देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर छा गई है. उन्होंने 92 वर्ष की आयु में दिल्ली के AIIMS में अपनी अंतिम सांस ली.मनमोहन सिंह की तबीयत गुरुवार की रात अचानक खराब हो गई थी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए एम्स लाया गया था. लेकिन कुछ ही देर के इलाज के बाद मनमोहन सिंह का निधन हो गया.उनके निधन पर केंद्र सरकार ने पूरे देश में 7 दिनों के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया है. इस दौरान पूरे भारत में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को एक पत्र भेजते हुए कहा है, कि 26 दिसंबर 2024 से 1 जनवरी 2025 तक कोई आधिकारिक मनोरंजन नहीं होगा.पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शनों के लिए 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग पर स्थित उनके आवास पर रखा गया है.शनिवार को उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा.उनके निधन की खबर के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य दिग्गज नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.सभी राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता मनमोहन सिंह के अंतिम दर्शन के लिए उनके आवास पर पहुंचने लगे हैं.जिसके चलते मनमोहन सिंह के घर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
पीएम मोदी ने कहा- देश ने प्रतिष्ठित नेता खो दिया
पीएम मोदी ने डॉ मनमोहन सिंह श्रंद्धाजलि देते सोशल मीडिया पर लिखा, “भारत अपने सबसे प्रतिष्ठित नेताओं में से एक डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर शोक मना रहा है. साधारण पृष्ठभूमि से उठकर वह एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री बने. वित्त मंत्री सहित विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य किया और वर्षों तक हमारी आर्थिक नीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी. संसद में उनके हस्तक्षेप भी बहुत ही व्यावहारिक थे. प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयास किए.
राहुल गांधी ने कहा- मैंने एक मार्गदर्शक खो दिया
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि, “मनमोहन सिंह जी ने बहुत ही बुद्धिमत्ता और ईमानदारी के साथ भारत का नेतृत्व किया. उनकी विनम्रता और अर्थशास्त्र की गहरी समझ ने पूरे देश को प्रेरित किया. श्रीमती कौर और उनके परिवार के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएँ. मैंने एक मार्गदर्शक खो दिया है. हममें से लाखों लोग जो उनके प्रशंसक थे, उन्हें अत्यंत गर्व के साथ याद करेंगे.” इधर कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि,पार्टी ने अगले 7 दिनों के लिए सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं. डॉ. मनमोहन सिंह जी के सम्मान में कांग्रेस के स्थापना दिवस सहित सभी आधिकारिक कार्यक्रम रद्द किए जा रहे हैं. इसमें सभी आंदोलन और आउटरीच कार्यक्रम भी शामिल हैं. पार्टी के कार्यक्रम अब 3 जनवरी, 2025 से शुरू होंगे. इस दौरान कांग्रेस का झंडा आधा झुका रहेगा.”
गांव से लेकर महत्वपूर्ण पदों तक का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को गाह,वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब में एक सिख परिवार में गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर हुआ था. जब वह बहुत छोटे थे, तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी. उनकी नानी ने उनका पालन-पोषण किया और वह उनसे बहुत करीब थी. साल 1947 में विभाजन के समय उनका परिवार भारत आ गया था.भारत के विभाजन के बाद, उनका परिवार हल्द्वानी, भारत में चला गया. 1948 में वे अमृतसर चले गए, जहां उन्होंने हिंदू कॉलेज, अमृतसर में अध्ययन किया. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, फिर होशियारपुर में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और 1952 और 1954 में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की, अपने शैक्षणिक जीवन में प्रथम स्थान पर रहे. उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपना अर्थशास्त्र ट्रिपोस पूरा किया. वे सेंट जॉन्स कॉलेज के सदस्य थे.डी फिल. पूरा करने के बाद सिंह भारत लौट आए. वे 1957 से 1959 तक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ व्याख्याता रहे.
साल 1959 और 1963 के दौरान, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में रीडर के रूप में काम किया और 1963 से 1965 तक वे वहाँ अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे.वे 1966 से 1969 तक व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए काम करने चले गए. बाद में, अर्थशास्त्री के रूप में सिंह की प्रतिभा को मान्यता देते हुए ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय का सलाहकार नियुक्त किया. 1969 से 1971 तक, सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर रहे.ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद डॉ मनमोहन सिंह ने 1966-1969 के दौरान संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया, इसके बाद उन्होंने अपना नौकरशाही करियर तब शुरू किया जब ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में सलाहकार के रूप में नियुक्त किया.
RBI गवर्नर से प्रधानमंत्री तक का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह ही भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिनके हस्ताक्षर की भारतीय करेंसी पर किए हुए है.डॉ. मनमोहन सिंह का करियर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में 1982 से 1985 तक रहा.उनकी आर्थिक कुशलता ने उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाई. 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था, तब पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार ने उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया.इस दौरान उन्होंने देश में आर्थिक उदारीकरण का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली. तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 प्रतिशत के करीब था. भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी GDP के 3.5 प्रतिशत के आसपास था. देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी केवल दो सप्ताह लायक विदेशी मुद्रा ही मौजूद थी. इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बहुत गहरे संकट में थी. ऐसी परिस्थिति में डॉ सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत कर दी.
यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार, लाइसेंस राज का खात्मा और कई क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जैसे कदम शामिल थे.डॉ.मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली. डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.इस साल की शुरुआत में राज्यसभा से रिटायर हुए और 33 सालों के बाद उच्च सदन में उनकी राजनीतिक पारी खत्म हुई. उनके नेतृत्व में देश ने वैश्विक स्तर पर अपनी साख मजबूत की.
लगातार दो बार संभाली देश की बागडोर
भारत को नई आर्थिक नीति की राह पर लाने का श्रेय डॉ सिंह को दिया जाता है. उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, रुपये के अवमूल्यन, करों में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देकर एक नई शुरुआत की.आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति की शुरुआत में उनकी भूमिका को दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है. उनकी नीतियों ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की दिशा में ले जाने का काम किया. वह 1996 तक वित्त मंत्री के तौर पर आर्थिक सुधारों को अमलीजामा पहनाते रहे. सिंह को मई 2004 में देश की सेवा करने का एक और मौका मिला और इस बार वह देश के प्रधानमंत्री बने. अगले 10 वर्षों तक उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों और सुधारों को मार्गदर्शन देने का काम किया.मनमोहन सिंह का निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है. वे एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और नेता के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.
डॉ. मनमोहन सिंह का राजस्थान से रहा विशेष लगाव
वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का राजस्थान से भी विशेष जुड़ाव रहा.पीएम रहते हुए उन्होंने राजस्थान में कई प्रोजेक्ट्स की नींव रखी और लोकार्पण किए.अंतिम बार राजस्थान से निर्विरोध राज्यसभा सांसद बने. इसी साल अप्रैल में ही उनका कार्यकाल पूरा हुआ था. उनकी खाली हुई सीट पर सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनीं हैं. करीब 5 साल पहले 2019 में जब मनमोहन सिंह राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बने, तो बीजेपी ने उनके सामने कैंडिडेट नहीं उतारा था.इसलिए निर्विरोध जीते थे. राजस्थान में जिन प्रोजेक्ट की शुरुआत सिंह ने की उनमें सबसे प्रमुख अक्टूबर 2012 में दूदू से आधार आधारित सेवाओं की लॉन्चिंग भी है.सितंबर 2013 में मनमोहन सिंह ने किशनगढ़ एयरपोर्ट और जयपुर मेट्रो फेज वन बी की नींव रखी. वहीं 8 जनवरी 2012 को जयपुर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन किया.जिसके उद्घाटन भाषण में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि, राजस्थान से बड़ी संख्या में श्रमिक विदेश जा रहे हैं.हमने जयपुर में प्रवासी संरक्षक का एक कार्यालय स्थापित किया है, साथ ही राजस्थान सरकार जयपुर में एक प्रवासी भारतीय भवन बनाने का प्रस्ताव कर रही है. इस भवन में न केवल प्रवासियों के संरक्षक के कार्यालय होंगे, साथ ही प्रवासी भारतीयों और प्रवासी श्रमिकों को ऑन-साइट सहायता देने के लिए एक प्रवासी संसाधन केंद्र भी होगा. जिसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने अक्टूबर 2012 में दूदू से आधार आधारित सेवाओं की लॉन्चिंग भी है. आधार आधारित सेवाओं की लॉन्चिंग के बाद से ही आधार को बैंकिंग से लेकर मोबाइल सिम और दूसरे यूटिलिटी की सेवाओं से जोड़ा गया था.सितंबर 2012में किशनगढ़ एयरपोर्ट के शिलान्यास के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा था- किशनगढ़ हवाई अड्डे को पूरी तरह से कार्यशील हवाई अड्डे के रूप में विकसित करने का प्रोजेक्ट इस क्षेत्र में विकास की बहुत सारी नई संभावनाएं पैदा करेगा। मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि राजस्थान जैसे राज्य ने अधिक से अधिक छोटे हवाई अड्डे बनाए जाने की अहमियत को बखूबी समझ लिया है।