों ससुरों ने दिल्ली नहीं बुलाया है, बल्कि महारानी ने सारे एपीसोड की सफाई देने के लिए ननदोई जी से मिलने का समय मांगा है पर प्रचारित यह करवाया कि ससुर जी ने बुलाया है । खैर, जाने से पहले मीडिया में बयान दिया कि पार्टी लाईन पर चलेगी और पार्टी की अनुशासित सिपाही रहेगी ये बयान यों ही नहीं दिये है।
अभी अभी खबर मिली है कि वसुंधरा राजे ने पार्टी आलाकमान से कहा है कि वो पार्टी की अनुशासित सिपाही है । पार्टी लाईन से बाहर नहीं जायेगी । अब उन विधायकों के भी सुर बदल गये हैं, कह रहे हैं कि पार्टी जिसे तय करेगी वही CM होगा ।