10 मई, जयपुर। लंदन स्थित एक्सेल एग्जीबिशन सेंटर में अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी “द स्टोन शो एंड हार्ड सरफेस” का आयोजन संपन्न हुआ। 7 से 9 मई तक आयोजित इस तीन दिवसीय आयोजन में चीन, आयरलैंड, पोलैंड, इटली, तुर्की सहित विभिन्न देशों की अग्रणी स्टोन कंपनियों की सहभागिता रही। कुल मिलाकर लगभग 350 एग्जीबिटर्स ने इस वैश्विक मंच पर अपने उत्पाद और नवाचार प्रस्तुत किए।
प्रदर्शनी में लघु उद्योग भारती (LUB) और सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ स्टोन्स (CDOS) के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय स्टोन कंपनियों के प्रतिनिधियों से भेंट की। प्रतिनिधिमंडल में लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय सचिव नरेश पारीक और राजस्थान के प्रदेश कोषाध्यक्ष अरुण जाजोदिया के साथ वरिष्ठ उप महाप्रबंधक, सीडीओएस विवेक जैन शामिल रहे।
इन बैठकों के दौरान जयपुर में आयोजित होने वाले इंडिया स्टोनमार्ट–2026 के प्रचार-प्रसार, तकनीकी सहयोग, द्विपक्षीय व्यापार और संभावित भागीदारी पर विस्तृत चर्चा की गई। भारतीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा प्रदर्शनी स्थल पर डिजिटल प्रजेंटेशन, ब्रोशर और सहभागिता आमंत्रण सामग्री वितरित की गई, जिसे विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधियों ने सराहा और सहभागिता में रुचि दिखाई।
यह प्रदर्शनी भारत के प्राकृतिक पत्थर उद्योग को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने और स्टोनमार्ट–2026 को एक वैश्विक ब्रांड के रूप में प्रस्तुत करने की दिशा में एक ठोस कदम सिद्ध हो रही है।
इंडिया स्टोनमार्ट–2026 का आयोजन आगामी 5 से 8 फरवरी 2026 को जयपुर स्थित जेईसीसी परिसर, सीतापुरा में प्रस्तावित है, जिसमें विश्वभर के अग्रणी खरीदारों और प्रदर्शकों की सहभागिता अपेक्षित है।
भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव को लेकर इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन भी अपना योगदान देने में कही भी पीछे नहीं दिखाई दे देरहे हैं। देश बहुत नाजुक हालातों के बीच गुजर रहा हैं। और युद्ध की स्थिति को देखते हुए दवा और इलाज़ एक बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता मानी जाती हैं। इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन देश में ऐसे वातावरण देश के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने के लिए तैयार हैं। दवा की आपूर्ति को लेकर इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन प्रतिबद्ध हैं और देश में दवा वितरण को लेकर किसी भी स्थिति में रूकावट नहीं हो इसके लिए अपना पूरा सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इसी क्रम में इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री के नाम एक पत्र लिखा हैं जिसमे कहा हैं कि युद्ध और आपातकाल जैसी परिस्तिथियों के लिए दवा आपूर्तियों के लिए तैयार हैं और बॉर्डर इलाकों से लेकर रिहायशी इलाकों में रहने वाले निवासियों को दवा पहुंचाने की जिम्मेदारी इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने अपने कंधो पर ली हैं।
ऑपेरशन सिंदूर को लेकर देश के 15 लाख फार्मासिस्टों ने दवा वितरण का काम अपने कंधो पर लिया और पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए कर्मचारियों में पूरा जोश और उत्साह का भरोसा दिया हैं। चिकित्सा विभाग भारतीय सेना के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ा हुआ है और जरुरत पडने पर दवा वितरण में किसी भी प्रकार की कही भी कोई भी कमी नहीं आने देगा।
जियो एयर फाइबर के 3 लाख से अधिक ग्राहक, निकटतम प्रतिस्पर्धी से 4 गुना अधिक
जयपुर, 9 मई 2025: राजस्थान में होम ब्रॉडबैंड सेवाओं के क्षेत्र में रिलायंस जियो ने अपनी स्थिति और भी मज़बूत की है। टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) द्वारा मार्च 2025 के लिए जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, जियो एयर फाइबर और जियो फाइबर सेवाओं के माध्यम से राज्य में जियो के ब्रॉडबैंड ग्राहकों की संख्या 7.7 लाख के पार पहुँच चुकी है।
जियो एयर फाइबर ने राजस्थान में 5जी फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस (एफडब्लूए) सेगमेंट में 3 लाख ग्राहकों का आंकड़ा पार कर लिया है। यह संख्या निकटतम प्रतिस्पर्धी के मुकाबले चार गुना अधिक है, जिसकी ग्राहक संख्या 73,743 है। मार्च 2025 में राजस्थान में कुल 5जी एफडब्लूए या एयर फाइबर ग्राहकों की संख्या 3.74 लाख से अधिक रही, जिसमें जियो ने 80 प्रतिशत से अधिक ग्राहक हिस्सेदारी के साथ नेतृत्व किया।
वायर्ड ब्रॉडबैंड श्रेणी में भी जियो अग्रणी बना हुआ है, जहां जियो फाइबर के माध्यम से 4.71 लाख से अधिक घर और व्यावसायिक प्रतिष्ठान हाई-स्पीड इंटरनेट, अनलिमिटेड वाई-फाई और प्रीमियम होम एंटरटेनमेंट का लाभ उठा रहे हैं। इस श्रेणी में निकटतम प्रतिस्पर्धी 3.25 लाख ग्राहकों के साथ काफी पीछे है।
जियो की वायरलाइन और फिक्स्ड वायरलेस सेवाओं को मिलाकर कुल ग्राहक संख्या 7.71 लाख हो गई है, जो निकटतम प्रतिस्पर्धी से लगभग दोगुनी है और जिसकी ग्राहक संख्या 3.98 लाख है।
राजस्थान की भूमि पर उभरती कला और संस्कृति को नई पहचान देने वाली फिल्म ‘ओमलो’ ने कान फिल्म फेस्टिवल में अपनी उपस्थिति दर्ज कर इतिहास रच दिया है। इस राजस्थानी फिल्म ने विश्व सिनेमा के मंच पर अपनी सशक्त कहानी और वास्तविक प्रस्तुति से सभी का ध्यान आकर्षित किया है।
फिल्म का सार
‘ओमलो’ की कहानी एक 7 साल के मासूम बच्चे और एक ऊँट की जीवन शैली पर आधारित है। यह फिल्म पारिवारिक हिंसा, पितृसत्ता और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले मानसिक शोषण जैसे गंभीर विषयों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है। फिल्म की सिनेमेटिक शैली रियलिस्टिक और रॉ सिनेमा की मिसाल है, जो दर्शकों को अंदर तक झकझोर देती है। ऊँट और बच्चे के रिश्ते के माध्यम से यह फिल्म दर्शाती है कि कभी-कभी इंसानों से ज़्यादा संवेदनशीलता जानवरों में होती है।
फिल्म के निर्माता और निर्देशक
सोनू रणदीप चौधरी (लेखक, निर्देशक और निर्माता)
शेखावाटी (कोलिंडा का बास) के सोनू रणदीप चौधरी ने अपनी पहली ही फिल्म ‘ओमलो’ से कान फिल्म फेस्टिवल में कदम रखा। थिएटर में 15 साल का अनुभव रखने वाले सोनू ने बिना किसी फिल्म स्कूल की डिग्री के अपने कौशल को निखारा। उनकी मेहनत और सच्चाई ने उन्हें मुंबई तक पहुँचाया। सोनू का मानना है कि सिनेमा एक कला है, जो सच्चाई और संवेदनशीलता को दर्शाती है।
रोहित जयरामदास माखिजा (निर्माता और कास्टिंग डायरेक्टर)
कोटा जिले के रहने वाले रोहित जयरामदास माखिजा ने ‘ओमलो’ में सबसे बड़ा निवेश किया है। एक व्यापारी से फिल्म निर्माता बने रोहित का मानना है कि सिनेमा एक प्रभावशाली माध्यम है जो समाज में बदलाव ला सकता है। उन्होंने फिल्म निर्माण और कास्टिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यतिन राठौर (कला निर्देशक और सह-निर्माता)
बारां जिले (केलवाड़ा) के यतिन राठौर ने मुंबई में 8 वर्षों से थिएटर में अपने कला निर्देशन के अनुभव को निखारा। ‘ओमलो’ में कला निर्देशन के माध्यम से उन्होंने फिल्म के दृश्यों को गहराई और सजीवता प्रदान की।
अजय राठौड़ (निर्माता)
चुरू जिले के व्यवसायी अजय राठौड़ ने ‘ओमलो’ से फिल्म निर्माण में कदम रखा। अपने व्यापारिक कौशल को सिनेमा में समर्पित करते हुए, उन्होंने फिल्म को नए दृष्टिकोण और गहराई प्रदान की।
कान फिल्म फेस्टिवल में ‘ओमलो’ की उपस्थिति
इस फिल्म का चयन कान फिल्म फेस्टिवल में होना राजस्थान के फिल्म उद्योग के लिए गर्व का क्षण है। यह साबित करता है कि सच्ची कहानी और ईमानदार प्रस्तुति से वैश्विक मंच पर पहचान बनाई जा सकती है।
‘ओमलो’ का प्रीमियर 13 मई 2025 को कान फिल्म फेस्टिवल में होगा
देश की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्राकृतिक पत्थर प्रदर्शनी इंडिया स्टोनमार्ट–2026 के वैश्विक प्रचार एवं विदेशी खरीदारों को आकर्षित करने के उद्देश्य से, सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ स्टोन्स (CDOS) एवं लघु उद्योग भारती (LUB) का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल लंदन के लिए 4 मई को सात दिवसीय दौरे पर रवाना हुआ है। यह प्रतिनिधिमंडल 7 से 9 मई तक लंदन में आयोजित होने वाली “द स्टोन शो एंड हार्ड सरफेस” प्रदर्शनी में भाग लेगा।
प्रतिनिधिमंडल में लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय सचिव नरेश पारीक, प्रदेश कोषाध्यक्ष अरुण जाजोदिया तथा वरिष्ठ उप महाप्रबंधक, CDOS विवेक जैन शामिल हैं। यह दौरा भारत के प्राकृतिक पत्थर उद्योग को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में स्थापित करने और इंडिया स्टोनमार्ट–2026 में वैश्विक सहभागिता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक प्रयास है।
उल्लेखनीय है कि इंडिया स्टोनमार्ट–2026 के प्रचार के लिए इससे पूर्व इटली (मार्मोमैक फेयर, वेरोना), चीन (शियामेन स्टोन फेयर), अमेरिका (कवरिंग्स फेयर), तथा तुर्की (इज़मिर मार्बल फेयर) जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में प्रभावशाली भागीदारी की गई है। इसके साथ ही, देशभर में आयोजित रोड-शो, संवाद सत्र एवं नेटवर्किंग कार्यक्रमों के माध्यम से भी इस भव्य आयोजन के प्रति व्यापक जागरूकता उत्पन्न की गई है।
CDOS एवं LUB द्वारा समन्वित रूप से किए जा रहे इन प्रयासों का उद्देश्य केवल इंडिया स्टोनमार्ट–2026 को एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के रूप में स्थापित करना ही नहीं है, बल्कि भारत की समृद्ध खनिज एवं शिल्प विरासत को वैश्विक मंच पर सम्मानजनक स्थान दिलाना भी है। लंदन में इस दौरान विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों, व्यापारिक प्रतिनिधियों एवं संभावित साझेदारों से संवाद एवं सहयोग की महत्वपूर्ण बैठकों का कार्यक्रम प्रस्तावित है।
इंडिया स्टोनमार्ट–2026 का आयोजन आगामी 5 से 8 फरवरी, 2026 को जयपुर स्थित जेईसीसी परिसर, सीतापुरा में किया जाएगा, जिसमें भारत सहित विश्व के अनेक देशों से अग्रणी स्टोन एक्जीबिटर एवं खरीदार भाग लेंगे।
राजस्थान सचिवालय कर्मचारी संघ व आर्ट एक्सप्रेस, नमस्ते इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय कला प्रदर्शनी का आयोजन समारोह जवाहर कला केंद्र में किया गया कार्यक्रम में मैरिशियस के कालिंदी जंडोसिंग, पुणे के उल्लास राईकर, उदयपुर के अमित सोलंकी, जयपुर के विक्रम धार, गुजरात की लावण्या हाड़ा को एक्सीलेंस अवार्ड से कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुकेश कलाल जी शासन उप सचिव राज्यपाल राजस्थान सरकार द्वारा सम्मानित किया गया । इस प्रदर्शनी की विशेषता यह रही कि यहां सभागार में देश विदेश के कलाकारो के साथ राजस्थान सचिवालय के कलाकारो ने भी की कला का प्रदर्शन किया गया साथ ही मॉरीशस के कलाकार और विद्यार्थियों द्वारा पेंटिंग की लाइव वर्कशॉप का आयोजन किया गया . साथ ही बंगाल , उड़ीसा , गुजरात , पंजाब , जम्मू , आसाम , और मुंबई के कलाकारों ने अपने कार्य का प्रदर्शन किया . इस कार्यक्रम का आयोजन राजस्थान सचिवालय कर्मचारी संघ के कला एवं साहित्य मंत्री डॉ नितिन के कृष्णा व आर्ट एक्सप्रेस की डायरेक्टर बबीता हाड़ा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया । इस प्रदर्शनी में 55 पार्टिसिपेंट्स ने अपनी कला का प्रदर्शन किया . जिसमें आधुनिक आर्ट , रियलिस्टिक आर्ट , फ्यूशन आर्ट , का समावेश रहा . कृष्ण कुमार कुंद्रा जी , उल्हास रैंकर , गोपाल सोनी , देव चूरामन , पामेला की पेंटिंग्स की सभी ने खूब सराहा.
विभिन्न परीक्षाओं में उतीर्ण 01 लाख 50 हजार 596 परीक्षार्थियों की उपाधियों (डिग्रियों ) का अनुग्रह पारित।
राजस्थान विश्वविद्यालय सीनेट की विशेष बैठक मा. कुलगुरू प्रो. अल्पना कटेजा की अध्यक्षता में विश्विद्यालय के सीनेट हॉल में आयोजित की गई। इस विशेष बैठक में 309 पीएच.डी डिग्रियों सहित विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की गई विभिन्न परीक्षाओं में उतीर्ण हुए कुल 01 लाख 50 हजार 596, परीक्षाथि्र्यों की उपाधियों (डिग्रियों) का अनुग्रह ( ग्रेस ) पारित किया गया।
सीनेट की आज आयोजित इस विशेष बैठक में विश्विद्यालय के विभिन्न संकायों में 01 मार्च 2024 से 28 फरवरी 2025 की अवधि के दौरान 309 विधार्थियों की पीएच.डी उपाधियों का अनुग्रह भी प्रदान किया गया जिसमें 159 छात्रों एवं 150 छात्राओं को पीएच.डी की डिग्रियां प्रदान की जाएंगी। सर्वाधिक 99 पीएच.डी डिग्रियों का अनुग्रह सामाजिक विज्ञान संकाय के अंतर्गत प्रदान किया गया। इस बैठक में वर्ष 2023 की परीक्षाओं में 185 विधार्थियों की एम.फिल डिग्रियों के साथ स्नातक पाठ्यक्रमों की 89 हजार 77 एवं स्नातकोत्तर वार्षिक पाठ्यक्रमों की 32 हजार 675 व पी.जी ( सैमेस्टर ) परीक्षाओं की 03 हजार 471 उपाधियों के साथ ही प्रोफेषनल पाठ्यक्रमों से जुडे 24 हजार 377 परीक्षार्थियों की उपाधियों के अनुग्रह एवं 502 पी.जी डिप्लोमा/डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्स के ग्रेस को भी इस बैठक में पारित किया गया।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे 34 वें दीक्षांत समारोह में विष्वविद्यालय द्वारा आयोजित की गई विभिन्न पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले 117 विधार्थी स्वर्ण पदक से सम्मानित किये जायेंगें, जिसमें छात्राओं की संख्या सर्वाधिक है, इसमें 90 छात्राओं को 97 स्वर्ण पदक प्रदान किए जाऐंगे। आज आयोजित इस विशेष बैठक में मा. कुलगुरू प्रो. अल्पना कटेजा ने यह जानकारी भी दी कि 15 मई को विश्वविद्यालय का 34 वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया जा रहा है।
इस सत्र का संचालन राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात मोटिवेशनल गुरु और भारद्वाज फाउंडेशन जयपुर के संस्थापक अध्यक्ष डॉ पीएम भारद्वाज ने किया।
इस कार्यक्रम के पैनलिस्ट्स में कंप्यूटर वैज्ञानिक एवं यूनाइटेड नेशन्स से जुड़े डिजिटल डिप्लोमेटिक विशेषज्ञ डॉ. डी.पी. शर्मा जो कि स्वच्छ भारत मिशन के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर भी हैं ऑनलाइन मीडिया के माध्यम से उपस्थित थे। अन्य पैनलिस्ट में डॉ. अखिलेश त्रिवेदी (स्टार्टअप और उद्यमिता इकोसिस्टम के रणनीतिकार) डॉ. सत्यन विजयवर्गीय (टेक्नोलॉजी डायरेक्टर – जीनस) नेइस कार्यक्रम में भाग लेते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला ।
इस कार्यक्रम के संचालक डॉ पीएम भारद्वाज ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विभिन्न आयामों पर विकास और भविष्यगामी उपयोग के साथ-साथ दुरुपयोग के बारे में विस्तार से पैनलिस्ट से सवाल पूछे। इस प्रकार वैश्विक और भारतीय एआई परिदृश्य के साथ पारंपरिक क्षेत्रों में संभावित नौकरी हानि, और इसके चलते लोगों की कौशल पुनर्गठन की आवश्यकता पर सवाल पूछने पर विदेश से ऑनलाइन जुड़कर कंप्यूटर वैज्ञानिक डॉ डीपी शर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से बचा नहीं जा सकता मगर इसके दुरुपयोग पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है और इसके लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों, प्रशंसकों और सरकारों को एक विशिष्ट रेगुलेटरी फ्रेमवर्क लोकल एवं ग्लोबल लेवल पर बनाना होगा ताकि स्कूल, कॉलेज, इंडस्ट्री, विश्वविद्यालय एवं व्यक्तिगत स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नैतिक, जिम्मेदार एवं मानवीय उपयोग को सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत ने अभी तक कोई स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों, इंडस्ट्रीज के लिए विशिष्ट रेगुलेटरी फ्रेमवर्क एवं कानून नहीं बनाया है जिसकी अत्यंत आवश्यकता है।
डॉ. अखिलेश त्रिवेदी ने भारतीय यूनिकॉर्न एआई स्टार्टअप्स का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे कंप्यूटरीकरण के समय अनुमानित नौकरी हानि वास्तविकता में नहीं हुई, वैसा ही कुछ एआई के साथ भी देखने को मिलेगा यानी वैकल्पिक रोजगार के अवसर खुलेंगे। डॉ. विजयवर्गीय ने बताया कि वर्तमान में 30% कोडिंग कार्य एआई द्वारा किए जा रहे हैं, और 2026 के अंत तक यह 100% तक हो सकता है। इसलिए छात्रों को एआई/एमएल एल में अपने कौशल का पुनर्विकास करना होगा ताकि वे रोजगार योग्य बने रहें।
डॉ. पी.एम. भारद्वाज ने सभी पैनलिस्ट्स का उनके बहुमूल्य विचारों के लिए धन्यवाद किया और बताया कि भारद्वाज फाउंडेशन जयपुर ने हाल ही में इंडियन वूमेंस साइंटिस्ट संगठन के संयुक्त तत्वाधान में ‘नैनो मॉडल’ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें पैन इंडिया से 100 से अधिक छात्रों ने भाग लिया, और 37 छात्रों ने सफलतापूर्वक प्रमाणपत्र प्राप्त किए l
डॉ डीपी शर्मा, प्रोफेसर एवं डिजिटल डिप्लोमेसी विशेषज्ञ
प्रधानमंत्री मोदी की सिर कटी हुई तस्वीर – घृणा, अनैतिक आचरण और संवैधानिक अनादर का एक नया निम्न स्तर
लोकतांत्रिक मानदंडों और मानवीय शालीनता से एक खतरनाक प्रस्थान में, देश की सबसे पुरानी और सबसे चर्चित राजनीतिक पार्टियों में से एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिर कटी हुई तस्वीर पोस्ट की। यह कृत्य केवल निर्णय में चूक या दुर्भाग्यपूर्ण गलती नहीं है। यह घृणा की पराकाष्ठा है, एक अनैतिक, गैरकानूनी और असभ्य राजनीतिक हमला है जो पार्टी की जिम्मेदारी की भावना और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उसके सम्मान के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। ये किसी ने सोचा भी न होगा कि सौ साल से अधिक पुरानी कोंग्रेस का यह थका हुआ काफिला अधपतन के मार्ग से फिलसलते हुए एक ऐसी दलदल में जा फँसेगा जहाँ दबे दबे पनपते रहे अलोकतांत्रिक महारोग पार्टी की सम्पूर्ण काया को संग्दिग्ध रूप से सड़ांध में परिवर्तित कर देंगे/
राजनीतिकहथियारकेरूपमेंघृणा : राजनीतिक प्रतिस्पर्धा लोकतंत्र का सार है। एक कार्यशील गणतंत्र में जोरदार विरोध, आलोचना और सार्वजनिक बहस अपेक्षित है – यहाँ तक कि आवश्यक भी। लेकिन जब यह प्रतियोगिता प्रतीकात्मक हिंसा की दृश्य अभिव्यक्तियों में बदल जाती है, तो यह लोकतंत्र के बारे में नहीं रह जाती है और नफरत फैलाने का एक साधन बन जाती है। पार्टी के आधिकारिक चैनल द्वारा पोस्ट की गई प्रधानमंत्री की सिर कटी हुई तस्वीर व्यंग्य नहीं है, विरोध नहीं है, अभिव्यक्ति नहीं है – यह घृणा का सबसे भयावह दृश्य रूप है। नीतियों पर सवाल उठाना, शासन को चुनौती देना या विचारधारा का सामना करना एक बात है। लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता को रूपक या शाब्दिक रूप से शारीरिक नुकसान पहुंचाने वाली छवियों का सहारा लेना पूरी तरह से दूसरी बात है। इस तरह की हरकतें दुश्मनी को बढ़ावा देती हैं, अशांति को भड़काती हैं और नागरिक समाज के मूल्यों को नष्ट करती हैं। नैतिक और नैतिक पतन नैतिक दृष्टिकोण से, यह कृत्य राजनीतिक संचार के नैतिक दायरे में सबसे निचले स्तर को दर्शाता है। कांग्रेस पार्टी, जिसका इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से लेकर नेहरू, पटेल और गांधी जैसे दिग्गजों के नेतृत्व तक फैला हुआ है, से उम्मीद की जाती है कि वह मानक स्थापित करेगी – उन्हें नष्ट नहीं करेगी। राजनीति युद्ध नहीं है। विरोधी दुश्मन नहीं है। और नेतृत्व – चाहे कितना भी विवादास्पद क्यों न हो – का सामना तर्क से किया जाना चाहिए, क्रोध से नहीं। जब राजनीतिक संस्थाएँ इस तरह के असभ्य कृत्यों का सहारा लेती हैं, तो वे न केवल अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि सार्वजनिक चर्चा को भी खराब करती हैं, जिससे नागरिक अधिक विभाजित, चिंतित और सनकी हो जाते हैं।
अवैधऔरकानूनीरूपसेनिंदनीय: ये सिर कटी फोटो कहीं प्रधानमंत्री की हत्या का सुनियोजित षड़यंत्र और उसका संकेत तो नहीं ? भारतीय कानून ऐसे मामलों पर चुप नहीं रह सकता/ भारतीय दंड संहिता, धारा 153A (शत्रुता को बढ़ावा देना), 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) जैसे प्रावधानों के माध्यम से हिंसा भड़काने या बदनाम करने वाली कार्रवाइयों को संबोधित करने के लिए रूपरेखा प्रदान करती है। सत्यापित, आधिकारिक राजनीतिक हैंडल पर पोस्ट की गई प्रतीकात्मक रूप से हिंसक सामग्री भी चुनाव आचरण नियमों और सोशल मीडिया विनियमों के विरुद्ध हो सकती है, खासकर जब यह सार्वजनिक व्यवस्था को विकृत करती है।
न्यापालिका, चुनाव आयोग, पुलिस तंत्र, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए – न केवल पोस्ट के लक्ष्य के कारण, बल्कि इससे जो खतरनाक मिसाल कायम होती है, उसके कारण भी, कि आखिर हम किधर जा रहे हैं/ अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई, तो इस तरह की इमेजरी जल्द ही एक राजनीतिक चलन बन सकती है, जो जनसंचार के माध्यम के रूप में नफरत को सामान्य बना देगी।
संवैधानिकगरिमापरहमला: सबसे बढ़कर, भारत के प्रधानमंत्री – चाहे कोई भी पद पर हो – 1.4 बिलियन लोगों की संप्रभु इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह किसी का व्यक्तिगत अपमान नहीं है वल्कि, पूरे लोकतंत्र 1.4 बिलियन भारतीयों का अपमान है क्योंकि ऐसा नहीं कि जिन्होंने प्रधानमंत्री की विचारधारा और उनके एजेंडे को वोट नहीं दिया, प्रधानमंत्री उनके प्रधानमंत्री नहीं है/ प्रधानमंत्री देश का होता है, न कि किसी दल का/ प्रधानमंत्री पूर्व हो या वर्तमान, उसके निर्णय किसी को स्वीकार्य हों या नहीं, फिर भी उसकी फोटो इस प्रकार की असभ्यता से नहीं लगाई जा सकती/ सरकार के मुखिया को इस तरह की क्रूर छवि में चित्रित करना न केवल व्यक्ति की बल्कि पद की गरिमा को भी चुनौती देना है। यह संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सीधा अपमान है जिसके माध्यम से सत्ता प्रदान की जाती है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र में, सम्मानजनक असहमति और जवाबदेह नेतृत्व की आवश्यकता सर्वोपरि है। हिंसक प्रतीकात्मकता के साथ इसे कमज़ोर करना गणतंत्र की नींव को कमज़ोर करना है।
जवाबदेहीऔरआत्मनिरीक्षणकासमय: कांग्रेस पार्टी को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। औपचारिक माफ़ी की सिर्फ़ अपेक्षा ही नहीं की जाती – यह ज़रूरी भी है। पद की स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए, ज़िम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। चुप्पी या ध्यान भटकाना केवल एक अपमानजनक कृत्य की मौन स्वीकृति का संकेत होगा।
जब तक इसके पालनकर्ता शिष्टाचार और बुनियादी मानवता को त्याग देते हैं, तब तक लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता। अगर राजनीतिक दल- जो हमारी लोकतांत्रिक मशीनरी के इंजन हैं- नफरत की इस हद तक गिर जाएंगे, तो इससे सिर्फ एक व्यक्ति या पार्टी को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को भी नुकसान होगा।
इसपलकोएकचेतावनीकेरूपमेंलें: नफरत को सामान्य नहीं बनाया जा सकता, राजनीति की गर्मी में भी नहीं। और संवैधानिक पदों की गरिमा को कभी भी पक्षपात की वेदी पर बलिदान नहीं किया जाना/ अनैतिक, अमानवीय, और असंवैधानिक तरीके से सत्ता की भूख और राजनैतिक पागलपन इतना पागल नहीं हो सकता?
परामर्शदाता, ILO (संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई) एवं डिजिटल डिप्लोमैट
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अब कोई दूर का भविष्य नहीं है—यह आज भारत के श्रम बाजार की वास्तविकता बन चुकी है। यह तकनीक एक तरफ जहाँ देश के विकास की रफ्तार को नई ऊँचाई दे रही है, वहीं दूसरी ओर यह पारंपरिक नौकरियों और असंगठित क्षेत्र की आजीविका के सामने गंभीर संकट भी उत्पन्न कर रही है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम एआई को केवल एक तकनीकी चमत्कार न मानें, बल्कि इसे सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गहराई से देखें। क्या यह प्रगति का पहिया कहीं ऐसे धुएं तो नहीं छोड़ रहा जो भविष्य की नौकरियों को बुझा सकता है?
❖एआईऔररोजगारकाद्वंद्व
भारत का श्रम बाजार, जो बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र पर आधारित है, एआई-संचालित स्वचालन के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। विश्व आर्थिक मंच की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2027 तक 6.9 करोड़ नौकरियाँ—विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग, डेटा एंट्री और ग्राहक सेवा में—प्रभावित हो सकती हैं। आईटी और बीपीओ क्षेत्रों में लगभग 30% पारंपरिक नौकरियाँ ऑटोमेशन के खतरे में हैं।
वहीं दूसरी ओर, एआई की बदौलत डेटा एनालिटिक्स, साइबर सुरक्षा, ग्रीन एनर्जी और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में 9.7 करोड़ नई भूमिकाओं का उदय हो सकता है। प्रश्न यह है: क्या भारत का श्रमबल इस बदलाव के लिए तैयार है?
❖सरकारीप्रयासोंकीदिशाऔरदायरा
भारत सरकार ने कुछ सराहनीय पहल की हैं:
राष्ट्रीयएआईरणनीति (2018) – स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा में एआई के अनुप्रयोग को बढ़ावा देने हेतु।
कौशलभारतमिशनऔरपीएमकेवीवाई – लाखों युवाओं को एआई, IoT और रोबोटिक्स में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य।
फ्यूचरस्किल्सप्राइम – आईटी सेक्टर में री-स्किलिंग के लिए प्लेटफ़ॉर्म।
राष्ट्रीयशिक्षानीति (2020) – स्कूल स्तर पर प्रोग्रामिंग और एआई को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
हालाँकि ये पहलें सकारात्मक हैं, लेकिन इनका प्रभाव अब तक शहरी, औपचारिक और तकनीकी रूप से सक्षम वर्ग तक ही सीमित रहा है। ग्रामीण और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, जो देश की श्रमशक्ति का 83% हैं, इन पहलों से लगभग वंचित हैं।
❖निजीक्षेत्रबनामसरकारीसंरक्षण
भारत में सरकारी नौकरियों का आकर्षण इतना प्रबल है कि यह निजी क्षेत्र के श्रमिकों की उपेक्षा कर देता है। हर वेतन आयोग के बाद महंगाई बढ़ती है, लेकिन उसका सबसे ज्यादा असर किसान, मजदूर और असंगठित श्रमिकों पर होता है। यह असंतुलन न केवल सामाजिक असमानता को बढ़ाता है, बल्कि देश के विकास को सीमित भी करता है।
सरकार को यह समझना होगा कि देश के श्रमजीवी सिर्फ सरकारी कर्मचारी नहीं होते—प्राइवेट सेक्टर का हर कर्मचारी, मजदूर और किसान भी उतना ही मूल्यवान है। एआई के युग में उन्हें संपदा (asset) के रूप में देखना होगा, न कि बोझ (liability) के रूप में।
❖ ILO काश्रमिक–केंद्रितदृष्टिकोण
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) श्रमिकों की सुरक्षा के लिए एक मानव-केंद्रित एआई दृष्टिकोण अपनाता है:
सार्वभौमिकश्रमगारंटी (उचित वेतन, सामाजिक सुरक्षा)
आजीवनसीखने के माध्यम से तकनीकी बदलावों में अनुकूलन
नैतिकएआईदिशा–निर्देश, जो श्रमिक शोषण को रोकते हैं
भारत में, ILO द्वारा समर्थित कार्यक्रम जैसे गिग वर्कर सुरक्षा और स्किल ट्रेनिंग की पहलें सराहनीय हैं, लेकिन ये अक्सर भारत की व्यापार-प्रधान नीति से टकराती हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस अंतर को पाटे और नीति में ऐसे बदलाव करे जिससे श्रमिक हितों की रक्षा हो सके।
❖सार्वजनिक–निजीसाझेदारीकीआवश्यकता
एआई से उत्पन्न अवसरों का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब उद्योग और सरकार मिलकर दीर्घकालिक और स्थायी नौकरियाँ सृजित करें। इसके लिए भारत को ILO के नैतिक AI ढांचे को अपनी राष्ट्रीय नीति में एकीकृत करना चाहिए।
❖निष्कर्ष: विकल्पहमारेहाथमेंहै
AI को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके सामाजिक प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है। भारत के पास अब दो रास्ते हैं:
अभी कार्रवाई करने का समय है। श्रमिकों को डराने के बजाय उन्हें सशक्त बनाएं। तभी भारत एआई के इस नए युग में “सबकासाथ, सबकाविकासऔरसबकाविश्वास“ का वास्तविक अर्थ सिद्ध कर पाएगा।