हाईकोर्ट खंडपीठ में गुरुवार को 27 साल पुराने ग्रोवर हत्याकांड के मामले में बहस पूरी हो गई और कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है। अधिवक्ता पूनम भंडारी ने कोर्ट से ऐसे अपराधियों को उम्र कैद की सजा देने की मांग की।
जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस भुवन गोयल की कोर्ट में गुरुवार को बहस जारी रखते हुए अधिवक्ता पूनम चन्द भंडारी ने बताया कि अपराधीगण ने जिस जीप से मृतक की मोटरसाइकिल को टक्कर मारी थी उसकी फॉरेंसिक लेबोरेटरी से रिपोर्ट आ गई और उससे यह साबित हो गया की जीप के बंपर पर मोटर साइकिल का रंग आ गया और मोटरसाइकिल पर डंपर का रंग लग गया है वैज्ञानिक ने राय दी थी की मोटरसाइकिल जीप की टक्कर हुई।
अभियुक्तगण से जो हथियार बरामद हुए उस पर खून लगा हुआ था और मृतक के कपड़ों पर भी खून लगा हुआ था। उसकी मेडिकल रिपोर्ट आ गई। और दोनों पर बी ग्रुप का खून पाया गया मतलब यह साफ है कि अभियुक्ततों ने उसी हथियार से मृतक पर वार किया था भंडारी ने आगे बताया कि अपराधीगण के अधिवक्ताओं का यह कहना था कि मृतक को अस्पताल में भर्ती कराया हो और उसका इलाज हुआ हो ऐसा दस्तावेज पेश नहीं हुआ है।
अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया जाए उसमें लिखा हुआ है कि मृतक के शरीर पर 29 छोटे थी और कई घावों पर टांके लगे हुए थे और पंचनामा में भी लिखा हुआ था कि मृतक के दोनों हाथ और पैरों पर पट्टियां बंधी हुई है इससे साबित है कि मृतक का एसएमएस अस्पताल में इलाज हुआ था। बहस यह हुई थी कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के 5 दिन बाद न्यायालय में भेजी गई इसलिए रिपोर्ट देरी से भेजने के कारण अभियुक्तों को बरी किया जाए। अधिवक्ता भंडारी ने जवाब दिया कि रिपोर्ट 29 दिसम्बर 1997 को दर्ज हो गई थी कोर्ट में 2 जनवरी 1998 को भिजवाई गई क्योंकि उन दिनों में शीतकालीन अवकाश था शीतकालीन अवकाश में कोर्ट खुलता नहीं है और धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट लिखा हुआ है कि रिपोर्ट तत्काल संबंधित कोर्ट में भेजी जाएगी और कोर्ट खुलते ही रिपोर्ट भेजी गई। अधिवक्ता भंडारी का यह कहना था कि 30 दिसम्बर को मुलजिम का रिमांड लेने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था और जब मजिस्ट्रेट के यहां पेश करते हैं तो केस डायरी प्रस्तुत की जाती है जिसमें एफआईआर भी होती है।
अधिवक्ता भंडारी ने बहस करते हुए कहा कि मुल्जिमानों का एक तर्क यह भी था कि गवाह राजू नायक ने प्रथम सूचना रिपोर्ट में घटना देखने वाले गवाहों के नाम नहीं लिखाए गए थे। अधिवक्ता भंडारी ने जवाब देते हुए कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में सारी बातें नहीं लिखी जाती हैं कानून यह है की प्रथम सूचना रिपोर्ट सिर्फ घटना की सूचना मात्रा होती है ताकि कानून अपना काम शुरू कर दे। लेकिन उसी दिन उस गवाह का बयान हुआ था उस बयान में उसने सबके नाम लिखे थे। लेकिन कोर्ट ने इस बात पर ऐतराज किया कि जो बयान प्रदर्श डी- 2 दिया है उसमें हम उस हिस्से को ही पढ़ेंगे जो मार्क करवाया गया है। अधिवक्ता भंडारी ने कहा नहीं कानून की स्थिति यह नहीं है कि प्रदर्श डी- 2 के बारे में गवाह से बहुत सारे सवाल पूछे गए हैं इसलिए इसको पढ़ा जाएगा फिर जब न्यायालय को बयानों में दिखाया गया तब कोर्ट संतुष्ट हो गया कि आपका तर्क सही है इस बयान को पढ़ेंगे। कोर्ट ने एक प्रश्न यह भी किया कि जो मृत्युकालिक बयान है उसमें मृतक का नाम दोबारा लिखा गया है। अधिवक्ता भंडारी ने कोर्ट को बताया कि ऐसा नहीं है बल्कि उस पर टेप चिपकाई गई थी इसलिए ऐसा दिखाई दे रहा है और कोर्ट की फाइल में ऐसे दो-तीन दस्तावेज और दिखाए तब कोर्ट संतुष्ट हो गया। अभियुक्तगण का एक तर्क यह था कि मुल्जिमान को बापर्दा नहीं रखा गया अधिवक्ताभंडारी ने रिमांड पेपर पर ध्यान आकर्षित किया कि जब मुलजिमानों का रिमांड मांगा गया था उस समय उनके अधिवक्ता उपस्थित थे और उनको सुनकर के रिमांड चार बार दिया गया था तो यदि उनको बापर्दा नहीं रखा गया था तो उनके अधिवक्ता उस समय एतराज प्रस्तुत कर सकते थे। अभियुक्तगण के अधिवक्ताओं का यह कहना भी था कि घटनास्थल पर पुलिस आ गई थी वहां पर रिपोर्ट लिखकर नहीं दी गई और 2 घंटे बाद थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई थी इसलिए उन्हें संदेह का लाभ दिया जाए। अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि घटनास्थल पर रिपोर्ट देने का कोई कानून नहीं है और जिस गवाह ने देखा था वह वहां से थाने चला गया 10:00 बजे उसने लिखकर के रिपोर्ट दे दी थी इसलिए अभियुक्तगण को इसका लाभ नहीं मिल सकता है।
अभियुक्तगण का यह भी तर्क था कि दूदू में मुल्जिमान को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन गिरफ्तारी वहां नहीं बनाई बल्कि जयपुर में आकर झोटवाड़ा थाने में उनको गिरफ्तार दिखाया गया इसलिए यह झूठ है कि उनको दूदू से गिरफ्तार किया गया हो भंडारी ने जवाब देते हुए कहा कि मुल्जिमानों को दूदू में गिरफ्तार कर लिया था पुलिस के सिर्फ 5-6 आदमी थे और वहां पर गिरफ्तारी बनाना आसान नहीं था क्योंकि मुल्जिमान या उनके साथी पुलिस पर हमला कर सकते थे इसलिए पुलिस तत्काल उनको पड़कर लाई और जयपुर आकर के झोटा थाने में उनको गिरफ्तार दिखाया गया इसके अलावा भी कानून यह है कि पुलिस को किसी को भी डिटेन करने का अधिकार है गिरफ्तारी से पूर्व मुल्जिमानों को पकड़ कर रखा जा सकता है।
अधिवक्ता भंडारी ने बहस समाप्त करते हुए कहा की 8:15 बजे की घटना है और 8:30 बजे पुलिस मौके पर आ गई थी और घायल राजेंद्र ग्रोवर को जीप में बिठाकर अस्पताल ले गई। जहां उसने पुलिस वालों को बयान दिया था कि उसे किस-किस ने मारा है फिर उसने अस्पताल में अपने भाइयों को भी बताया था कि उसे दिलीप सिंह दशरथ सिंह महावीर सिंह वगैरह लोगों ने मारा है और उसी दिन 10:00 बजे रिपोर्ट हुई उसी दिन चक्षुदर्शी गवाहों के बयान हो गए उसी दिन पुलिस को मुखबिर से सूचना मिल गई कि मुलजिमान दूदू में बना जी के मिडवे पर हैं और पुलिस ने उनको वहां से गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकार यह सोची समझी रणनीति के तहत प्लान बनाकर राजेंद्र पर प्राण घातक हमला किया और उसकी हत्या की। इसलिए ऐसे खतरनाक मुलजिमानों को अगर सजा नहीं दी गई तो समाज में भय व्याप्त हो जाएगा और दशरथ सिंह खतरनाक अपराधी है इस अपराध को करने के बाद भी उसने कई अपराध किए हैं और उसे जयपुर में डी ग्रुप का सरगना कहते हैं अतः अपराधियों को उम्र के दी जानी चाहिए।