सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने राजस्थान इलेक्शन वॉच’ के सदस्य के रूप में अरुणा रॉय और निखिल डे द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई की।
याचिका में देश भर में चल रहे आम चुनावों के दौरान चुनाव आयोग की आदर्श आचार सहिंता के नाम पर, चुनाव की अवधि के लिए सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जिला मजिस्ट्रेटों द्वारा पूर्ण निषेध आदेश जारी करने की प्रथा को अदालत के ध्यान में लाया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित वकील श्री प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि धारा 144 सीआरपीसी केवल आपातकालीन स्थिति में लगती है, जब किसी क्षेत्र के मजिस्ट्रेट का अनुमान हो कि कुछ गड़बड़ होने वाला है । इस तरह का स्वीपिंग आदेश, धारा 144 का गलत इस्तमाल है और इस तरह के व्यापक ऑर्डर लोकतंत्र को पूरी तरह से ध्वस्त कर देता हैं. इससे आम लोगों के अनुच्छेद 19 व 21 का भी उलंघन है, क्यूंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार है।
साथ ही चुनाव रोजमर्रा के जीवन पर भी व्यावधान नहीं ड़ाल सकता है।, आम नागरिकों को लोकतंत्र के बारे में व मतदाताओं को शिक्षित करने के लिए प्रचार करने, संगठित होने या यात्राएं करने में गंभीर बाधा उत्पन्न होती है।
उन्होंने अदालत कों बताया कि यह घटना पिछले राजस्थान विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान भी हुई थी, जिसमे चुनाव आयोग से भी जवाब नहीं मिला.
गौरतलब है की राजस्थान इलेक्शन वॉच विधानसभा चुनाव 2023 मे पूरे राजस्थान मे मतदाता जागरूकता यात्रा करने की अनुमति मांग रहा था, मुख्य निर्वाचन अधिकारी नें अनुमति देने की जगह पत्र कों चुनाव आयोग दिल्ली भेज दिया. जिसका ना तो जवाब मिला ओर ना ही अनुमति मिली.
न्यायालय ने नोटिस जारी करके केंद्र, राज्यों और भारत के चुनाव आयोग से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा, और यह स्पष्ट किया कि अंतरिम आदेश के रूप में, किसी भी यात्रा या जुलूस या बैठक के लिए किसी भी व्यक्ति से अनुमति के लिए कोई भी आवेदन जैसे, सक्षम प्राधिकारी को तीन दिनों के भीतर निर्णय लेना होगा।
सुप्रीम कोर्ट मे मामले की पैरवी प्रशांत भूषण व उनके सहयोगी वकील प्रसन्ना एस, एन साई विनोद, दीक्षा द्विवेदी, स्वाति आर्य और राहुल गुप्ता ने की।राजस्थान इलेक्शन वॉच की तरफ से याचिकाकर्ता निखिल डे भी अदालत में व्यक्तिगत रूप से मौजूद थे.।