नई दिल्ली, 13 दिसंबर 2024:
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण कानूनी फैसले में पूर्व विधायक गिरिराज सिंह मलिंगा को जमानत दे दी। यह आदेश विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 9528/2024 के तहत सुनाया गया। माननीय न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और माननीय न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने ट्रायल कोर्ट को जमानत की उपयुक्त शर्तें तय करने का निर्देश दिया।
ये है पूरा मामला
- 29 मार्च 2022:
धौलपुर, राजस्थान में आयोजित एक सरकारी बैठक के दौरान एक लोक सेवक पर कथित हमले के मामले में गिरिराज सिंह मलिंगा के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। इनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं 143, 332, 353, 504, 506 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराएं 3(1)(र), 3(1)(स), 3(2)(वा) शामिल हैं। - 17 मई 2022:
राजस्थान उच्च न्यायालय ने मलिंगा को जमानत दी। - 5 जुलाई 2024:
गवाहों को धमकाने और भड़काऊ भाषण देने के आरोपों के चलते राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत रद्द कर दी। - 22 जुलाई 2024:
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और मलिंगा को अस्थायी राहत प्रदान की। - 8 नवंबर 2024:
सुप्रीम कोर्ट ने मलिंगा को दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। - 20 नवंबर 2024:
गिरिराज सिंह मलिंगा ने धौलपुर जिले की एससी/एसटी कोर्ट में आत्मसमर्पण किया, जिसके बाद सुरक्षा कारणों से उन्हें भरतपुर जिला जेल भेज दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
याचिकाकर्ता गिरिराज सिंह मलिंगा की ओर से:
- वरिष्ठ अधिवक्ता: मुकुल रोहतगी
- अधिवक्ता: आदित्य विक्रम सिंह और अजीत शर्मा
राजस्थान राज्य की ओर से
- अतिरिक्त महाधिवक्ता: शिव मंगल शर्मा
- अधिवक्ता: अमोघ बंसल और सोनाली गौर
राजस्थान सरकार ने अपने काउंटर-हलफनामे में आरोपों की गंभीरता को देखते हुए जमानत का विरोध किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर फैसला छोड़ने की बात भी कही।
माननीय न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने गिरिराज सिंह मलिंगा को जमानत प्रदान की। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान कड़ी जमानत शर्तें लागू की जाएं।
ट्रायल कोर्ट आने वाले दिनों में जमानत की शर्तों को अंतिम रूप देगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि गिरिराज सिंह मलिंगा न तो जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप करें और न ही अदालती कार्यवाही को प्रभावित करें।