डूंगरपुर। चौरासी विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव राजस्थान की राजनीति में गर्माहट ला चुका है। भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के बढ़ते प्रभाव ने कांग्रेस और बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी हैं। यह सीट लंबे समय से आदिवासी पार्टियों के प्रभाव में रही है, और बीएपी के नेता राजकुमार रोत ने इसे अपनी मजबूत पकड़ में रखा है। अब बीएपी किसी भी सूरत में यह सीट छोड़ना नहीं चाहती।
आदिवासी वोट बैंक पर नजर
गुजरात की सीमा से सटे डूंगरपुर और बांसवाड़ा क्षेत्र में आदिवासी वोटरों की बहुलता है। कांग्रेस और बीजेपी यहां वर्षों से आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अब तक दोनों ही पार्टियों को बड़ी सफलता नहीं मिल पाई है। बीएपी अपने समर्थकों को और संगठित कर आदिवासी वोटरों का भरोसा बनाए रखने में जुटी है।
मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय
चुनाव मैदान में इस बार 10 उम्मीदवार हैं, लेकिन असली लड़ाई बीएपी, कांग्रेस और बीजेपी के बीच मानी जा रही है। बीएपी से अनिल कटारा, कांग्रेस से महेश रोत और बीजेपी से कारीलाल ननोमा अपनी-अपनी ताकत झोंक रहे हैं। गांव-गांव जाकर ताबड़तोड़ सभाएं की जा रही हैं, ताकि मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जा सके। होम वोटिंग की प्रक्रिया 4 से 8 नवंबर तक चलेगी, जिसमें 319 बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाता मतदान करेंगे।
कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट
चौरासी सीट का इतिहास बताता है कि यह कभी कांग्रेस का परंपरागत गढ़ हुआ करती थी। हालांकि, 1990 में भाजपा ने पहली बार जीवराम कटारा के जरिए यहां जीत दर्ज की। बाद में उनके बेटे सुशील कटारा ने भी दो बार यह सीट बीजेपी के लिए जीती। लेकिन 2018 के बाद से यह सीट कांग्रेस और बीजेपी के हाथ से निकल गई।
राजकुमार रोत का दबदबा
बीएपी के नेता राजकुमार रोत ने 2018 में बीटीपी से और फिर 2023 में बीएपी से यहां बड़ी जीत दर्ज की। 2023 में रोत ने रिकॉर्ड 69 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीता, जो चौरासी सीट पर अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। रोत के नेतृत्व में बीएपी ने आदिवासी समाज का जबरदस्त समर्थन हासिल कर लिया है, जिससे कांग्रेस और बीजेपी दोनों की राह मुश्किल हो गई है।
13 नवंबर को होने वाले मतदान में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीएपी अपना दबदबा बरकरार रख पाती है या कांग्रेस-बीजेपी में से कोई इसे वापस हासिल करने में सफल होती है।