सोचकर देखिए कि आप जब पढ़े लिखे लोगों के बीच हो और तब आप बिल्कुल ही देहाती शब्दों का उपयोग कर रहे हो,ऐसा नहीं हैं किलोकल भाषा में कुछ ख़राबी हैं लेकिन सवाल ये भी हैं की एक कहावत भी हैं कि तीन कोस पर बोली बदले एक कोस पर पानी। येकहावत हमने अपने ही बड़ों से सुनी हैं तो जब माननीय शिक्षा मंत्री अपने कोर्स में लोकल शब्दों का कोर्स डिजायन करने की सोच रहे हैं। तो फिर हम कैसे आशा करेंगे कि बच्चा इंगलिश बोले । अभी हमारे गावों के बच्चे ठीक तरह से इंगलिश पढ़ना भी नहीं सीख पाये हैंऔर अब हम वापस गावों जिनके घूम रहे हैं हालाँकि शिक्षा मंत्री की योजना तो वो ही जाने लेकिन बात अजीब सी लगी की आजकलजब parivar में लोग पशु पक्षियों और जानवरों ,फल फ़्रूटों के नाम उन्हें इंगलिश में सिखाना चाहते हैं वही अब ये गावों के बच्चे कोयेको कागला बोलते नज़र आयेंगे। हर माता पिता अपने बच्चे की शिक्षा पर ध्यान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि वो पढ़ लिख कर हरकंपीटिशन को फाइट कर अच्छी जगह सेट हो जाये पर शिक्षा मंत्री की योजना देखकर लगता हैं कि ये बच्चे गाँवों के वातावरण सेबाहरी ही नहीं जा पायेंगे।
इधर पीएम मोदी का कहना है कि हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है यहां का युवा, जो आज दुनिया के हर कोने में अपनी काबिलियतका परचम लहरा रहा है ..और इसी युवा ताकत के आधाऱ पर ही हम आने वाले दिनों में दुनिया की तीसरी बड़ी ताकत बनेगें ..हमें भारतको हर क्षेत्र में आगे ले जाना है …और साथ ही आत्मनिर्भर बनाना है फिर वो चाहे टेक्नॉलोजी की बात हो या फिर हथियारों की ..हमें इसकाबिल बनाना है कि दुनिया के बाकि देश हमारे कामयाबी को देखकर हैरान रह जाए …और इसका सबसे बड़ा आधार है शिक्षा ..आजदेश का युवा शिक्षा हासिल करने के लिये दुनिया के बड़े बड़े एक्जूकेशन सस्थानों में पढ़ने के जा रहा है है …जिससे भारत का तीसरीबड़ी ताकत बनने का सपना पूरा हो सके …
लेकिन दूसरी तरफ राजस्थान के शिक्षा की प्लानिंग इस सपने से कोसों दूर जा कर अलग ही तस्वीर पेश कर रही है …यहां प्रदेश केशिक्षा मंत्री टेक्नॉलोजी या एडवांस एजूकेशन की बात करने के बजाये क्षेत्रिय भाषाओं पर जोर दे रहे है …उनका कहना है कि क्षेत्रीयऔर गांव की युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को मातृभाषा के साथ स्थानीय भाषा से जोड़ना चाहिये …इसके तहत सरकारी स्कूलों मेंमातृभाषा के साथ उन्हें क्षेत्र की स्थानीय भाषाओं के शब्दकोश से बच्चों को रूबरू करवाया जाएगा, ताकि वह अपनी स्थानीय भाषा सेजुड़े रहें।
इसके लिये राजस्थान की 30 स्थानीय भाषाओं का सर्वे भी किया जा रहा है.जिसके बाद बच्चे मातृभाषा के साथ स्थानीय भाषा भी जानसकेंगे, शिक्षा मंत्री मदन दिलावर कहना है कि जल्द ही ये सरकारी स्कूलों में लागू हो जाएगी. और अलग-अलग क्षेत्रों की स्थानीय भाषाके अनुसार ही पाठ्यक्रम को डिजाइन किया जाएगा. इसके लिये उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कौवे को स्थानीय भाषा मेंकागला कहते हैं या बंदर को बांदरो कहा जाता है …ऐसे ही भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, जिससे बच्चे आसानी सेसमझ सकें।
इतना ही नहीं शिक्षा मंत्री ने स्थानीय भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं का ठीकरा कांग्रेस सरकार के सिर भी फोड डाला ..उनकाकहना है कि अब भाजपा सरकार आ गयी है तो इस गलती को सुधारा जायेगा
शिक्षा मंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति में बदलाव करते हुए प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा पर जोर देने की नीति लागू की जा रही है. इसके तहत स्थानीय बोली और भाषा के आधार पर शब्दकोश तैयार करवा कर पाठ्यक्रम तैयार करवा रहे हैं. जो हम दैनिक बोलचालमें बोलते हैं, जिससे बच्चों को सिखाने में जल्द मदद मिलती है, इससे बच्चे जल्द बोलना सीखते हैं. इसलिए मातृभाषा के शब्दों को नएपाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है।
शिक्षा मंत्री ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत सर्वे में कक्षा एक के बच्चों तथा उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों से भाषा की जानकारी लीगई थी. इसमें बच्चों के नाम के साथ उनके घर की भाषा, शिक्षण की भाषा, स्कूल का माध्यम और भाषा को समझना और बोलने कीविद्यार्थियों की क्षमता के स्तर आदि का सर्वे कर उसे स्कूल दर्पण पर अपलोड करवाया गया था. अब इसके लिये राजस्थान मेंअलग-अलग 30 भाषाओं का सर्वे करवाया जा रहा है।
भारत आज तेजी से विकास कर रहा है …और हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़ा है …ऐसे में शिक्षा मंत्री के क्षेत्रीय भाषापर जोर देने की बात भारत की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में क्या भूमिका निभायेगी इसके बारे में कुछ अंदाजा नहीं लगाया सकता..लेकिन इसके बारे में आपकी क्या राय है हमें कमेंट बाक्स में जरूर बताये