आज, सुप्रीम कोर्ट ने एक उच्च-प्रोफ़ाइल मामले में याचिकाकर्ता ज्योति बंसल को जमानत देने से इनकार कर दिया, जो एक अंतरराष्ट्रीय किडनी प्रत्यारोपण रैकेट से जुड़ा है। अदालत ने अपराध की गंभीरता और गहनता का हवाला देते हुए यह निर्णय दिया। माननीय न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया। राजस्थान राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा और पैनल वकील दिव्यांक पंवार ने जमानत याचिका का विस्तृत काउंटर एफिडेविट दायर कर कड़ा विरोध किया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक अंतरराष्ट्रीय अंग तस्करी रैकेट से संबंधित है, जिसमें मुख्य रूप से बांग्लादेश के विदेशी नागरिकों को राजस्थान के जयपुर में किडनी प्रत्यारोपण के लिए अवैध रूप से लाया गया। इन प्रत्यारोपणों को फोर्टिस जैसे प्रतिष्ठित अस्पतालों में अंजाम दिया गया। आरोप है कि डॉक्टरों और अस्पताल के कर्मचारियों ने दलालों के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार किए और मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 (TOHO Act) के प्रावधानों को दरकिनार कर दिया।
याचिकाकर्ता के खिलाफ मुख्य आरोप:
• अवैध प्रत्यारोपण की व्यवस्था के लिए दलालों के साथ सक्रिय समन्वय।
• सह-अभियुक्तों के साथ वित्तीय लेन-देन, जो फर्जी दस्तावेजों की तैयारी से जुड़े थे।
• विदेशी नागरिकों को कानून के खिलाफ अंग प्रत्यारोपण के लिए लुभाने वाले नेटवर्क में भागीदारी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने निम्नलिखित बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
1. अपराध की गंभीरता: यह अपराध चिकित्सा नैतिकता, TOHO अधिनियम के कानूनी प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन है।
2. जांच लंबित: जांच में फर्जी एनओसी, वित्तीय लेन-देन और फर्जी दस्तावेज जैसे सबूत सामने आए हैं, जो याचिकाकर्ता को रैकेट से जोड़ते हैं।
3. जमानत का कोई आधार नहीं: याचिकाकर्ता के निर्दोष होने के दावे असमर्थित थे, और लंबित एफएसएल रिपोर्ट ने जमानत का औचित्य नहीं दिया। बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तावित अतिरिक्त शर्तें सबूतों के साथ छेड़छाड़ के जोखिम को रोकने के लिए अपर्याप्त मानी गईं।
राज्य का विरोध
राजस्थान राज्य ने अपने वकीलों के माध्यम से तर्क दिया कि:
• इस चरण में जमानत देना चल रही जांच को बाधित करेगा।
• याचिकाकर्ता ने एक पूर्व नियोजित और अत्यधिक संगठित रैकेट में सक्रिय भूमिका निभाई।
• उच्च न्यायालय द्वारा जमानत से इनकार कानूनी तर्कों पर आधारित था।
निर्णय
याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के पहले के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि इस मामले में जमानत देना जांच की अखंडता से समझौता करेगा। अदालत ने गंभीर अपराधों और संगठित अपराधों के मामलों में न्यायिक सतर्कता की आवश्यकता पर जोर दिया।
यह निर्णय जटिल मामलों में न्याय सुनिश्चित करने और चिकित्सा कदाचार, मानव शोषण और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन से संबंधित अपराधों में सुप्रीम कोर्ट की सख्त रुख को दर्शाता है।