लोकसभा चुनावों का प्रथम चरण कल यानी 19 अप्रैल को पूरा हुआ। राजस्थान की 12 सीटों पर हुए इन चुनावों में कई जगह लड़ाई झगड़े भी हुए, कई पोलिंग सेंटरों का मतदाताओं ने बहिष्कार भी किया। मतदान केंद्रों पर कई तरह की अनियमितताएँ और सुविधाओं का अभाव दिखाई दिया लेकिन प्रशासन अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रहा।
अब आपको दूसरी तस्वीर की ओर लिये चलते हैं,जहां इस चुनावों में बीजेपी ने अबकी बार 400 पार का नारा दिया हैं। इन चुनावों में इस नारे के साथ ही सभी नेताओं की ज़िम्मेदारी भी तय कर दी हैं,लेकिन जयपुर शहर लोकसभा क्षेत्र जहां पिछली बार इस सीट से रामचरण बोहरा रिकॉर्ड तोड़ वोटों से जीते थे लेकिन इस बार ना रो ये इतिहास दोहराता दिख रहा हैं और ना ही उस आकड़ें के आस पास पहुँचते दिखाई दे रहे हैं।
कम वोटिंग की वजह इस चुनाव में रोचकता की कमी को माना जा रहा है। कांटे के मुकाबले का रोमांच नदारद होने से जनता के साथ-साथ भाजपा और कांग्रेस के लोगों में भी नीरसता पैदा कर दी। इस बार लोकसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न ने सबको चौंका दिया है। क्योंकि पिछली बार यानी 2019 के मुकाबले वोटिंग काफी कम हुई है। वह भी तब जबकि चुनाव आयोग के साथ-साथ 400 पार का नारा दे रही भाजपा ने प्रचार में जमकर पैसा बहाया है। कम मतदान की वजह से राजनीतिक दलों के सियासी समीकरण गड़बड़ा गए हैं। हालांकि परिणाम घोषित होने तक सभी राजनेता और पॉलिटिकल पार्टियां जीत को लेकर अपने-अपने दावे कर रही हैं।
गुलाबी नगरी के नाम से जाने वाले जयपुर शहर संसदीय क्षेत्र में यहां वर्ष 2019 की तुलना में करीब 5 प्रतिशत वोटिंग कम हुई है। चुनाव आयोग के मुताबिक वर्ष 2019 में यहां 68.48 प्रतिशत मतदान हुआ था। जबकि इस बार 62.87 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह स्थिति भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय है क्योंकि करीब 4 महीने पहले ही पार्टी ने यहां 8 में से 6 विधानसभा सीटें लेकर सरकार बनाई है। वैसे भी जयपुर शहर लोकसभा सीट को भाजपा के गढ़ के रूप में माना जाता है।
इन सबमें मुख्य बात यह है कि सांगानेर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की और विद्याधर नगर उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी का विधानसभा क्षेत्र हैं। इन दोनों के निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे कम वोटिंग हुई है।
हालांकि तीसरे बगरू विधायक कैलाश वर्मा हैं जिनके क्षेत्र में 8.30 प्रतिशत कम वोट पड़े हैं। शहर की मुस्लिम बहुल सीट हवामहल, आदर्श नगर और किशनपोल विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पूरे लोकसभा क्षेत्र का सबसे ज्यादा मतदान हुआ है। इनमें दो सीटें किशनपोल और आदर्श नगर कांग्रेस के पास हैं। इससे संकेत मिल रहे हैं कि मुस्लिम क्षेत्रों में काफी अच्छी खासी वोटिंग हुई है और यह वोट बैंक कम से कम भाजपा के पक्ष में तो नहीं है।
समझिए कम वोटिंग होने से क्या फ़ायदे क्या नुक़सान
कम वोटिंग के बावजूद भाजपा अपने प्रत्याशी की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नज़र आ रही है। पार्टी के लोगों का मानना है कि चुनाव तो भाजपा जीतेगी। लेकिन, जीत का अंतर कम हो जाएगा। यानी भाजपा किसी भी हालत में पूर्व सांसद रामचरण बोहरा का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाएगी। क्योंकि रामचरण बोहरा ने वर्ष 2019 का चुनाव 4 लाख 30 हजार 626 वोटों के अंतर से जीता था। उन्होंने तब पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल को हराया था। ज्योति खंडेलवाल अब भाजपा में हैं। भाजपा की जीत की दूसरी वजह यह भी मानी जा रही है कि कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप सिंह खाचारियावास ने इस लोकसभा चुनाव को शुरू से ही गंभीरता से नहीं लिया। वे पूरे चुनाव में निराश और हताश नजर आए। पहले दिन ही उन्होंने मान लिया था कि यहां भाजपा की स्थिति मजबूत है। पार्टी ने उन्हें जबरन टिकट दिया है। चुनाव प्रचार में भी उन्होंने हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा नारा दिया। इससे माना जा रहा है कि कांग्रेस के वोटर में चुनाव को लेकर उत्साह ही नहीं बना। फिर भी चुनाव परिणाम बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और गुजरात में राज शेखावत की गिरफ्तारी को लेकर प्रताप सिंह खाचरियावास राजपूत और वैश्य वर्ग के वोटों में कितनी सेंध लगा पाते हैं। क्योंकि राजपूतोंं के युवाओं और वैश्य वर्ग में भाजपा के प्रति नाराजगी देखी जा रही है।
वरिष्ठ औऱ कद्दावर नेताओं की अनदेखी
भाजपा सूत्रों के मुताबिक कम वोटिंग की वजह पिछले दिनों पार्टी में हुई पुराने और कद्दावर वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी भी बड़ा कारण मानी जा रही है। क्योंकि इस बार आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने वोटरों को घर से निकालने के लिए मन से प्रयास ही नहीं किए। जब इस बारे में कुछ लोगों से बात की गई तो उन लोगों का कहना था कि मोदी जी गारंटी दे रहे हैं, हमारी 400 से ज्यादा सीटें आ रही हैं। सीएम भजन लाल शर्मा खुद 25 की 25 सीटें जीत रहे हैं। फिर वोटर को मतदान बूथ तक लाने के लिए क्यों मेहनत करना है। भाजपाईयों की बेरुखी की दूसरी वजह यह भी है कि जिन कांग्रेसियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे और भाजपाई उनके खिलाफ मुद्दे बना रहे थे। उन सभी को भाजपा में शामिल कर लिया गया। संभवतः यही वजह है कि पूर्व सीएम वसुंधराराजे, पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र राठौड़, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, पूर्व सांसद रामचरण बोहरा समेत कई नेताओं की सक्रियता कम ही नजर आई।