राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच की खींचतान लगातार बढ़ रही है, लेकिन सिविल लाइन विधायक गोपाल शर्मा (Civil line MLA Gopal Sharma) के बयान ने इसे एक अलग ही दिशा दे दी है। राजस्थान की राजनीति में जहां कांग्रेस सत्ता में बनी हुई है, वहीं भाजपा के अंदर आपसी मतभेद और कांग्रेस से मिलीभगत के आरोप पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
दरअसल, जयपुर में मुख्यमंत्री के अभिनंदन समारोह के दौरान भाजपा विधायक गोपाल शर्मा ने अपने ही पार्टी के नेताओं पर निशाना साधा। शर्मा ने आरोप लगाया कि पार्टी के कुछ नेता कांग्रेस के विधायकों के साथ मिलीभगत कर रहे हैं, जिससे भाजपा के सपने पूरे नहीं हो सकते।
शर्मा ने कांग्रेस के कुछ विधायकों से भाजपा नेताओं की नज़दीकियों पर सवाल खड़े किए हैं, जो साफ़ तौर पर एक राजनीतिक रणनीति है। यह बयान न सिर्फ कांग्रेस पर हमला है, बल्कि यह भाजपा के भीतर नेतृत्व की स्थिति पर भी सवाल खड़ा करता है। शर्मा का यह कहना कि यदि भाजपा अपने सिद्धांतों पर अडिग नहीं रहती तो पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, दर्शाता है कि पार्टी के भीतर सत्ता के लिए संघर्ष और व्यक्तिगत हित हावी हो रहे हैं।
मीट और शराब की दुकानों को लेकर सिविल लाइन विधायक ने उठाए सवाल
विधायक शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा, “हम मीट की दुकानों और अवैध शराब की दुकानों को देखते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय सौदेबाजी में लगे रहते हैं। अगर हम कांग्रेस नेताओं जैसे रफीक खान, प्रताप सिंह खाचरियावास और कागजी के इशारों पर काम करेंगे, तो भाजपा के लक्ष्य कभी पूरे नहीं हो सकते।”
विधायक गोपाल शर्मा ने कांग्रेस नेता रफीक और खाचरियावास पर लगाए आरोप
विधायक गोपाल शर्मा ने रफीक खान पर देशद्रोह का आरोप लगाया और कहा कि प्रताप सिंह खाचरियावास के परिवार पर कई मामले दर्ज हैं। उन्होंने कहा, “हम उन्हीं लोगों के साथ बैठते हैं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। अगर हम उनसे मिलकर काम करेंगे, तो भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांत कमजोर हो जाएंगे।”
सिविल लाइन विधायक की अपनी ही पार्टी को नसीहत
सभा के दौरान विधायक शर्मा ने यह सवाल भी उठाया कि भाजपा कार्यकर्ताओं को क्या रिश्वत और भ्रष्टाचार करते वक्त अपने सिद्धांतों की याद नहीं आती। उन्होंने कहा, “अगर भाजपा का कार्यकर्ता ईमानदार और कर्मठ रहेगा, तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा और वह लंबे समय तक मजबूत बनी रहेगी।
यह बयान 2024 के विधानसभा चुनावों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है। यदि भाजपा अपने भीतर के असंतोष को नहीं संभालती, तो इसे आगामी चुनावों में बड़ी राजनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। शर्मा का यह बयान पार्टी के नेताओं को सचेत करने का एक प्रयास है, ताकि वे अपने व्यक्तिगत लाभों को छोड़कर पार्टी के आदर्शों और सिद्धांतों पर कायम रहें।
कुल मिलाकर, यह बयान भाजपा की आंतरिक राजनीति को उजागर करता है और कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार की मिलीभगत के खिलाफ एक सख्त चेतावनी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस मामले को कैसे संभालती है और चुनावों से पहले पार्टी के भीतर एकता कैसे बनाए रखती है।