राजस्थान। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार और खनन उद्योग के लिए एक बड़ी राहत देते हुए, राज्य की अपील को स्वीकार कर खनन संचालन की वैधता को 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दिया है। यह निर्णय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के उस आदेश के खिलाफ आया है, जिसमें लगभग 23,000 खनन पट्टों को पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अद्यतन अनुपालन के अभाव में रोकने का निर्देश दिया गया था।
राजस्थान सरकार ने खनन संचालन में संभावित बाधा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां कोर्ट ने राज्य की अपील को स्वीकार करते हुए सभी खनन पट्टा धारकों को आदेश दिया कि वे अगले तीन हफ्तों में राज्य स्तरीय पर्यावरणीय अनुमोदन (SEIAA) प्राप्त कर लें। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिला स्तर पर प्राप्त अनुमोदन के आधार पर संचालन कर रहे खनन पट्टों को राज्य स्तरीय पर्यावरणीय अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
8 नवंबर 2024 को मिली थी अंतरिम राहत
राजस्थान सरकार ने यह अपील ऐसे समय में की थी जब NGT ने खनन पट्टों के लिए अतिरिक्त समय देने के राज्य के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद, 8 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी राहत देते हुए 13 नवंबर तक खनन संचालन की अनुमति दी थी। राजस्थान के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करते हुए, राज्य में खनन क्षेत्र के महत्व और संभावित आर्थिक नुकसान का हवाला दिया।
कानूनी पक्ष में क्या कहा गया?
राजस्थान सरकार की कानूनी टीम ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि खनन कार्य को बंद करने से राज्य की लगभग 1.5 मिलियन नौकरियों पर असर पड़ेगा और राज्य की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस अपील में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने MoEF का प्रतिनिधित्व करते हुए यह भी कहा कि SEIAA को मंजूरी प्रक्रिया में अतिरिक्त समय की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकारते हुए, खनन संचालन को मार्च 2025 तक जारी रखने की अनुमति दी।
राज्य सरकार के लिए क्या मायने रखता है यह निर्णय?
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भजनलाल-नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। इससे राज्य को अपने खनन संचालन को पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने का समय मिला है, जिससे कि उद्योग में किसी भी प्रकार का व्यवधान न हो। सरकार और खनन पट्टाधारकों के पास अब 31 मार्च 2025 तक का समय है कि वे SEIAA की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट पर्यावरणीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के पक्ष में है।