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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन मानकर हर संपत्ति पर सरकार नहीं कर सकती कब्जा

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भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के संदर्भ में दिए गए पुराने फैसले को पलट दिया है। यह फैसला 45 साल पहले 1978 में जस्टिस कृष्ण अय्यर द्वारा दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति मानते हुए उन पर अधिग्रहण का अधिकार रखती हैं। लेकिन 9 न्यायाधीशों की बेंच ने अब इसे खारिज करते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कहा जा सकता। इस निर्णय से स्पष्ट हुआ कि सरकारें केवल खास सामुदायिक संसाधनों को ही जनहित में उपयोग कर सकती हैं।

क्या है इस कानून का इतिहास और अब क्यों बदला?


यह निर्णय भारत की बदलती अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आया है। 1960 और 70 के दशक में समाजवादी नीतियों की ओर झुकाव था, लेकिन 1990 के दशक के बाद से देश ने बाजार उन्मुख दृष्टिकोण अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा कि वर्तमान में देश की आर्थिक नीतियाँ एक विकासशील देश की चुनौतियों से निपटने के लिए बनाई जा रही हैं। न्यायालय ने कहा कि अब निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मानने की सोच, पुराने आर्थिक और समाजवादी विचारों से प्रेरित थी, जो अब प्रासंगिक नहीं है।

केस का पूरा विवरण और कोर्ट की टिप्पणी


इस मामले में कुल 16 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिनमें मुख्य याचिका मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (POA) की थी। POA ने महाराष्ट्र सरकार के MHADA एक्ट के एक अध्याय का विरोध किया था, जो राज्य सरकार को जर्जर इमारतों का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है। अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद निर्णय दिया कि सरकार सिर्फ उन संपत्तियों पर दावा कर सकती है, जो वास्तव में सामुदायिक संसाधन हैं।

संविधान विशेषज्ञों की राय


संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला निजी संपत्ति के अधिकार को सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि सरकारें निजी संपत्ति को सिर्फ जनहित में और उचित मुआवजे के साथ अधिगृहीत कर सकती हैं। यह निर्णय निजी संपत्ति के अधिकार को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है और समाज में संपत्ति के न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देता है।

कोर्ट का निर्णय और प्रमुख तर्क


समाजवादी से बाजार उन्मुखी अर्थव्यवस्था, अदालत ने 1960-70 के दशक की समाजवादी नीतियों को आज के बाजार-उन्मुख आर्थिक परिदृश्य के मुकाबले अप्रासंगिक बताया। जनहित में अधिग्रहण के अधिकार, सरकारें केवल जनहित में कुछ सामुदायिक संपत्तियों का अधिग्रहण कर सकती हैं। इस निर्णय से संपत्ति अधिकारों को लेकर चल रही कई कानूनी विवादों पर सकारात्मक असर पड़ेगा और सरकारों को जनहित में संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलेंगे।

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